देहरादून (इंद्रेश मैखुरी): उत्तराखंड अजब-गजब जगह और उससे ज्यादा अजब-गजब यहां सरकार चलाने वाले हैं। समय-समय पर अपने बयानों से वे राष्ट्रीय ख्याति अर्जित करते ही रहते हैं ! लेकिन सिर्फ बयान ही नहीं कारनामों से भी ख्याति अर्जित करने में मंत्री गण पीछे नहीं हैं।
अब कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत को ही देख लीजिये। बीती शुक्रवार रात्रि वे हल्द्वानी में धरने पर बैठ गए। धरने पर इसलिए बैठे कि हल्द्वानी के एक इलाके में बिजली नहीं आ रही थी, बिजली विभाग और स्थानीय लोगों में एक खंबे को हटाने के मामले में विवाद चल रहा था।
लोगों और विभाग में क्या विवाद था, क्या नहीं, घटनाक्रम क्या था, यह महत्वपूर्ण नहीं है, हैरतंगेज़ तो राज्य के कैबिनेट मंत्री का सरकारी विभाग के विरुद्ध धरने पर बैठना है।
अव्वल तो यह मंत्री की कार्यक्षमता और प्रशासनिक पकड़ पर ही प्रश्न चिन्ह है। सवाल है कि क्या मंत्री फोन करके बिजली विभाग के अफसरों को बिजली सुचारु करने को कहते तो क्या बिजली विभाग वाले नहीं करते या मंत्री के कहने के बावजूद उन्होंने ऐसा नहीं किया ? अगर ऐसा हुआ तो मंत्री जी का मंत्री होना ही निरर्थक है।
लेकिन इससे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि कैबिनेट मंत्री बंशीधर भगत धरने पर बैठे किसके खिलाफ थे ? बिजली विभाग के खिलाफ ! बिजली विभाग किसका विभाग है- उत्तराखंड सरकार का विभाग का ! तो बंशीधर भगत कैबिनेट मंत्री हो कर अपनी ही सरकार के खिलाफ धरने पर बैठे थे? त्रिवेंद्र रावत के मुख्यमंत्री रहते, मंत्री बनाए जाने के लिए बंशीधर भगत कुलबुलाते रहते थे। जब त्रिवेंद्र रावत मुख्यमंत्री पद से हटे और तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बनाए गए तब बंशीधर भगत कैबिनेट मंत्री बनाए गए। धरने पर ही बैठना था तो मंत्री बनने के लिए इतनी कसमसाहट क्यूं थी भगत जी !
यह तो संवैधानिक संकट है कि मंत्री अपनी सरकार के अधीन विभाग के खिलाफ धरने पर बैठे, इससे अधिक अराजकता और क्या हो सकती है ! प्रकारांतर से मंत्री जी यह स्वीकार कर रहे हैं कि सरकारी विभागों पर सरकार के मंत्रियों का कोई नियंत्रण नहीं है, सरकारी विभाग उनके कहने सुनने में नहीं हैं ! अगर सरकारी विभागों पर कैबिनेट मंत्री का नियंत्रण ही नहीं है तो फिर उन्हें सत्ता में क्यूं बने रहना चाहिए ?
2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड के लोगों से कहा कि विकास के लिए उत्तराखंड में डबल इंजन की सरकार बनाइये, लोगों ने प्रधानमंत्री की बात मान ली। पाँच साल बीतते- न बीतते यह हालत है कि मंत्री, सरकारी विभाग के खिलाफ धरने पर बैठ रहे हैं। एक ही आदमी डबल ज़िम्मेदारी में है- मंत्री भी है और धरने पर बैठा सरकार विरोधी भी है- कमाल का डबल इंजन है, मोदी जी, वाह !
साभार फ़ेसबुक
( लेखक एक्टिविस्ट और सीपीआई(एमएल) के गढ़वाल सचिव हैं। विचार निजी हैं।)