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खंडूरी के लिए बीजेपी जरूरी: संघर्ष का पहाड़ छोड़ एक और नेता पुत्र मोदी लहर के मखमली रेड कार्पेट पर

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  • मनीष खंडूरी ने कांग्रेस से इस्तीफे के चौबीस घंटे बाद ही ज्वाइन की बीजेपी
  • पांच साल पहले राहुल गांधी और कांग्रेस के साथ बदलाव करने उतरे आज खुद पाला बदल गए

Manish Khanduri joins BJP: नेता पुत्र और पुत्रियां बदलाव के बड़े बड़े सपने लेकर अपने घर ले अंगना से पैर लांघकर सत्ता के बीहड़ में पूरे जोश ओ खरोश के साथ उतर तो जाते हैं लेकिन फिर जल्दी ही इन स्पून फिडिंग नेताजी किड्स का मोहभंग होने लगता है और उनको अपनी विरासत में सत्ता के साथ गुजारा वक्त याद आने लगता है। फिर हकीकत की जमीन पर बिछे कांटे पैरों को लहूलुहान करने लगते हैं, तो पाला बदल कर सत्ता की चकाचौंध में शुमार होने को बेचैन होने लगते हैं। इस खेल के नए खिलाड़ी मनीष खंडूरी हैं।

याद कीजिए 2011-12 का वो दौर जब डॉ रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री की कुर्सी से बेदखल कर अन्ना आंदोलन से बही हवा का सियासी इस्तेमाल करने के लिए बीजेपी ने नारा दिया था,”खंडूरी है जरूरी”। ये अलग बात है कि खंडूरी को कोटद्वार की जनता ने गैर जरूरी कह दिया और 31-32 के खेल में सत्ता की चाबी कांग्रेस के हाथ लग गई थी।

अब लौट आइए आज के दौर में। आज पूर्व मुख्यमंत्री मेजर जनरल (रि०) भुवन चन्द्र खंडूरी के पुत्र मनीष खंडूरी ने बीजेपी ज्वाइन कर नारा लगाया है कि खंडूरी के लिए बीजेपी है जरूरी। दरअसल, मनीष खंडूरी पांच साल पहले अपने पिता की विरासत बीजेपी में अपनी बहन ऋतु खंडूरी भूषण के हवाले कर खुद विरोधी दल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। अब जनरल खंडूरी के बेटे थे तो ज्वाइनिंग कराने भी खुद कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे राहुल गांधी मंच पर आए।

 लेकिन महज पांच साल ने ही जनरल के बेटे मनीष जान गए कि पौड़ी गढ़वाल की नुमाइंदी भले उनके घर से कई बार होती रही हो लेकिन मोदी-शाह दौर में अपने पिता की पार्टी से मुकाबला करते हुए पौड़ी की सत्ता का पहाड़ फतह करने से वे तो रहे। इसलिए मनीष खंडूरी ने भी बाकी कई नेता पुत्र-पुत्रियों की तरह संघर्ष की पथरीली पगडंडी छोड़कर सत्ता की तरफ जाने वाला आसान रास्ता चुनना बेहतर समझा। 

दरअसल, विपक्ष की राजनीति के लिए जो जुझारूपन और जीवटता की दरकार होनी चाहिए उस खांचे में मनीष खंडूरी खुद को कमतर पा रहे होंगे। वरना 24 घंटे पहले तक जो युवा राजनेता अपने सोशल मीडिया में अंकिता भंडारी को न्याय दिलाने का संकल्प लेता दिख रहा था, वह अचानक कैसे पालाबदल कर सकता था। या तो अंकिता भंडारी को लेकर मनीष खंडूरी जब पौड़ी में आंदोलन की राह पर थे वो उनका सियासी स्टैंड भर था न कि न्याय की जंग या फिर अब सत्ता प्रतिष्ठान में जगह पाने की उनकी चाहत उनको अंकिता भंडारी से मुंह मोड़ अपनी विरासत की राजनीति संभालने को बीजेपी में खींच लाई यही उनकी हकीकत है! 

भले कांग्रेस कॉरिडोर्स में पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट पर पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल की दावेदारी देखी जा रही हो लेकिन अगर मनीष खंडूरी चुनाव लड़ना चाहते तो उनको टिकट दिलाने ली पैरवी खुद राहुल गांधी कर रहे होते। लेकिन न मनीष खंडूरी ने 2022 का विधानसभा चुनाव लड़ने की हामी भरी थी और ना ही उनमें कांग्रेस का झंडा लेकर 2024 में संभावित मोदी लहर के सामने टिक पाने का माद्दा अभी बचा हुआ था। यही वजह है कि मनीष खंडूरी ने कांग्रेस द्वारा टिकट के किसी भी तरह के ऐलान से पहले ही रण छोड़ देना बेहतर समझा। 

अब सवाल है कि बीजेपी में मनीष खंडूरी का सियासी भविष्य क्या होगा? क्या बीजेपी का पटका पहनते ही उनको भी कई राज्यों में जो हो रहा वैसे ही लोकसभा का टिकट मिल जाएगा? खंडूरी के बीजेपी में आने के बाद पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट को लेकर उनके नाम की चर्चा चलना स्वाभाविक है क्योंकि पहाड़ पॉलिटिक्स की सबसे हॉट सीट उनके पिता जनरल खंडूरी की राजनीतिक कर्मभूमि रही है। लेकिन मनीष जब राहुल गांधी और कांग्रेस के मंच से सत्ता परिवर्तन की कोशिश कर रहे थे तब तक उनकी बहन ऋतु खंडूरी भूषण पिता की विरासत मजबूती से संभाल चुकी थी। मनीष खंडूरी के लिए अब बीजेपी में पौड़ी गढ़वाल लोकसभा का रास्ता आसान नहीं रहा हैं। 

तो क्या मनीष खंडूरी अपने सियासी भविष्य पर फिलहाल ब्रेक लगाकर ऋतु खंडूरी का रास्ता आसान बनाने के लिए बीजेपी में आए हैं? आखिर मुख्यमंत्री के तौर पर युवा होने के बावजूद पुष्कर सिंह धामी की लव जिहाद, लैंड जिहाद से लेकर यूसीसी के जरिए जो मजबूत पेशबंदी हो चुकी है उसकी घेराबंदी करना गढ़वाल के कई क्षत्रपों का छिपा सपना जरूर ही सकता है लेकिन उसे हकीकत में तामील कर पाना बेहद कठिन जान पड़ रहा। बहरहाल अभी नजर इस पर होनी चाहिए कि पौड़ी गढ़वाल और हरिद्वार में मोदी-शाह दांव किन शहरों पर लगाते हैं क्योंकि उसी के बाद मनीष खंडूरी सहित कई दिग्गजों के भविष्य का अक्स साफ साफ दिखलाई दे सकता है!

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