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Cabinet reshuffle on the cards:मिशन 2024 के लिए टीम मोदी का मेकओवर तय, टीम धामी में किसको मौका, कौन जाएगा!

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ADDA In-Depth: वैसे तो पिछले साढ़े आठ सालों में प्रधानमंत्री मोदी का हर फैसला एक खास सरप्राइज़ एलिमेंट लिए ही रहा है फिर कैबिनेट रिशफल में तो शर्तिया shock exits and surprise entries रहनी ही रहनी हैं। भूल गए जुलाई 2021 में रविशंकर प्रसाद से लेकर प्रकाश जावड़ेकर और डॉ रमेश पोखरियाल निशंक जैसे मोदी सरकार के धनुर्धरों का ढेर होना।

बताइए जब इन दिग्गज मंत्रियों की कुर्सी एक झटके में छिन गई थी तब कितने राजनीतिक पंडितों को इसका जरा भी इलहाम रहा होगा! जाहिर है फिर इस बार तो बड़ी लड़ाई की तैयारी है लिहाजा कैबिनेट reshuffle से पहले इस्तीफों का भयंकर कत्लेआम नजर आए तो चौकिएगा नहीं। इसी महीने 16-17 को बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी (नेशनल एक्जीक्यूटिव) बैठक है और 31 जनवरी से Parliament का बजट सत्र शुरू हो रहा लिहाजा जो होना होगा उसकी ज्यादा संभावना 30 जनवरी तक ही होने की है।

आखिर प्रधानमंत्री मोदी ठीक तब 2024 के फाइनल और ठीक उससे पहले इसी साल होने वाले 10 राज्यों के चुनावी मुकाबले यानी सेमीफाइनल को एजेंडे में रखते हुए अपने सारथी और सेनापतियों की पलटन को अंतिम रूप देने जा रहे हैं, जब ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस में नई जान फूंकने का इरादा लिए राहुल गांधी जम्मू कश्मीर के श्रीनगर के लालचौक की तरफ तिरंगा लिए बढ़ रहे हैं। अंदाजा आप बखूबी लगा सकते हैं कि आखिर टी शर्ट पहनकर कड़ाके की ठंड में सियासी पारा गरमा रहे राहुल गांधी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी और उनके सियासी चाणक्य गृह मंत्री शाह ने किस तरह की व्यूहरचना सोच रखी होगी।

दिल्ली के तख्त पर 2019 में और ज्यादा ताकतवर होकर दोबारा काबिज हुए नरेंद्र मोदी गुजरे सालों में पॉलिटिकली कितना कंफर्टेबल रहे इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि 2014 में पहली बार देश का प्रधानमंत्री बनने बाद पांच सालों में एक दो नहीं बल्कि पूरे तीन बार मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था। लेकिन जुलाई 2021 के बाद 2023 में यह दूसरा मौका होगा जब प्रधानमंत्री मोदी अपनी टीम में तब्दीलियां यानी कैबिनेट रिशफ्ल करने जा रहे हैं।

जाहिर है गुजरात में ऐतिहासिक जीत के बावजूद मोदी शाह के सीने में हिमाचल की हार तो खंजर की मानिंद खटक ही रही है, दिल्ली एमसीडी का दर्द भी केजरीवाल ने ऐसा दिया है कि 2022 जाते जाते पांच राज्यों की जीत का जश्न बेस्वाद कर गया है।

अब जब लोकसभा चुनाव को सवा साल का वक्त बचा है और उससे पहले दक्षिण के दुर्ग कर्नाटक, रेगिस्तान में राजस्थान का रण छिड़ने से लेकर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित 10 राज्यों के दंगल का नगाड़ा बजने जा रहा है, तब मोदी हिमाचल और दिल्ली एमसीडी में नकारा साबित हुए चेहरों को तो चिन्हित करना चाहेंगे ही, कर्नाटक से लेकर राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना की पॉलिटिकल पिच पर बैटिंग लायक माहौल बनाने में मददगार चेहरों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने से नहीं चूकेंगे।

फिर राजस्थान के रण में आए दिन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को ललकार रहे किरोड़ीलाल मीणा हों या गुजरात की जीत में मददगार सीआर पाटिल। वैसे भी राजस्थान से 25 में से 24 सांसद जिताकर भी केंद्र में मंत्री महज चार ही बनाए गए थे।

देखना दिलचस्प होगा कि अगर हिमाचल की हार का ठीकरा जेपी नड्डा के सर फूटता है, तो सीआर पाटिल और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान में किसे संगठन में उनका उत्तराधिकारी बनाया जाता है! हालांकि नड्डा को अभी चुका मान लेना भी जल्दबाजी होगी क्योंकि नड्डा लॉयलिस्ट पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को हार के बावजूद हिमाचल में विपक्ष के नेता बना दिया गया है।

बिहार की सियासत राम विलास पासवान के भाई पशुपति कुमार पारस को बगल में लेकर भतीजे चिराग पासवान का सियासी चिराग गुल करने का दांव पुरानी बात हुई,अब जब आरजेडी जेडीयू यानी लालू नीतीश कुमार के हो गए हैं तब मोदी शाह संभव है कि बिहार की भावी राजनीति साधने को चिराग पासवान को कैबिनेट कुर्सी सौंप दें।

