अड्डा Insider: चिराग को ‘तूफ़ान’ से टकराने का वहम देकर बीजेपी अब कहां चली गई! पिता रामविलास पासवान की बनाई पार्टी में ही ‘चिराग’ तले अंधेरा, मौसम वैज्ञानिक का बेटा दल और दिल की दरार भांपने में नाकाम

फ़ाइल फोटो: सांसद चिराग पासवान एवं बिहार सीएम नीतीश कुमार
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दिल्ली: अब इसे लोजपा में चिराग पासवान के लिए ‘चिराग’ तले अंधेरा नहीं कहेंगे तो भला और क्या कहेंगे! बिहार चुनाव में बीजेपी की शह पर सुशासन बाबू का कद छोटा कराने निकले चिराग पासवान आज न घर के रहे न घाट के। इस सब के बावजूद न मोदी-शाह और न बीजेपी ही चाहकर भी चिराग की एलजेपी में सियासत बुझने से बचा सकती है। बिहार विधानसभा की मौजूदा सूरत ऐसी कतई नहीं कि बीजेपी नीतीश को नाराज करने का जोखिम उठाए क्योंकि उसे आरजेडी और जेडीयू को फिर से एक होते देखना कतई ग़ंवारा नहीं होगा। इसलिए नीतीश ठीक चुनाव निपटते ही चिराग के चलते लगे सियासी झटके का हिसाब चुकता करने के खेल में लग गए थे। आखिर एनडीए से हटकर नीतीश के खिलाफ हर सीट पर वोट कटवा उम्मीदवार लड़ाकर चिराग पासवान ने बिहार गठबंधन की दो-ढाई दशक की बीजेपी-जेडीयू तस्वीर बदल डाली जिसमें अब तक नीतीश की पार्टी बड़े भाई की भूमिका में रहती आई, उसे पहली बार बीजेपी से निचले पायदान पर सिमटना पड़ा। अब बारी नीतीश कुमार की थी।
बिहार की राजनीति की गहरी समझ रखने वाले नतीजों के बाद से कहते रहे कि नीतीश चिराग से मिले जख्म का हिसाब चुकता
ज़रूर करेंगे और आज वो वक्त आ गया जब LJP में तख्तापलट करा दिया गया और चिराग पासवान ही अपने पिता की बनाई पार्टी में अब्दुल्ला बेगाने हो गए। इस तख्तापलट की अगुआई खुद चिराग के चाचा पशुपति कुमार पारस ने की और उनको नेता मानते हुए चार सांसद चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज ने मिलकर चिराग को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटा बाहर कर दिया है। LJP का बिहार में आज एक भी विधायक नहीं है और पार्टी के कुल छह सांसद हैं जिनमें पांच एक तरफ हो गए हैं लिहाजा चिराग अकेले रह गए हैं। अब बागी गुट ने खुद को असली LJP करार देते हुए चिराग के चाचा सांसद पशुपति कुमार पारस को राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ साथ संसदीय दल का नेता चुन लिया है।
कहते हैं कि चिराग के चाचा पशुपति से लेकर चचेरे भाई प्रिंस राज और रामविलास के करीबी रहे सूरजभान सिंह ने चिराग को एनडीए छोड़कर नीतीश के खिलाफ खुला ताल ठोकने से रोका था लेकिन चिराग न फैसलों में किसी की सुनते थे न बैठकों में किसी को तवज्जो देते थे। बीजेपी से अंदरूनी तौर पर मिले किसी खास ‘आश्वासन’ के बूते चिराग ने बड़ी लड़ाई मोल ले ली लेकिन दल और दिलों में बढ़ रही दूरियां या तो भाँप ही नहीं पाए या नजरअंदाजी कर गए। अब सवाल है कि क्या चिराग की सियासी लौ को बचाने में बिहार चुनाव पूर्व मिले ‘आश्वासन’ काम आएंगे!


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