Lateral entry in Bureaucracy: केंद्र सरकार ने ज्वाइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर/उपसचिव पदों पर नियुक्ति के लिए जब से विज्ञप्ति निकाली है, विपक्षी इंडिया गठबंधन तो आक्रामक होकर हमलावर तेवर दिखा ही रहा था अब एनडीए के भीतर भी नाराजगी फूट पड़ी है। जेडीयू नेता नीतीश कुमार और एलजेपी (रामविलास) नेता चिराग पासवान ने सरकार के इस कदम का विरोध शुरू कर दिया है।
केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान ने तो दो टूक कहा,”मैं और मेरी पूरी पार्टी स्पष्ट राय रखती है कि सरकार को कोई भी नियुक्तियां, उसमें आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान में रखकर करना चाहिए। निजी क्षेत्रों में ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है। ऐसे में कोई भी नियुक्ति होती है, चाहे किसी भी स्तर पर हो, उसमें आरक्षण के प्रावधानों को ध्यान में रखना चाहिए। इसमें नहीं रखा गया है, यह हमारे लिए चिंता का विषय है। मैं खुद सरकार का हिस्सा हूं और मैं इसे सरकार के समक्ष रखूंगा। हां..मेरी पार्टी इससे कतई सहमत नहीं है।”
इसी तरह एनडीए के एक और घटक जेडीयू ने भी लेटरल एंट्री पर सरकार से जुदा राय रखी है। जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा है,”हमारी पार्टी राम मनोहर लोहिया की अनुयाई है और हम लोग शुरू से खाली पड़े सरकारी पदों को भरने की वकालत करते रहे हैं। जब लोग सदियों से सामाजिक तौर पर गैर बराबरी का शिकार हैं तब मेरिट का सवाल कहां से आ गया? सरकार का यह आदेश हमारे लिए गंभीर चिंता का विषय है।”
केसी त्यागी ने आगे यह भी कहा है कि ऐसा कदम उठाकर सरकार विपक्ष को तश्तरी में सजाकर मुद्दा दे रही है और इससे राहुल गांधी सामाजिक तौर पर पिछड़ों के चैंपियन बन जायेंगे। हमें विपक्ष के हाथों में यह हथियार नहीं थमाना चाहिए।
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए थोड़ी राहत की बात यह है कि एनडीए के एक अन्य घटक टीडीपी ने लेटरल एंट्री कदम का स्वागत किया है। टीडीपी के राष्ट्रीय महासचिव नारा लोकेश ने कहा है कि हम हमेशा से प्राइवेट सेक्टर के एक्सपर्ट्स की तैनाती के पक्षधर रहे हैं क्योंकि इससे काम की गुणवत्ता बढ़ेगी।
- समझिए क्या है पूरा मामला?
जैसा कि आप जानते ही हैं कि हर साल संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी अखिल भारतीय स्तर पर परीक्षा आयोजित कराता है और दुनिया की कठिनतम परीक्षाओं में शुमार इस परीक्षा में लाखों अभ्यर्थियों में से कुछ ही कामयाबी हासिल करते हैं। इन्हीं सफल अभ्यर्थियों में से आईएएस, आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस आदि अफसर नियुक्त होते हैं और वरिष्ठता के बाद केंद्र में सचिव, संयुक्त सचिव लेकर कैबिनेट सचिव तक अहम जिम्मेदारियों को संभालते हैं।
इसी बीच पिछले कुछ सालों से केंद्र सरकार में लेटरल एंट्री के माध्यम से कॉरपोरेट जगत के एक्सपर्ट्स को भर्ती करने की एक प्रक्रिया चलाई जा रही है। बीते शनिवार को केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के माध्यम से 45 पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञप्ति निकाली जिसमें 10 ज्वाइंट सेक्रेटरी तथा 35 डायरेक्टर या उपसचिव के पद भरे जायेंगे।
हाल में संपन्न हुए संसद सत्र में केंद्रीय राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में बताया था कि पिछले पांच सालों में लेटरल एंट्री से 63 नियुक्तियां की गई हैं और वर्तमान में लेटरल एंट्री से नियुक्त किए गए 57 अधिकारी विभिन्न विभागों/ मंत्रालयों में तैनात हैं।
दरअसल, जैसा कि पहले जिक्र किया कि यूपीएससी के माध्यम से सिविल सर्विसेज एग्जाम देकर आने वाले अफसरों की नियुक्ति आरक्षण के आधार पर होती हैं। जबकि लेटरल एंट्री में आरक्षण को दरकिनार किया जाता है।उदाहरण के लिए इसे यूं समझिए कि 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के तहत आरक्षित वर्ग के प्रतिशत को सौ से भाग देकर नियुक्तियों की संख्या निकाली जाती है। अगर बीते शनिवार को जिन 45 पदों की विज्ञप्ति प्रकाशित की गई है, उसे के ग्रुप के रूप में देखे तो उसमें 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम लागू होते ही एससी के लिए छह पद, एसटी के लिए तीन पद और ओबीसी के हिस्से में 12 पद आयेंगे। जबकि चार पद ईडब्ल्यूएस कोटे में जाएंगे।
लेकिन इन 45 पदों को एक समूह को बजाय विभिन्न विभागों के लिए अलग अलग प्रकाशित किया गया है जिससे ये सभी सिंगल पोस्ट वेकेंसीज में तब्दील हो गई हैं और आसानी से केंद्र सरकार ने एससी, एसटी,ओबीसी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण को बायपास कर डाला।
- विपक्ष पहले से हमलावर
यही वजह है कि सरकार की इस विज्ञप्ति के प्रकाशित होते ही पॉलिटिकल पारा हाई हो गया। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से लेकर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार ने upsc द्वारा निकाली गई इस विज्ञप्ति के जरिए दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के हितों पर हमला किया है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष ने कहा है कि बीजेपी संविधान को तबाह कर बहुजनों से आरक्षण छीन लेना चाहती है।
वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोदी सरकार के लेटरल एंट्री कदम को संविधान पर हमला करार देते हुए सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर लिखा है कि केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में रिक्त पड़े पदों को भरने की बजाय पिछले दस सालों में सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को निजी हाथों में देकर बीजेपी ने 5.1 लाख पदों को समाप्त कर दिया है।
समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव केंद्र सरकार के कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि अब समय आ गया है कि यूपीएससी के माध्यम से बीजेपी द्वारा अपनी विचारधारा से जुड़े करीबी लोगों को सरकारी नौकरियों में भर्ती करने की साजिश के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान छेड़ा जाए।
अखिलेश ने आरोप लगाया है कि बीजेपी की पूरी योजना है कि पीडीए यानी पिछड़ा,दलित और आदिवासी तबके से आरक्षण का उनका हक छीन लिया जाए।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी केंद्र सरकार के कदम को संविधान का उल्लंघन करार दिया है।
हालांकि केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लेटरल एंट्री पर कांग्रेस के विरोध को मुख्य विपक्षी दल का दोगलापन करार दिया है। उन्होंने कहा कि यूपीए सरकार ने 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में सेकंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉम्स कमीशन बनाया था जिसने लेटरल एंट्री के माध्यम से नियुक्ति की पैरवी की थी।