Mera Jiwan Lakshya Uttarakhandiyat: सियासत में हरीश रावत वो शख्सियत हैं जिनसे आप सहमत हो सकते या असहमत लेकिन नजरअंदाज करने का जोखिम ना अपने उठा सकते और ना विरोधी! ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ इसी शख्सियत को समझने के लिए सियासत के कुछ और पन्नों का पलटना है। या यूं समझिए कि हरदा की इस नई किताब के जरिए आप दो सफर एक साथ करते हैं: एक हरीश रावत और दूसरी उत्तराखंड को समझने की यात्रा।
इसीलिए उत्तराखंडियत किताब की प्रस्तावना लिखते अमर उजाला के सलाहकार संपादक और जाने माने पत्रकार विनोद अग्निहोत्री ठीक ही कहते हैं कि राजनीतिक बीहड़ की तमाम व्यस्तताओं और विवशताओ के बीच भी हरीश रावत भारतीय राजनीति के उन गिने-चुने राजनेताओं में शुमार होते हैं जो न अपनी जड़ों से कटते हैं और न ही कलम से नाता तोड़ते हैं। उनके लेखों का संग्रह ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ इसकी तस्दीक करती है।
शनिवार को देहरादून में एक भारी भीड़ के बीच पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की किताब ‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ का लोकार्पण जगद्गुरु शंकराचार्य राज राजेश्वराश्रम महाराज द्वारा किया गया। किताब के विमोचन कार्यक्रम में कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा,नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य से लेकर कई विधायक, पूर्व विधायक, राज्य आंदोलनकारी और विभिन्न दलों के नेताओं के साथ सामाजिक, शैक्षिक और पत्रकारिता जगत से जुड़े लोग पहुंचे।
दरअसल, उत्तराखंडियत के माध्यम से हरीश रावत नवोदित राज्य उत्तराखंड को लेकर अपनी एक वैकल्पिक सोच का प्रतिबिंब खींचते हैं, जहां मंडवा, झिंगोरा, गैठी तो है ही, इस छोटे से पहाड़ प्रदेश की सियासत में दलबदल, भ्रष्टाचार और दलाल तंत्र की तिकड़ी से निर्मित खिचड़ी कैसे सूबे की सेहत बिगाड़ रही है उसकी भी मिसालें पेश की गई हैं।
कहने को किताब के विमोचन से पूर्व ही टिहरी से बीजेपी विधायक किशोर उपाध्याय दावा ठोकते हैं कि ‘उत्तराखंडियत’ शब्द उनकी 2016 की खोज था लेकिन हरीश रावत ने चोरी और हेरा-फेरी कर नींव के पत्थर को ही भुला दिया। जाहिर है कि उत्तराखंडियत किसकी खोज और इस पर किसका अधिकार है ये फैसला किसी दिन हरदा और किशोर बैठकर कर सकते हैं लेकिन उत्तराखंडियत को लेकर हरीश रावत किस स्तर पर कोशिशें करते दिखते हैं और किशोर उपाध्याय की राजनीति किस मुकाम पर उनको ऐसे मुद्दों पर खामोशी ओढ़ने को मजबूर करती नजर आती है, यह साफ नजर आता है। बहरहाल लौटते हैं किताब पर।
‘मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत’ किताब में हरीश रावत बताते हैं कि कैसे उत्तराखंड राज्य के निर्माण को लेकर अपनी पार्टी कांग्रेस के छोटे राज्यों की हिमायती न होने के बावजूद वे नरसिम्हा राव सरकार में तत्कालीन प्रधानमंत्री को यूपी के पर्वतीय क्षेत्र को अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाने को लेकर राजी कर लेते हैं लेकिन कैसे PM राव के साथ बैठक में पंडित नारायण दत्त तिवारी नए राज्य के विरोध में स्वर्गीय गोविंद बल्लभ पंत का संदर्भ लेकर कहते हैं कि पंत ने नेहरू को कह दिया था कि यूपी का विभाजन उनकी लाश पर ही होगा। रावत बताते हैं कि तिवारी नरसिम्हा राव को यह भी कह देते हैं कि पंत की तरह ही यूपी विभाजन पर उनकी भी वही सोच है। हरदा किताब में दावा करते हैं कि उसी बैठक में नरसिम्हा राव मुर्दाबाद के नारे तक लगा दिए जाते हैं।
उत्तराखंडियत पर तीन वॉल्यूम के 654 पन्नों के पहले संस्करण में हरदा 18 मार्च 2016 को कांग्रेस में हुई टूट के नौ किरदारों पर भी कलम चलाते हैं और किस तरह मोदी सत्ता के तमाम दबावों के बावजूद उनकी सरकार हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के रास्ते फिर स्थापित होती है इस पर सिलसिलेवार ढंग से लिखते हैं।
हरदा स्टिंग के नाम पर बीजेपी मदद के लिए बनी कथित सीडी और उसके निर्माता को लेकर भी कई गंभीर सवाल उठाते हैं। साथ ही वे दलील देते हैं कि कैसे 2014 में सत्ता मिलते ही मुख्यमंत्री के रूप में उनको केदारनाथ त्रासदी से चारधाम यात्रा को उबारने और पुनर्निर्माण की पहाड़ सरीखी चुनौती से जूझना पड़ा। फिर राष्ट्रपति शासन से मिली चोट और हवाई सफर में गर्दन की चोट ने कैसे उनकी परीक्षा ली इस पर भी उनकी कलम चलती है।
इतना ही नहीं हरीश रावत अपनी किताब के जरिए गाड़-गदेरे, मंडुआ, झिंगोरे और काफल की बात तो करते ही हैं,राहुल गांधी की राजनीति, प्रियंका गांधी वाड्रा से विरोधी कैंप की धुकधुकी और सोनिया गांधी के सियासी योगदान को भी अपने तरीके से याद करते हैं। लगे हाथ रावत तिवारी टकराव की परतें भी खोलते हैं और ऑल वेदर रोड से लेकर डबल इंजन, जीरो टॉलरेंस और 18 मार्च 2016 की कांग्रेस टूट के बहाने मोदी शाह की सियासत के स्याह पक्ष भी बताने की कोशिश करते हैं।
इतना ही नहीं मौजूदा पुष्कर सिंह धामी सरकार को आईना दिखाने के लिए हरदा उनके मैकेंजी ग्लोबल मॉडल के बरक्स अपना उत्तराखंडियत का लोकल मॉडल रखते हैं। भू कानून से लेकर भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के नारों में दब गए NH 74 मुआवजा घोटाले को लेकर उनके सवाल डबल इंजन राज में अनुतरित नजर आते हैं।
रावत गैरसैंण को लेकर अपने प्रयास और अधूरी हसरतों की कसक भी बार बार बयां करने से नहीं चूकते हैं। जाहिर है आज भले नवोदित और राजनीतिक लिहाज से छोटे राज्य उत्तराखंड से हरीश रावत की पहचान होती हो लेकिन पीछे पलटकर देखते हैं या फिर मेरा जीवन लक्ष्य उत्तराखंडियत किताब के पन्ने पलटते पलटते किसी अनजान को भी बखूबी अहसास हो जाता है कि हरीश रावत सियासत के मोर्चे पर डटा अपनी तरह का वह योद्धा है जो अपनी पीठ पर हार के अंतहीन घाव लिए है तो सीने में जीत का जज्बा लेकर नई लड़ाई का आह्वान भी करता दिखाई देता है।