Growth स्टोरी: कहते हैं प्रयास का पहला कदम ही कामयाबी की नींव को भविष्य की बुलंद इमारत का एहसास दे जाता है। आपके The News Adda पर इस हफ़्ते हम एसडीसी फाउंडेशन के माध्यम से इसी सोच को परिलक्षित करती चार उम्दा कहानियाँ लेकर आयें हैं जिनसे रूबरू करा रहे हैं अनूप नौटियाल। अनूप नौटियाल एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष हैं और नागरिकों के जागरण तथा जवाबदेही के ज़रिए नगरीय जीवन बेहतर कैसे हो इस दिशा में अपनी टीम के साथ प्रयासरत हैं। ख़ासकर प्लास्टिक मुक्त परिवेश कैसे किया जाये इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं और आज उनकी इन कहानियों के केंद्र में भी यही है।
अनूप नौटियाल बता रहे हैं:-
जैसे ज्यादातर बच्चों को किताबें पढ़ना पसंद होता है, वैसे ही हमारे बच्चों को भी बचपन में किताबें पढ़ने का शौक था। भले ही वे अब बड़े हो गए हों, लेकिन उनके बड़े होने के वर्षों में पढ़ी गई डॉ. स्यूस की किताबों से एक मेरा पसंदीदा उद्धरण कुछ इस प्रकार है:
“जब तक आप जैसे किसी को बहुत अधिक परवाह नहीं होगी, तब तक कुछ भी बेहतर नहीं होगा।”
यह उद्धरण कई लोगों को स्थिति को सुधारने के लिए प्रेरित करता है। यह मुझे भी अपने सहकर्मियों के साथ मिलकर कार्रवाई करने के लिए प्रेरित करता है। और इसी तरह, हमने देहरादून में कई प्लास्टिक बैंकों की स्थापना की है – मॉल और शो रूम से लेकर स्कूलों और कॉलेजों तक।
लेकिन उन व्यक्तियों की कहानियों के बारे में क्या जिन्होंने प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ इस संघर्ष में शामिल होकर योगदान दिया?
खैर, एसडीसी फाउंडेशन में हमने इसे “प्लास्टिक फ्री जुलाई” के रूप में मनाने का अवसर समझा। प्लास्टिक फ्री जुलाई एक वैश्विक आंदोलन है जो लाखों लोगों को प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान प्रदान करने का माहौल देता है ताकि हम साफ-सुथरी सड़कों, शहरों, महासागरों और समुदायों का निर्माण कर सकें।
मेरी सहयोगी प्रेरणा रतूड़ी ने चार ऐसे ही प्लास्टिक योद्धाओं से संपर्क किया और उनसे प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर उनकी व्यक्तिगत प्रतिबद्धता के बारे में बात की। यहां उनकी चार छोटी-छोटी बदलाव की कहानियाँ दी गई हैं:
हमने टीएस गुसाईं (सुपरिटेंडेंट, रेल मेल सेवा, देहरादून) को शामिल किया, जो तब देहरादून के घंटा घर के पास स्थित जनरल पोस्ट ऑफिस में काम कर रहे थे और वहां एक प्लास्टिक बैंक की स्थापना में सहायक बने। ये उनकी कहानी है –
अनीता जोशी, प्रधानाचार्य, भवानी बालिका सरकारी इंटर कॉलेज, जो इस बात पर गर्व करती हैं कि उनकी स्कूल की लड़कियाँ प्लास्टिक प्रदूषण के मामले में व्यवहार में परिवर्तन को वास्तव में अपना रही हैं।
ये उनके स्कूल की कहानी है-
Committed to eradicating plastic pollution, a school principal targets behaviour change
पूरन सिंह, जो मसूरी-देहरादून रोड पर किमाड़ी गाँव में एक मैगी पॉइंट चलाते हैं अब अधिक संतुष्ट हैं क्योंकि उनके छोटे ढाबे में उत्पन्न होने वाले प्लास्टिक को जलाने के बजाय जिम्मेदारी से अलग किया जाता है और रीसायकल किया जाता है।
How a small maggi point enroute Mussoorie from Dehradun is doing its bit against plastic pollution
और फिर हमारे युवा सहयोगी सुभाष जो प्लास्टिक बैंकों से प्लास्टिक एकत्र करते हैं और हमारे प्लास्टिक कचरा सिग्रेगेशन और शिक्षण केंद्र में अपना योगदान देते हैं।
ये चार छोटी कहानियां हैं जो लोगों द्वारा प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ संघर्ष में सीधे योगदान देते हुए उठाए गए छोटे लेकिन महत्वपूर्ण कदमों की हैं। जैसे कि उद्धरण में कहा गया है,
“जब तक आप जैसे किसी को बहुत अधिक परवाह नहीं होगी, तब तक कुछ भी बेहतर नहीं होगा।”
ये सभी अपने हिस्से का योगदान देकर और इस मुद्दे की परवाह करके दून घाटी को बेहतर बनाने में अपना योगदान दे रहे हैं।
उम्मीद है कि जब हम सबने स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया है, उसी समय में कूड़े से आजादी की इन कहानियों को पढ़ने पर आनंद आया होगा। और आप भी इसी तरह के छोटे छोटे प्रयासों भरी भविष्य की नई कहानियों में ख़ुद का किरदार खोजते हुए ख़ुद को पा रहे होंगे।