देहरादून: भाजपा की राजनीति के लिहाज से आज का दिन बेहद अहम रहा है। मोदी-शाह की नई भाजपा ने अभूतपूर्व फैसला लेते हुए खटीमा से विधानसभा चुनाव हारने के बावजूद कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ही उत्तराखंड का अगला मुख्यमंत्री बनाने का फैसला किया है। केन्द्रीय पर्यवेक्षक राजनाथ सिंह और मीनाक्षी लेखी की मौजूदगी में उत्तराखंड भाजपा विधायक दल ने अपने नेता के तौर पर पुष्कर सिंह धामी को चुन लिया है।
यह कोई छोटी राजनीतिक घटना नहीं है क्योंकि इससे पहले भाजपा की राजनीति में कभी ऐसा हुआ नहीं कि हार के बाद किसी सीएम चेहरे की ही ताजपोशी कर दी जाए। पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश इसका उदाहरण है जहां पिछले चुनाव में सीएम चेहरे प्रेम कुमार धूमल को हार के बाद पार्टी की जीत का क्रेडिट देते सीएम नहीं बनाया गया था।
आखिर ऐसा क्या खास रहा कि मोदी-शाह ने खटीमा की हार के बावजूद अगले चीफ मिनिस्टर के लिए धामी के नाम पर हामी भर दी? आइए आपको बताते हैं वो चार वजहें जिनके चलते चुनावी हार के बावजूद धामी भाजपा के लिए जरूरी हो गए।
वजह नंबर 1: मोदी के बाद उत्तराखंड में भाजपा के पक्ष में वोटर्स को लुभाने वाले नेता बनकर उबर धामी
धामी के नाम पर हार के बावजूद दोबारा सीएम बनाने को लेकर लगी मुहर की सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रदेश से भाजपा आलाकमान को यह मैसेज गया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मैजिक तो जमकर चला ही लेकिन मुख्यमंत्री के नाते पुष्कर सिंह धामी ने त्रिवेंद्र-तीरथ के समय बने नकारात्मक माहौल को न केवल क़ाबू किया बल्कि पार्टी काडर से लेकर विधायकों में पॉजीटिव मैसेज दिया। जनता में ‘सबके लिए सुलभ मुख्यमंत्री’ की छवि गढ़ने का प्रयास किया और कर्मचारियों से लेकर नाराजगी दिखाते सरकार या सरकार से बाहर के हर तबके तक पहुंचकर ‘हीलिंग टच’ देने का प्रयास किया। धामी की इस एप्रोच ने मोदी-शाह और प्रदेश की जनता में संदेश दिया कि वह राजनीतिक पिच पर चुनावी मौसम में ट्विवेंटी-ट्विवेंटी के धाकड़ बल्लेबाज़ तो हैं ही, अगर मौका दिया जाए तो पांच साल की लंबी सधी पारी भी खेल सकते हैं। यही वजह रही कि मोदी-शाह ने 47 विधायकों और लोकसभा-राज्यसभा के भाजपा सांसदों में दावेदारों की बड़ी फ़ौज को दरकिनार कर धामी पर हामी भर दी।
वजह नंबर 2: चुनाव लड़ाने आए केन्द्रीय नेताओं को बनाया अपने कौशल से मुरीद, हरेक ने की दिल्ली में मजबूत पैरवी
उत्तराखंड भाजपा का एक बड़ा तबका पुष्कर सिंह धामी को स्लॉग ऑवर्स में बैटिंग के लिए उतारे जाने के कारण ‘नाइट वॉचमैन’ करार देता रहा। लेकिन धामी विरोधियों की ये सबसे बड़ी राजनीतिक भूल साबित हुई। ऐसा इसलिए कि धामी ने न केवल हर तरह के उलझे पेंच सुलझाने को लेकर कदम बढ़ाए बल्कि मोदी-शाह का दिल जीतने के साथ-साथ चुनाव लड़ाने आए तमाम केन्द्रीय नेताओं से भी बेहतर तालमेल बनाकर भविष्य की राजनीतिक जमीन मजबूत करने का दांव चला। धामी ने चुनाव प्रभारी और केन्द्रीय मंत्री प्रह्लाद जोशी, प्रदेश प्रभारी दुश्यंत गौतम से लेकर राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जैसे दिग्गजों का समर्थन भी हासिल किया। महाराष्ट्र के राज्यपाल और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी को तो पुष्कर सिंह धामी का राजनीतिक गुरु माना ही जाता है लिहाजा दूसरी पारी को लेकर उनके रोल से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है।
वजह नंबर 3: धामी का सबसे बड़े ठाकुर चेहरे के तौर पर खुद को स्थापित कर देना
धामी पर दोबारा भाजपा आलाकमान की हामी साफ इशारा करती है कि अब पहाड़ पॉलिटिक्स में वे सबसे बड़ा ठाकुर चेहरा बन गए हैं। यह कोई आसान मुकाबला नहीं था जब धामी को दोबारा अपनी ताजपोशी के रास्ते सतपाल महाराज और डॉ धन सिंह रावत जैसे दावेदारों से तो लोहा लेना ही था, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत के मुकाबले खुद को ज्यादा कद्दावर ठाकुर चेहरे के तौर पर भी स्थापित करना था। धामी ने पार्टी के भीतर लोगों से जुड़ाव बनाने की रणनीति के तहत न केवल विधायकों के एक बड़े वर्ग को अपना मुरीद बना लिया बल्कि बहुगुणा कैंप और निशंक जैसे दिग्गजों का आखिरी दौर में समर्थन हासिल पर सतपाल या त्रिवेंद्र जैसे दूसरे ठाकुर नेताओं के विरोध की मजबूत काट तैयार कर ली। यही वजह रही कि जब विधायक दल की बैठक में धामी का नाम लिया गया तो कुमाऊं से लेकर गढ़वाल तक विधायकों ने ज़ोरदार तरीके से अपना समर्थन प्रदर्शित कर दिया।
वजह नंबर 4: धामी के लिए हामी बन गया खटीमा में हार के लिए भितरघात का विक्टिम कार्ड
धामी अपनी सीट खटीमा से चुनाव हारने के बाद एक समय मुख्यमंत्री की रेस से करीब-करीब बाहर हो चुके थे। लेकिन जिस तरह से धामी ने अपनी हार के पीछे पार्टी के भीतर से ही मिले भितरघात घाव को एक विक्टिम की तरह पेश किया और चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी सहित दूसरे नेताओं का साथ भी मिला उसने धामी के प्रति प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह में हमदर्दी पैदा कर दी जो सोमवार के फैसले के तौर पर सामने आई। साफ है धामी ने केन्द्रीय नेतृत्व के समक्ष यह सिद्ध कर दिया कि सूबे की जनता तो उनके साथ थी लेकिन खटीमा में पार्टी के भीतर बैठे कुछ विध्नसंतोषियोें ने खेल बिगाड़ दिया। धामी पर हामी के जरिए मोदी-शाह ने पार्टी के भितरघातियों को भी सख्त संदेश दिया है।
जाहिर है धामी पर हामी की वजहें और भी बहुत होंगी लेकिन हार के बाद भी सत्ता मिलने का इकलौता और अपवाद बनकर रह जाएगा या यह परिपाटी बनेगा इसका परीक्षण यूपी कैबिनेट शपथग्रहण समारोह में दिख जायेगा। धामी के बाद डिप्टी सीएम रहते चुनाव हार गए केशव प्रसाद मौर्य योगी कैबिनेट का हिस्सा बन पाते हैं या नहीं यह काफी कुछ संकेत दे जाएगा।