वैसे भी मुख्तार अब्बास नकवी घर बैठे हैं तो जेडीयू और उद्धव का शिवसेना गुट भी विपक्ष में बैठ चुका है लिहाजा चिराग पासवान के अलावा महाराष्ट्र सीएम एकनाथ शिंदे के शिवसेना गुट को मोदी मंत्रिमंडल में जगह दिया जाना तय माना जा रहा है।

सवाल है कि जब मोदी मंत्रिमंडल में मेजर सर्जरी की तैयारी हो रही है, तब क्या इस साल के चुनावी राज्यों के अलावा भी पॉलिटिकली इंपोर्टेंस रखने वाले यूपी, बंगाल, महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तराखंड जैसे राज्यों पर भी फेरबदल का असर पड़ेगा?

इस सवाल का जवाब है कि लाजिमी तौर पर जब नजर चौबीस पर होगी तो न यूपी इग्नोर होगा और ना देवभूमि उत्तराखंड, जहां केदारनाथ से प्रधानमंत्री मोदी हमेशा बड़ा मैसेज देते रहे हैं। जुलाई 2021 में मोदी सरकार 2.0 का पहला रिशअफल हुआ था तो असर उत्तराखंड में दिखा था और शिक्षा जैसा बेहद अहम मंत्रालय संभाल रहे हरिद्वार सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक की छुट्टी हो गई थी। उसके बदले अजय भट्ट को केंद्र में रक्षा और पर्यटन राज्यमंत्री बनाया गया था।


सवाल है कि अब जब उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में दोबारा बीजेपी सत्ता पर काबिज है और सिर्फ अजय भट्ट की नैनीताल और निशंक की हरिद्वार सीट पर कांग्रेस बीजेपी पर भारी पड़ती नजर आई है, तब मोदी कैबिनेट में फेरबदल का असर यहां पड़ेगा? निशंक का राजनीतिक फ्यूचर हिचकोले ही खाता रहेगा या फिर कोई सियासी संजीवनी मिलती दिखेगी?

अंकिता भंडारी हत्याकांड ने पौड़ी गढ़वाल में भी बीजेपी को बड़ा डैमेज किया है, तो क्या महज पौने चार महीने में ही सीएम कुर्सी गंवा बैठे तीरथ सिंह रावत के लिए कोई उम्मीद की किरण दिख सकती है या फिर चौबीस की चुनौती देने के खातिर त्रिवेंद्र सिंह रावत से लेकर कर्नल अजय कोठियाल या कोई और उनकी टिकट ही ले उड़ेगा ! क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी बखूबी जानते हैं कि दिल्ली के तख्त पर ताजपोशी की हैट्रिक लगाने के लिए इस बार गुजरात की तर्ज पर सिटिंग सांसदों के विकेट चटकाना राजनीतिक मजबूरी भी होगा और जरूरी भी! इसी आस में टिहरी, पौड़ी, अल्मोड़ा और हरिद्वार तक सिटिंग सांसदों के अलावा न जाने कितने नए-नए दावेदार घूम रहे हैं।

चर्चा मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल की चली है तो बीजेपी मीडिया इंचार्ज और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी के हिस्से कैबिनेट में कुर्सी आएगी या फिर हर बार की तर्ज पर जैसे सीएम कुर्सी फिसली वैसे ही मोदी मंत्रिमंडल में जगह पाने का इंतजार और लंबा खींचेगा? बलूनी और धामी कैबिनेट में मंत्री डॉ धन सिंह रावत की स्थिति करीब करीब एक जैसी हो गई है। उत्तराखंड में जब भी नए सीएम की बात चलती है, मीडिया में सुर्खियां सबसे ज्यादा बलूनी और धन दा ही पाते हैं लेकिन कुर्सी त्रिवेंद्र, तीरथ से धामी और खटीमा की हार के बाजजूद फिर धामी को ही कुर्सी सौंप कर मोदी शाह ने बलूनी और धन दा की हसरतों पर मानो “ठंड में ठंडा पानी” उड़ेल दिया है।

सवाल है कि क्या बलूनी इस बार सूचना और प्रसारण मंत्रालय जैसा विभाग मोदी कैबिनेट reshuffle में पा जाएंगे या अभी बीजेपी मीडिया विभाग के जरिए मोदी-शाह पॉवर कैंप में “वाइल्ड कार्ड एंट्री” के जरिए जमे रहेंगे?

