- कुमाऊं से ठाकुर मुख्यमंत्री नियुक्त करने के फैसले ने 2022 के चुनाव को मोदी बनाम हरीश रावत का रूप दिया
- हरीश रावत लगातार हार के बावजूद कांग्रेस के प्रासंगिक होने के साथ ही भाजपा के लिए बने हुए हैं बड़ी चुनौती
देहरादून(पंकज कुशवाल): कांग्रेस विधायक व नेता विपक्ष इंदिरा ह्रदयेश को गुजरे हुए महीना भर होने को है लेकिन कांग्रेस हाईकमान न तो उत्तराखंड में अब तक नेता विपक्ष के लिए विधायक का नाम तय कर पाई है न ही नया प्रदेश अध्यक्ष। वहीं, इस दौरान भाजपा के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत से चार महीने का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इस्तीफा दिलाकर पुष्कर सिंह धामी के रूप में उत्तराखंड को नया मुख्यमंत्री भी दे दिया है। कांग्रेस की यह लड़ाई हरीश रावत बनाम प्रीतम सिंह बनी हुई है, जिसमें भाजपा ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री का पद सौंपकर हरीश रावत की कांग्रेस में धमक को स्वीकार भी लिया है।
भले हरीश रावत को आगे करने पर अभी कांग्रेस में सहमति न बन पाई हो लेकिन बीजेपी थिंकटैंक अपनी चुनावी बिसात उन्हीं को केन्द्र में रखकर बुनने लगा है, ऐसे कई संकेत मिल चुके हैं। कुमाऊं से ठाकुर चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने का भाजपा का फैसला इस बात की तस्दीक करता है कि भाजपा भी मानती है कि 2022 विधानसभा चुनाव में उसका मुकाबला कांग्रेस से नहीं बल्कि हरीश रावत से होगा। मोदी कैबिनेट में गढ़वाल से निशंक को ड्रॉप कर कुमाऊं से ब्राह्मण चेहरे के तौर पर अजय भट्ट की एंट्री भी हरीश रावत की घर में घेराबंदी का ही दांव हो सकती है।
समय-समय पर उत्तराखंड कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने यह दिखाने की पूरी कोशिश की है कि मौजूदा दौर में हरीश रावत पूरी तरह से अप्रसांगिक हो चुके हैं। मुख्यमंत्री रहते हुए दो-दो विधानसभा सीटों से चुनाव हारना, उसके दो साल में लोकसभा का चुनाव हारना इस बात के लिए काफी था कि हरीश रावत को कांग्रेस किनारे लगा दे। लेकिन, खांटी राजनेता हरीश रावत को यूं किनारे लगाना कांग्रेस तो क्या भाजपा के लिए भी आसान नहीं है। हरीश रावत वह शख्स हैं, जो मुख्यमंत्री रहते हुए दो विधानसभा सीट से चुनाव हारा, लोकसभा का चुनाव हारा लेकिन हौसला नहीं हारा।
बीते शनिवार को जब दोपहर तीन बजे भाजपा ने तीसरे मुख्यमंत्री का एलान किया तो हरीश रावत के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। कुमाऊं के ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले को जितना सकारात्मक हरीश रावत ने लिया उतना शायद भाजपा के नेताओं ने भी नहीं लिया होगा, यह हरीश रावत की प्रासंगिकता पर मुहर लगाने जैसा फैसला था। हरीश रावत, एक कछुआ साबित होते रहे हैं प्रदेश कांग्रेस के लिए, वह शख्स तो तमाम हार, तमाम विरोधियों के बावजूद टिका हुआ है और टिकने के साथ ही अपनी पार्टी के विपक्ष के लिए सिरदर्द बना हुआ है। हरीश रावत, सोशल मीडिया से लेकर सार्वजनिक जीवन में सर्वाधिक सक्रिय रहने वाले राजनेता के रूप में जाना जाता है।
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, जो चार साल मुख्यमंत्री रहे, तीरथ सिंह रावत से भी ज्यादा समर्थक फाॅलोअर हरीश रावत के सोशल मीडिया पर है। हरीश रावत के ट्वीटर पर ही पौने चार लाख फाॅलोअर हैं, और वह ट्वीटर पर 2014 से सक्रिय हैं जबकि चार साल तक मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत के पौने तीन लाख फाॅलोअर हैं वहीं फेसबुकर हरीश रावत के करीब 9 लाख फाॅलोअर हैं। जहां भाजपा के नेताओं ने सोशल मीडिया को एक तरफा संवाद का मंच बनाते हुए सिर्फ अपने प्रचार प्रसार का जरिया बनाया हुआ है वहीं हरीश रावत ने इसे दोहरे संवाद का मंच बनाया हुआ है। वह अपनी कहानियां, भावुक करने वाले किस्से, सुझावों से भरे किस्से सोशल मीडिया पर शेयर करते है, वह लोगों की बात करते हैं। आप हरीश रावत के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के आधार पर उन्हें नकार सकते हैं लेकिन लोकप्रियता के आधार पर उन्हें नकारना मुश्किल है।
पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाना हरीश रावत के कुमाऊं और ठाकुर फेक्टर की काट बताया जा रहा है, जिसका हरीश रावत ने खुले दिल से स्वागत किया है। वह उत्तराखंड में कांग्रेस बन चुके हैं और कांग्रेस का वजूद उनसे बन चुका है। एक तरफ हरीश रावत जहां इंदिरा के जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष के बहाने प्रीतम सिंह के साथ चुनाव पूर्व तमाम हिसाब चुकता कर लेने में लगे हुए हैं ,वहीं दूसरी तरफ, विधायक चुनाव हारे और कांग्रेस के संभावित उम्मीदवारों के साथ संपर्क साध कर 2022 की बिसात पर अपनी चालें चलने में मशरूफ हैं। शायद उनको भी पता है सीएम धामी हों या कोई और आखिर में चुनावी जंग मोदी बनाम हरदा पर ही आकर टिकेगी।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)