गपशप @अड्डा: महामहिम का मन अब महाराष्ट्र में कम लग रहा! कहीं चाणक्य बनकर शिष्य को चन्द्रगुप्त बनाने का बीड़ा तो नहीं उठा लिया!

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‘शिष्टाचार’ मुलाक़ातों के भी सियासी निहितार्थ निकाल रहे नादां
गुरु-शिष्य की ‘शिष्टाचार’ मुलाक़ातों से पहाड़ पॉलिटिक्स का पारा हाई

देहरादून: रविवार को महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के सरकारी आवास पहुँचकर उनसे ‘शिष्टाचार’ मुलाक़ात की। स्वाभाविक है महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल अपने गृह प्रदेश के दौरे पर पहुँचे हैं तो स्वाभाविक है कि उनकी मुख्यमंत्री से ‘शिष्टाचार’ मुलाक़ात होगी ही।आखिर पुष्कर सिंह धामी के 4 जुलाई को मुख्यमंत्री बनने के बाद से घोषित तौर पर (जिन मुलाक़ातों की तस्वीरें बाक़ायदा सूचना विभाग द्वारा रिलीज़ की गई हैं) पिछले दो माह से भी कम वक्त में महाराष्ट्र के महामहिम राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की महज तीन ही ‘शिष्टाचार’ मुलाक़ातें तो हो पाई हैं, अब तक!


वैसे भी दो माह से भी कम वक्त में तीन ‘शिष्टाचार’ मुलाक़ातें कहां ज्यादा कहीं जाएँगी, वो भी तब जब महामहिम राज्यपाल होने के साथ साथ भगतदा युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के राजनीतिक गुरु भी कहे जाते हों। गुरु तो वे पिछले मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के भी हुआ करते थे लेकिन टीएसआर ठहरे टीएसआर!


खैर अब युवा मुख्यमंत्री धामी न केवल युवा हैं बल्कि अपने गुरु को लेकर भावुक भी हैं। जब गुरु का आदेश हुआ तो दिल्ली स्थित महाराष्ट्र सदन में नए नवेले चीफ सेक्रेटरी डॉ एस एस संधू से लेकर तमाम नौकरशाहों की फ़ौज संग दौड़कर पहुँच गए। दोबारा दिल्ली जाना हुआ तो गुरु का भी अचानक दिल्ली टूर बन गया और लगे हाथ फिर युवा मुख्यमंत्री ने दौड़ लगा दी महाराष्ट्र सदन तक! अब दूसरा महीना गुज़रा नहीं और मुख्यमंत्री दिल्ली की तरफ दौड़ लगा नहीं पाए तो कोई बात नहीं अबके गुरु ने देहरादून की दौड़ लगा दी। सीधे मुख्यमंत्री आवास पहुंच गए युवा सीएम और अपने शिष्य से ‘शिष्टाचार’ भेंट करने। वैसे राजनीति में ‘शिष्टाचार’ शब्द का जितना शोषण हुआ है आज तक शायद ही कोई दूसरा शब्द खोजे से मिल पाए! दो नेताओं की मुलाकात में सारा ज्ञान इसी ‘शिष्टाचार’ शब्द की आड़ लेकर उडेला जाता है।


अब जाने क्यों पहाड़ के पॉलिटिकल कॉरिडोर्स में कुछ नादां महामहिम गुरु और मुख्यमंत्री शिष्य की ‘शिष्टाचार’ मुलाकातों के भी सियासी निहितार्थ खोज लेने की गुस्ताफी कर बैठ रहे हैं। आखिर खिचड़ी वाले बाबा गुरु दक्षिणा में माँगेंगे भी तो भला क्या! वे तो शिष्य को बारम्बार यही बता रहे होंगे कि उनको जो भी मिला है सब गुरु की कृपा का प्रसाद है।


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