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भ्रष्टाचार की ‘मियावाकी’ नर्सरी!  नेता प्रतिपक्ष आर्य ने वन महकमे से पूछे ये सवाल

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उत्तराखंड वन विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी है। पौधारोपण जैसे गंभीर पर्यावरणीय कार्यों को भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं छोड़ा गया: नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य

Uttarakhand: वन महकमे में जिस तरह से 10 रु का पौधा दस गुना ज़्यादा यानी 100 रु में खरीद कांड का भंडाफोड़ हुआ है, यह बेहद चौंकाने वाला मामला है। इस मामले को देखकर लगता है कि भ्रष्टाचार की फलती-फूलती नर्सरी प्रदेश के राजस्व की पौध को नोंच-नोंच कर निगल जाने को आतुर है। बस उसे मौक़ा चाहिए फिर चाहे कूड़े की ज़मीन हरिद्वार में करोड़ों में ख़रीद डालने का कांड रहा हो या फिर ये ताजा मामला!  भ्रष्टाचार के इस नए और अनोखे कांड के खुलासे के बाद विपक्षी कांग्रेस हमलावर है और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने विभाग को निशाने पर ले लिया है। 

नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा है कि उत्तराखंड एक हरित प्रदेश है और यहां हरयाली प्रदेश का जीवन है लेकिन इस जीवन को बचाने वाले विभाग यानी वन विभाग खुद ही सवालों के घेरे में आ गया है। देहरादून जिले के झाझरा क्षेत्र में मियावाकी पद्धति से पौधे लगाने के लिए तीन साल की अवधि में 52.40 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से खर्च का प्रस्ताव तैयार किया गया। यह वही तकनीक है जिससे साल 2020 में देहरादून के कालसी क्षेत्र में पौधे लगाए गए थे और उस समय जो खर्च आया था वो 11.86 लाख प्रति हेक्टेयर था। 

यशपाल आर्य ने कहा कि झाझरा प्रोजेक्ट में सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि 18333 पौधों के लिए 100 रुपये प्रति पौधे की दर से 18.33 लाख खर्च आना बताया गया है। जबकि 2020 में ऐसे ही एक मामले में कालसी प्रोजेक्ट में यही पौधे, 10 रुपये प्रति पौधा की दर से लगाए गए थे। यानी एक ही काम एक ही विभाग लेकिन खर्च 10 गुना अधिक आखिर कैसे?

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि इसी प्रकार मसूरी वन प्रभाग ने भी मियावाकी तकनीक से 5 वर्षों के लिए पौधारोपण का प्रस्ताव तैयार किया है, जिसकी लागत ₹4.26 करोड़ बताई गई है। यह काम 6 रेंजों में कुल 6 हेक्टेयर भूमि पर होना है। जबकि तय मानकों के अनुसार करीब 84 लाख रुपये ही पर्याप्त माने जाते हैं। इतना ही नहीं, मसूरी के प्रस्ताव में यह तक नहीं बताया गया कि कौन-कौन सी स्थानीय प्रजातियाँ लगाई जाएंगी, जो इस पद्धति की मूलभूत शर्त है।

उन्होंने कहा कि महत्वपूर्ण सवाल है कि जब विभाग के पास खुद की तकनीकी रूप से सक्षम नर्सरी मौजूद हैं, तो फिर इतनी ऊंची दरों पर बाहर से पौधे बनवाने का प्रस्ताव क्यों दिया गया? 

यशपाल आर्य ने कहा कि सर्वविदित है कि पूर्व में भी उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सीएजी रिपोर्ट सदन में रखी गई थी जिसमें ऐसे कई उदाहरण सामने आए हैं, जहां CAMPA के फंड को,जो फंड वन संरक्षण और वनीकरण के लिए निर्धारित था, उसका उपयोग गैर-जरूरी खर्चों के लिए किया गया। इस फण्ड के ज़रिए आईफोन, लैपटॉप, और रेफ्रिजरेटर जैसे सामान ख़रीदे गए और इस तरह करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए। 

नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि इन सभी मामलों से यह साफ हो जाता है कि उत्तराखंड वन विभाग में पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी है। पौधारोपण जैसे गंभीर पर्यावरणीय कार्यों को भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं छोड़ा गया है। यह न सिर्फ प्रशासनिक लापरवाही का मामला है, बल्कि इसमें गहरे स्तर पर संभावित भ्रष्टाचार की बू आती है।

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