क़ाबिल ए तारीफ: सीएम हाउस जाकर युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने अच्छा मैसेज दिया, बिना टोटके जाते तो और अच्छा संदेश जाता, आखिर दोष आवास में नहीं जनता की आशाओं पर खरा न उतरना या आलाकमान के कटपुतली नाच में ठहरा ‘सरकार’

न्यू कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास
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देहरादून: मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार के मुखिया की शपथ के 22 दिन बाद ही सही पर आधिकारिक मुख्यमंत्री आवास रहने के लिए चले गए हैं। ऐसा कर युवा मुख्यमंत्री ने अच्छा संदेश दिया है। हालाँकि एकाध वास्तु के टोटके पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी अपनाए थे, खबर है कि कुछ दोष मुख्यमंत्री धामी ने भी दूर कराए हैं गृह प्रवेश करने से पहले। लेकिन चलिए जनता की 22-25 करोड़ रु की गाढ़ी कमाई से बने इस पंचतारा आवास में रहने के लिए युवा मुख्यमंत्री ने हिम्मत दिखाकर सुखद संदेश दिया है।

आप कल्पना कीजिए ये जन धन की कितनी बड़ी बर्बादी है कि राज्य के मुख्यमंत्री के लिए करोड़ो खर्च कर एक भव्य आधिकारिक आवास का निर्माण किया गया और हमारी सरकार का मुखिया उसमें सिर्फ इसलिए नहीं गया क्योंकि ये मिथक हो गया कि सीएम गया तो कुर्सी चली जाएगी! जबकि इस आवास के बनने से पहले राज्य के प्रथम मुख़्यमंत्री रहते नित्यानंद स्वामी अपने निजी आवास रहे लेकिन कुर्सी गई। अंतरिम सरकार में भगत सिंह कोश्यारी दूसरे मुख्यमंत्री बने लेकिन सरकार लौटकर न आई न वे दोबारा मुख्यमंत्री बन पाए। जबकि एक फ़क़ीरी के अंदाज में खिचड़ी वाले नेता रहे भगतदा। जनरल बीसी खंडूरी की कुर्सी चली गई। निशंक आए तो वे भी न रह पाए। फिर सीएम आवास भवन को दोष दिया जाने लगा। चार माह फिर सीएम बने जनरल खंडूरी। खंडूरी है जरूरी का नारा लगा, सीएम आवास भी न गए लेकिन खुद हार गए चुनाव और इसी के साथ बीजेपी हार गई चुनाव।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के न्यू कैंट रोड स्थित मुख्यमंत्री आवास में प्रवेश के अवसर पर राज्यपाल बेबी रानी मौर्य ने मुख्यमंत्री से भेंट कर शुभकामनायें दीं


विजय बहुगुणा को सत्ता मिली, जून 2013 की आपदा आई तो उनकी कुर्सी भी बहा ले गई लेकिन दोष उसी मुख्यमंत्री आवास को दिया जाता रहा। फिर हरीश रावत सीएम बने। बात-बात पर टोटके और सारे ताम-झाम में लगे रहे हरदा उसी आधिकारिक मुख्यमंत्री आवास के बगल में बीजापुर गेस्ट हाउस घेरे रहते रहे और जन धन से बने करोड़ों के आवास में कबूतर उड़ते रहे। नतीजा क्या निकला कांग्रेस न केवल 11 के सबसे बुरे स्कोर पर सिमट गई खुद हरदा दो-दो सीट से बुरी तरह चुनाव हार गए।


त्रिवेंद्र सिंह रावत ने थोड़ी बहुत टोटकेबाजी कराकर सीएम आवास में रहने की हिम्मत दिखाई। अब कहा गया कि कुर्सी चार साल पूरे होते होते इसलिए चली गई क्योंकि कैंट रोड के आधिकारिक सीएम आवास में रह रहे थे। शायद इसीलिए तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री बने लेकिन सीएम आवास रहने की हिम्मत न कर पाए, बीजापुर सेफ हाउस में, सीएम आवास के मिथक से डरकर कोविड सेंटर बनाने का हेडलाइन मैनेजमेंट करने लगे, लेकिन खुद की कुर्सी चार महीने के लिए भी सेफ नहीं करा पाए।
मुख्यमंत्री के तौर पर पुष्कर सिंह धामी के पास छह-आठ महीने का वक्त है उसके बाद जनता की अदालत में कामकाज लेकर जाना है, वहाँ जनता जनार्दन होकर फैसला करेगी न कि सीएम आवास में रहने न रहने के टोटके से दोबारा सीएम बनेंगे या नहीं बनेंगे। एक युवा मुख्यमंत्री से यही उम्मीद भी थी कि सियासत से ऐसे मिथकों के झाले झाड़े जाएं।


सीएम धामी ने अच्छी बात कही है कि वे कर्म में विश्वास करते हैं और वर्तमान में जीते हैं, न भूतकाल की चिन्ता करते हैं न ही उसे लेकर प्रायश्चित। भविष्य में क्या होगा उसकी चिन्ता आज क्यों की जाए। सीएम ने एक और सच कहा कि सीएम आवास के निर्माण में काफी संसाधन मतलब पैसा लगा है लिहाजा राज्य का जो भी सीएम हो उसे कम से कम वहीं रहना चाहिए।
सौ आने सच है आखिर एक प्रदेश की जनता अपने मुखिया के इतनी साफ़गोई और स्पष्टता तो चाह ही सकती है! वेलडन सीएम सर!


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