Harish Rawat attacks on TSR 1 & TSR 2, on corruption issue: उत्तराखंड भाजपा की सियासत में आजकल विपक्षी नहीं बल्कि पार्टी के दिग्गज नेता ही तूफान उठाए नजर आ रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत ने चिंता जताई है कि यूपी के जमाने में जीरो से 20 परसेंट कमीशनखोरी होती थी लेकिन राज्य बना तो कमीशनखोरी की शुरुआत ही 20 परसेंट से हुई।
इसी तरह करप्शन को लेकर पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत भी अपने बयानों से दर्शा रहे कि वे भी करप्शन को लेकर चिंतित हैं। लेकिन अब कांग्रेसी दिग्गज और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने भ्रष्टाचार को लेकर आज चिंतित दिख रहे TSR 1 और TSR 2 को ही कटघरे में खड़ा कर दिया है।
तीरथ और त्रिवेंद्र को आइना दिखाने के लिए हरदा ने वर्ष 2016 में लोकायुक्त को लेकर उनकी सरकार द्वारा की गई कसरत पर दोनों नेताओं द्वारा सीएम बनने के बाद पानी फेरने का आरोप लगाया है। हरीश रावत ने सोशल मीडिया के जरिए संस्कृत के श्लोक और गढ़वाली में अपना संदेश सुनाकर तीरथ और त्रिवेंद्र को करप्शन पर कटघरे में खड़ा कर दिया है।
संस्कृत में कर्म के गीता आधारित श्लोक “कर्मन्यवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” से लेकर गढ़वाली में कहते हैं, “म्यार दुईया छुट भुला तीरथ सिंह रावत और माननीय त्रिवेंद सिंह रावत ज्यु, किलैं अब भ्रष्टाचार बोझ असहनीय लागन फट गौ। हमरि सरकारल 2016 में विधिवत तौर पर लोकायुक्त का चयन कर राज्यपाल को अनुमोदन के लिए भेज दी गई थी।
हरीश रावत ने पूछा है कि आखिर क्यों गवर्नर हाउस में यह फाइल दबी रह गई। हरदा ने तोहमत कसी कि आज उनके दोनों छुट भुला को भी बताना पड़ेगा कि लोकायुक्त होता चिंता, सोच से उपजे शोक का प्रायश्चित करने के लिए लोकायुक्त के पास जाते लेकिन भाजपा शायद तय कर लिया है कि न बांस होगा और वह न बांसुरी बजेगी।
यहां पढ़िए हरदा ने कैसे TSR 1 और TSR 2 को करप्शन पर कटघरे में कर दिया खड़ा
मैं प्रतिदिन कुछ कर्म करता हूं। सफलअसफलता, कर्म के स्वाभाविक परिणाम होते हैं। असफलता का बोझ मैं मन में नहीं रखता हूं, उसको मैं असीम शक्ति वाले परमात्मा को समर्पित कर देता हूं और परमात्मा मेरे कान पर धीरे-धीरे कहते हैं, कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।म्यार दुईया छुट भुला तीरथ सिंह रावत ज्यू और माननीय त्रिवेंद्र सिंह रावत ज्यू, किलैं अब भ्रष्टाचारक बोझ असहनीय लागन फट गौ! हमरि सरकारल 2016 में विधिवत तौर पर लोकायुक्त का चयन कर माननीय राज्यपाल को अनुमोदनार्थ फाइल भेज दी थी। आखिर वह फाइल क्यों गवर्नर हाउस में ही बी रह गई इसका जवाब तो मेरे दुईया छुट भुला को भी देना ही पड़ेगा न! आज लोकायुक्त होता तो अपने मन में उपजे शोक का प्रायश्चित करने म्यार दुईया छुट भुला लोकायुक्त के पास जा सकते थे। भाजपा ने शायद तय किया है, न बांस होगा-न बांसुरी बजेगी!
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