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लूटा गया भारत: रूसी डॉक्यूमेंट्री फिल्म ने बताई अंग्रेजी लूट की कहानी

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दिल्ली: रूसी चैनल RT डाक्यूमेंट्री की फिल्म “लूटा गया भारत” की पहली ऑफ़लाइन स्क्रीनिंग नई दिल्ली और मुंबई के ‘रशियन हाउस’ में हुई। फिल्म को RT डॉक्यूमेंट्री की प्रमुख, येकातेरीना याकोवलेवा और फिल्म के लेखक आर्त्योम वोरोबेय द्वारा प्रस्तुत किया गया। फिल्म को अंग्रेजी सब-टाइटल के साथ हिंदी भाषा में प्रस्तुत किया गया। अंग्रेजों द्वारा की गई लूट को उजागर करने के लिए इसे पूरे भारत में दिखाया जायेगा।


फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे अंग्रेजों ने भारत को उपनिवेश बनाया और लूटा, साथ ही कैसे भारतीयों पर विदेशी विचार थोपे गए, जिससे निकलना आज भी मुश्किल है। भारतीय सभ्यता के सांस्कृतिक खजाने विदेशों में निर्यात किए गए, जिनमें से कई आज भी ब्रिटिश संग्रहालयों में अपना अस्तित्व तलाश रहे हैं। यह फ़िल्म है उन भारतीयों के नाम जिन्होंने अपने देश की आज़ादी के लिए संघर्ष किया।
 
 इस फिल्म के नायक जरत चोपड़ा हैं, जो मुल्तान के शासक दीवान मूलराज के वंशज हैं। ये राज्य कभी सिख साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था। उन्होंने अपने पूर्वजों की तलवार भारत वापस लाना अपना मकसद बनाया हुआ है। यह तलवार 1849 में ब्रिटिश अधिकारी विलियम व्हिश द्वारा लूटी गई युद्ध वस्तुओं में से एक थी। लम्बे इंतज़ार और एक अरसे की खोज के बाद, जरत चोपड़ा को पता चला कि उनकी पुश्तैनी तलवार को ब्रिटेन की रॉयल आर्टिलरी इंस्टीट्यूट में रखा गया है। हालांकि, चोपड़ा के प्रयासों के बावजूद, संस्थान ने तलवार वापस करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि यह युद्ध की लूट का हिस्सा थी।


रशियन हाउस में फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद एक पैनल चर्चा भी आयोजित की गई जिसमें जरत चोपड़ा, भारतीय राजनीतिक विशेषज्ञ सुव्रोकमल दत्ता, शशांक शेखर सिन्हा, विनायक कललेटला, ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम की अध्यक्ष पूर्णिमा आनंद और सैन्य इतिहासकार कर्नल शैलेन्द्र सिंह ने हिस्सा लिया।

इस पैनल चर्चा में “औपनिवेशिक काल के दौरान भारत से बाहर ले जाए गए खजाने का मालिक कौन होना चाहिए? क्या ब्रिटिश संग्रहालय में प्रदर्शित कलाकृतियां लोगों को भारत की संस्कृति और इतिहास के बारे में शिक्षित करने में मदद करती हैं? क्या ‘मॉडर्न’ भारतीय समाज में अंग्रेजों की छाप रह गई है?” विषयों पर बहस की गई।


फ़िल्म की स्क्रीनिंग दिल्ली विश्वविद्यालय में भी आयोजित की गई और उसके बाद इस पर विस्तार से चर्चा हुई। दर्शकों ने दिलचस्पी से फिल्म देखी और लेखक आर्त्योम वोरोबेय से सवाल पूछे।
दर्शकों ने इस फिल्म को खूब सराहा और इतने महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान देने के लिए RT डॉक्यूमेंट्री की टीम के साथ-साथ रूसी सरकार को भी धन्यवाद दिया।

RT डॉक्यूमेंट्री टीम से जुड़ी पारुल बुधकर ने कहा कि दो सौ सालों तक भारत पर रहे ब्रितानी राज के प्रभावों को दर्शाने की इस फिल्म के माध्यम से एक कारगर कोशिश हुई है और अधिक से अधिक दर्शकों तक इसकी पहुंच बहस और विमर्श की नई खिड़कियां खोलती है।

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