आरटीआई कार्यकर्ता और कानून के जानकार नदीम उद्दीन ने उठाया संवैधानिक सवाल
Uttarakhand News: उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार में मंत्रियों की संख्या पूर्ण करने की मांग को लेकर काशीपुर के रहने वाले सूचना अधिकार कार्यकर्ता और अधिवक्ता नदीम उद्दीन ने राज्यपाल गुरमीत सिंह को ज्ञापन भेजा है। आरटीआई कार्यकर्ता नदीम ने अपने ज्ञापन में संविधान के अनुच्छेद 164 का हवाला देते हुए धामी कैबिनेट में रिक्त पड़े 4 मंत्री पद भरने की मांग की है।
मीडिया में जारी एक लिखित बयान में नदीम ने तर्क दिया है कि उत्तराखंड में वर्ष 2022 के विधानसभा के आम चुनाव के उपरान्त से ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(1क) के अन्तर्गत निर्धारित मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 न होने से मंत्रिपरिषद न रहकर मंत्रियों का समूह रह जाता है जिनकी सलाह पर कार्य करने का कोई प्रावधान संविधान में नहीं है।
उन्होंने आगे कहा है कि मंत्रियों की कम संख्या वाले मंत्रियों के समूह की सलाह पर किये गये कार्यों पर वैधानिक प्रश्न उठ सकते हैं। इसलिये ऐसे विवादों से बचने तथा प्रभावी लोकतंत्र के लिये राज्य में मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
ज्ञात हो कि सूचना अधिकार कार्यकर्ता और कानून के जानकार नदीम उद्दीन 32 वर्षो से अदालत में लॉ प्रैक्टिस कर रहे हैं तथा अब तक वे 44 कानूनी पुस्तकें भी लिख चुके हैं। एडवोकेट नदीम ने उत्तराखंड के राज्यपाल को भेजे ज्ञापन में संविधान के प्रावधानों के अनुरूप मंत्रि परिषद पूर्ण करने की मांग की है।
नदीम के ज्ञापन के अनुसार भारतीय संविधान के माध्यम से भारत में लोकतांत्रिक समाजवादी संसदीय गणराज्य की स्थापना की गयी है। इसमें जनता की सरकार, जनता के लिये, जनता के द्वारा चलाई जाती है। संसदीय व्यवस्था में सरकार का समस्त नियंत्रण आम जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों (सांसद/विधायकों) में से बनाई गयी मंत्रिमण्डल में निहित रहता है।
उन्होंने आगे कहा कि राज्य में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 163 के अन्तर्गत राज्यपाल के अपने विवेक से किये जाने वालेे कर्तव्यों के अतिरिक्त सभी मामलों में सहायता व सलाह देने के लिये मंत्रिपरिषद का प्रावधान है, जिसका प्रधान मुख्यमंत्री है। इससे स्पष्ट है कि राज्यपाल केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर कार्य नहीं करते बल्कि मंत्रि परिषद की सलाह पर कार्य करते हैं।
उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 164 में मंत्रियों की नियुक्ति सम्बन्धी प्रावधान है। इसमें 01-01-2004 से लागू 91वें संविधान संशोधन से जोड़े गये अनुच्छेद (1क) के परन्तुक के अनुसार किसी राज्य में मंत्रियों की संख्या बारह से कम नहीं होगी। ऐसी स्थिति में इससे कम संख्या होने पर यह मंत्रिपरिषद न रहकर मंत्रियों का समूह रह जाता है जिनकी सलाह पर कार्य करने का कोई प्रावधान संविधान में नहीं है।
कानून के जानकार नदीम ने कहा कि इसलिये ऐसी मंत्रियों की कम संख्या वाले मंत्रियों के समूह की सलाह पर किये गये कार्यों पर वैधानिक प्रश्न उठ सकते हैं। इसलिये ऐसे विवादों से बचने तथा प्रभावी लोकतंत्र के लिये राज्य में मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 किया जाना अत्यंत आवश्यक है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(1क) के अनुसार अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा करने का प्रावधान है। इसलिये महामहिम राज्यपाल द्वारा मंत्रिपरिषद पूर्ण करने व मंत्री बनाने के लिये सलाह देने के लिये मुख्यमंत्री को आदेशित किया जाना चाहिये ताकि ऐसे कानूनी विवादों से बचा जा सके तथा सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिल सके तथा वास्तविक व मजबूत लोकतंत्र लागू हो सके।
