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नए सीएम के साथ पुराने मंत्री भी लेंगे शपथ: पार्टी अनुशासन पर आलाकमान के फ़रमान के बाद नाराजगी वाले तेवर हवा

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रविवार को राजभवन में शाम 5:30 बजे शपथग्रहण समारोह
टीएसआर 1 और टीएसआर 2 रिजीम के कुछ वरिष्ठ मंत्रियों की नाराजगी की खबरों को पार्टी ने किया खारिज
दिल्ली से रविवार दोपहर 1:30 बजे तक आलाकमान का मैसेज पहुँचेगा
सतपाल महाराज, हरक सिंह रावत सहित सभी वरिष्ठ मंत्री लेंगे शपथ

देहरादून: उत्तराखंड के 11 वें मुख्यमंत्री के तौर पर खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी रविवार शाम 5:30 बजे पद और गोपनीयता की शपथ लेंगे। नए मुख्यमंत्री के साथ उनका पूरा मंत्रीमंडल भी शपथ लेगा। केन्द्रीय ऑब्ज़र्वर के रूप में आए कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर लिस्ट लेकर गए हैं और आलाकमान से विचार-विमर्श के बाद रविवार दोपह तक पार्टी नेतृत्व का मैसेज देहरादून पहुँच जाएगा।
दरअसल पुष्कर सिंह धामी को विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद सतपाल महाराज और कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं की नाराजगी की अटकलें लगनी शुरू हो गई थी और ये चर्चा का विषय बन गया कि कौन-कौन वरिष्ठ विधायक शपथ लेने वालों में शामिल होगा। लेकिन बीजेपी सूत्रों ने दावा किया कि कल दोपहर एक-डेढ़ बजे कर पार्टी आलाकमान का मैसेज आ जाएगा और जिनको भी कहा जाएगा वे हर हाल में शपथ लेंगे। पार्टी सूत्रों के अनुसार तीरथ मंत्रिमंडल के सभी चेहेरे टीम धामी का हिस्सा बनेंगे।सूत्रों ने दावा किया है कि इसकी बहुत कम संभावना है कि किसी को ड्रॉप कर नए चेहरे को मौका दिया जाए।
बहरहाल इन सब दावों के बीच एक ही सवाल कि 2017 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद से तीसरी बार मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे समझे जा रहे और मुख्यमंत्री बनने के लिए ही विधानसभा चुनाव लड़ने वाले सतपाल महाराज तीसरी बार भी मंत्री बनकर संतुष्ट हो पाएंगे!

पहले से खफा चल रहे डॉ हरक सिंह रावत के लिए भी टीम धामी का हिस्सा बनना कठिन हो सकता है क्योंकि उनका दर्द पहले के मुख्यमंत्रियों के जूनियर होने को लेकर छलकता रहा है। अब महाराज, हरक, आर्य जैसे वरिष्ठ नेताओं में टीम धामी के सिपहसालार बनने को लेकर भले नाराजगी या निरुत्साह दिख रहा हो लेकिन पार्टी अनुशासन के सख्त संदेश के बाद मजबूर होकर शपथ लेने के अलावा कोई चारा नहीं दिख रहा। कांग्रेस के जमाने की बात अलग थी जब हरक सिंह रावत ने धारीदेवी की सौगंध खाते हुए मंत्रीपद को जूते की नोंक पर रख दिया था और पार्टी में बने भी रहे तथा मान-मनौव्वल के बाद ही मंत्री बने। अनुशासन को लेकर सख्त बीजेपी में रहकर नाराजगी की कांग्रेस जैसी आजादी शायद ही महाराज या हरक सिंह को मिले।

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