अब जब दिल्ली से लेकर राज्यों तक मोदी मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल की हवा चल रही है, तब क्या उत्तराखंड में बहुप्रतीक्षित धामी कैबिनेट का विस्तार भी “on the card’s’ है क्या? वैसे भी धामी मंत्रिमंडल की कुल क्षमता सीएम के समेत 12 कुर्सियों की है लेकिन एक चौथाई यानी 3 मंत्री पद रिक्त हैं। जाहिर है छोटे राज्यों में एक तो अधिकतम मंत्रिमंडल के आकार की सीएम 12 पर अटक जाती है, ऊपर से एक चौथाई मंत्री पद रिक्त होना पॉलिटिकल लिहाज से भले बीजेपी नेतृत्व को रास आ रहा हो इस स्थिति को राज्य हित तो कतई करार नहीं दिया जा सकता है

खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी चाहेंगे कि जल्द से जल्द नए मंत्री बने और 26 जनवरी की सलामी लें ताकि उनके हाथ मजबूत करने वाले कुछ और चेहरे सरकार में दिखें। जोशीमठ भू धंसाव से पैदा आपदा हो या कोई दूसरा मौका मुख्यमंत्री अकेले दौड़ते नजर आए हैं जबकि जिन मंत्रियों को प्रभारी मंत्री या पॉलिटिकल हैसियत के लिहाज से जब ग्राउंड जीरो पर होना था तब वे कहीं दूसरे कामों में व्यस्त नजर आए।


जोशीमठ में भी प्रभारी मंत्री के नाते डॉ धन सिंह रावत के रिस्पॉन्स को पार्टी कॉरिडोर्स से लेकर पॉवर कोरिडोर्स में कुछ इसी नजरिए से देखा गया है। हालांकि हालत भांपकर या दिल्ली से संकेत पाकर धन दा गुरुवार शाम को जोशीमठ की तरफ दौड़े हैं। उससे पहले वे महेंद्र भट्ट के साथ गए जरूर पर खानापूर्ति कर लौट भी आए थे।

सतपाल महाराज पौड़ी गढ़वाल के सांसद रहे हैं और उनका आज भी चमोली जिले में असर है। इतना ही नहीं धामी कैबिनेट में उनके पास PWD से लेकर पर्यटन और धर्म संस्कृति जैसे अहम विभाग हैं जिसके चलते उनकी उपस्थिति ग्राउंड जीरो पर अपेक्षित थी लेकिन वे महज अखबारों में बयान और उनकी कटिंग ट्विटर पर चस्पां कर जोशीमठ की दरारें भर रहे हैं।

सवाल है कि तो फिर क्या ऐसे मंत्रियों से मुख्यमंत्री धामी को खास मदद नहीं मिल पा रही तो क्या संभावित कैबिनेट फेरबदल में इन बड़े चेहरों पर गाज गिर सकती है? कम से कम मेरे लिए तो यह मानना कठिन होगा।

आखिर सीएम पुष्कर सिंह धामी से लेकर मोदी-शाह मंत्रियों में प्रेमचंद, रेखा, चंदन और जोशी, महाराज, धनदा, सुबोध के कामकाज का आकलन किस आधार पर कर रहे होंगे इसका अंदाजा तो जब मंत्रिमंडल विस्तार फेरबदल का एलान हो जाए और राजभवन में शपथ ग्रहण का नजारा देखकर ही ठीक ठीक हो पाएगा।

क्या परफॉर्मेंस के पैमाने पर मंत्रियों को ड्रॉप भी किया जा सकता है या फिर सिर्फ विभागों में रिशफलिंग करके काम चल जाएगा? मंत्रियों के विभागों की ही रिशफ्लिंग हुई तो महाराज, धन दा या किस हैवीवेट को हल्का किया जाएगा और धामी सरकार 2.0 के शपथ ग्रहण में हल्का कर देने से आहत होकर घूम रहे सुबोध उनियाल को फिर वजनदार बनाया जाएगा क्या?

स्पीकर रहते विधानसभा में बैकडोर भर्तियां कर ऋतु खंडूरी के प्रहार से भड़की आग में तप रहे प्रेमचंद अग्रवाल मंत्री पद गंवाकर हाथ जला बैठेंगे या फिर बचे रह जाएंगे? यह सवाल भी सियासी गलियारे का आज सुलगता सवाल है जिसका अंतिम जवाब संभावित मंत्रिमण्डल विस्तार से ही मिल सकता है।

बात अगर सिर्फ खाली पड़े तीनों मंत्री पद भरने की हुई तो वो तीन नाम कौनसे होंगे? मेरा सवाल सुनते ही बगल से किसी ने पूछा- देवप्रयाग से दूसरी बार के विधायक विनोद कंडारी का नाम चलाने में क्या हर्ज है। तब किसी ने कहा एक नाम रानीखेत से विधायक बने प्रदीप नैनवाल का भी चलवा दीजिए। और जब बीजेपी कोरिडोर्स में नए नाम दौड़ ही रहे तो किसी ने उधमसिंहजनगर जिले से रुद्रपुर विधायक शिव अरोड़ा का आगे कर दिया।

जाहिर है धामी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ तो नाम भी बदलते देर नहीं लगेगी और न कुछेक के पांव उखड़ते! सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या कैबिनेट reshuffle हो भी रहा है? तो जवाब यही है कि मोदी मंत्रिमंडल में फेरबदल सत्ता के सेमीफाइनल और फाइनल की तैयारी में तय दिख रहा,तारीख भले कुछ आगे पीछे हो जाएं। परंतु जोशीमठ की आपदा के बाद धामी कैबिनेट फेरबदल – विस्तार को टालने का भरपूर बहाना बनाया जा सकता है। आपका क्या ख्याल है ?

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