उन्होंने कहा कि राज्यपाल मंत्री बनाने के लिये सलाह के लिये सभी क्षेत्रों तथा वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व देने को भी निर्देशित कर सकते हैं। वर्तमान में सभी वर्गों व क्षेत्रों का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
वर्तमान में मुख्यमंत्री सहित न्यूनतम 12 के स्थान पर केवल 8 मंत्री ही कार्य कर रहे है। इस प्रकार केवल दो तिहाई मंत्री ही कार्यरत है और एक तिहाई कैबिनेट पद रिक्त हैं। 2022 में वर्तमान विधानसभा गठन के उपरान्त भी केवल 9 मंत्री ही बनाये गये थे। अर्थात तीन चैथाई।
आरटीआई कार्यकर्ता नदीम ने सभी वर्गों व क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व न होने को भी स्पष्ट किया है। उनके अनुसार वर्तमान में कार्यरत मुख्यमंत्री सहित 8 मंत्रियों में अनुसूचित जनजाति, जनगणना 2011 के अनुसार 16 प्रतिशत भागीदारी वाले अल्पसंख्यक वर्ग तथा 14 प्रतिशत भागीदारी वाले अन्य पिछड़ा वर्ग का तो कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है। जबकि आधी आबादी वाली महिलाओं तथा 19 प्रतिशत भागीदारी वाले अनुसूचित जाति वर्ग का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
वर्तमान मंत्री उत्तराखंड के सभी जिलों का भी प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इसमें कुमाऊं के तीन जिलों से एक-एक, कुल तीन तथा गढ़वाल के दो जिलों से 2-2 तथा एक जिले से 1 मंत्री सरकार में काबिज हैं। ऐसी स्थिति में मंत्री या सरकार में आधे से कम केवल 6 जिलों के निर्वाचित विधायक ही शामिल है। इन जिलों में पौड़ी, देहरादून के 2-2, चम्पावत, उधमसिंह नगर, अल्मोड़ा व टिहरी के 1-1 विधायक शामिल हैं।
जबकि प्रदेश के आधे से अधिक 7 जिलों नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी, हरिद्वार, चमोली तथा रूद्रप्रयाग के कोई विधायक सरकार में शामिल नहीं हैै। इस असंतुलन को ठीक किया जाना भी लोकतंत्र को मजबूत बनाने व अधिकतर जिलों व क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने के लिये आावश्यक है।
उल्लेखनीय है कि जिन जिलों के विधायकों का सरकार में मंत्रियों के रूप में प्रतिनिधित्व नहीं है जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार उनकी कुल आबादी प्रदेश की कुल आबादी की 45 प्रतिशत है।
नदीम ने स्पष्ट किया है कि भारतीय संविधान के अन्तर्गत अनुच्छेद 164(1) के अन्तर्गत मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल को करनी है। इसलिये उन्हें निर्देशित करने का भी महामहिम राज्यपाल को अधिकार है। राज्यपाल द्वारा उत्तराखंड में रहने वाले सभी वर्गों तथा क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कराने सहित मंत्री परिषद पूर्ण करने के लिये सलाह मुख्यमंत्री से मांगी जा सकती है और मुख्यमंत्री द्वारा समय से सलाह न देने पर स्वयं भी इस सम्बंध में कदम उठाये जा सकते हैं क्योंकि संविधान में राज्यपाल के मुख्यमंत्री द्वारा सलाह न देने पर मंत्री नियुक्त करने पर कोई प्रतिबंध भी नहीं है।
बहरहाल, आरटीआई कार्यकर्ता और कानून के जानकार नदीम उद्दीन के मांग वाले ज्ञापन पर राज्यपाल क्या रुख अख्तियार करते हैं यह तो समय बताएगा। लेकिन इतना तो तय है ही कि धामी कैबिनेट में एक तिहाई मंत्री पद रिक्त होने से सरकार का कामकाज तो कहीं न कहीं प्रभावित हो ही रहा होगा।
आखिर अकेले सीएम धामी के पास पचास से ज्यादा विभाग हैं और उससे भी बड़ी चिंता व चुनौती ये कि कई मंत्री देहरादून या प्रदेश में कम और दिल्ली दौड़ लगाते ज्यादा नजर आते हैं। उस पर तुर्रा ये कि यदा कदा कुछ मंत्री मुंह फुलाकर कोपभवन में भी जा बैठते हैं, तो कुछ को संभावित मंत्रिमंडल विस्तार में पूअर परफॉर्मेंस के चलते पत्ता कटने का डर सता रहा। एक दो मंत्री प्रदेश के विकास में योगदान देने के बाद अब लोकसभा चुनाव लड़कर दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी का हाथ बंटाने का सपना भी पाले घूम रहे!