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नौकरशाही के प्रमोशन समय से पूर्व शिथिलता के साथ संभव, कार्मिक रूटीन पदोन्नति को दो साल से तरस रहे: सचिवालय संघ

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देहरादून: उत्तराखंड सचिवालय संघ ने सचिवालय प्रशासन विभाग के तहत निजी सचिव संवर्ग में पिछले 2 सालों से भी लंबे वक़्त से पदोन्नति न होने का मसला अब मुख्यमंत्री दरबार तक पहुँचा दिया है। सचिवालय संघ ने मंगलवार को मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, मुख्य सचिव ओमप्रकाश और अपर मुख्य सचिव, सचिवालय प्रशासन संयुक्त सचिव को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा बयां की है। संघ ने तमाम तथ्य और आधार उपलब्ध कराने के बावजूद कार्मिकों के विभागीय प्रमोशन के रास्ते का रोड़ा बन रहे सक्षम अधिकारियों पर लचर रवैया अपनाने का आरोप लगाया है।
संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी और महासचिव विमल जोशी ने पत्र के माध्यम से सीधा आरोप लगाया है कि सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा अदूरदर्शी, अपरिपक्व निर्णय, दृष्टिकोण के कारण विगत 2 वर्ष से अधिक समय से निजी सचिव संवर्ग में पदोन्नतियां नहीं हो रही हैं। इसके कारण संवर्ग के पात्र अधिकारी और कर्मचारी पदोन्नति से वंचित हैं। पत्र में संघ ने आरोप लगाया है कि पदोन्नति से वंचित होने के कारण पात्र कार्मिकों को न केवल वित्तीय नुकसान उठाना पड़ रहा है बल्कि अनावश्यक मानसिक उत्पीड़न भी झेलना पड़ रहा है जिसका सीधे सीधे ज़िम्मेदार सचिवालय प्रशासन विभाग है।

तीरथ रावत, मुख्यमंत्री

संघ अध्यक्ष दीपक जोशी ने कहा कि जब भी ज़िम्मेदार अधिकारियों के सामने इस प्रकरण में तमाम तथ्य और पक्ष रखा गया हर बार मामले के हाईकोर्ट में लंबित होने का लॉलीपॉप थमा दिया गया है। इसके साथ साथ मात्र अपनी पूर्व में की गयी त्रुटियों को नजरअंदाज किये जाने के कारण ऐसे अन्य प्रकरणों में सशर्त पदोन्नति देने की संघ की मांग करने की काल्पनिक परिकल्पनाओं का ताना बाना बुनकर अब तक अकारण पदोन्नति रोकी गयी हैं। उन्होंने कहा कि असल मे हाईकोर्ट में दायर मामलों में पारित होने वाले अन्तिम निर्णय के अधीन संवर्ग के रिक्त पदों को पदोन्नतियों के माध्यम से भरा जा सकता है और इस पर न्याय विभाग भी विधिक परामर्श दे चुका है। न्याय विभाग के परामर्श को स्वीकार करते हुये ऐसे पात्र अधिकारियों और कर्मचारियों को पदोन्नति का लाभ दिया जा सकता है।
संघ ने कहा कि मार्च में सचिवालय प्रशासन विभाग के साथ वार्ता में कुछ नये तथ्य न आधार मांगे गए थे जिनको प्रस्तुत करने पर पदोन्नति की कार्यवाही किये जाने का आश्वासन दिया गया था लेकिन ऐसा लगता है उससे भी हाईकोर्ट का हवाला देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर दी गयी है।
दीपक जोशी ने सवाल उठाते हुए तहा कि दो माह गुज़रने को हैं लेकिन हाईकोर्ट में किसी भी तरह की प्रभावी पैरवी तथा तत्परता( urgency) नज़र नहीं आई है। यानी प्रकरण को सुप्तावस्था में रखने की रणनीति ही आगे बढ़ती दिख रही है।सचिवालय संघ ने कहा है कि इसी सन्दर्भ में मुख्य सचिव द्वारा फरवरी में ही urgency application लगाकर निर्णय तत्काल करने का आश्वासन दिया गया था लेकिन अफ़सोस वो आश्वासन भी कोरा साबित हुआ है।

ओम प्रकाश, मुख्य सचिव, उत्तराखंड


दीपक जोशी ने कहा है कि कार्मिकों की पदोन्नति जैसे रूटीन मामले में सम्पूर्ण तथ्य प्रस्तुत करने के बावजूद डीपीसी न होने से सचिवालय संघ के सदस्यों में रोष है। इसीलिए फिर से संघ की ओर से सूचित किया गया है कि निजी सचिव संवर्ग में प्रमुख निजी सचिव के पद पर्याप्त संख्या में रिक्त हैं जिनके सापेक्ष पात्र अधिकारी भी उपलब्ध हैं। उक्त अधिकारी वर्तमान समय में प्रभावी अन्तिम ज्येष्ठता सूची वर्ष 2019 एवं इससे पूर्व लागू रही ज्येष्ठता सूची वर्ष 2009 दोनों ही परिस्थितियों में पदोन्नति के वर्तमान क्रमांक पर अवस्थित हैं। लिहाजा किसी भी परिवर्तित होने वाली स्थिति में इनकी ही पदोन्नति होनी है और इनसे किसी की पदोन्नति के अवसर भी बाधित नही होने हैं। संघ ने साफ किया है कि उसकी मंशा किसी भी कार्मिक की पदावन्ति कराने की नही है बल्कि पदोन्नति से अकारण वंचित संवर्गीय कार्मिकों को लाभ उनका वाजिब हक दिलाना मात्र है।

इस सम्बन्ध में यह तथ्य भी बताया गया है कि मा0 उच्च न्यायालय द्वारा रिट याचिका संख्या- 191/2019 में पारित अन्तरिम आदेश के अधीन ही सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा संवर्ग की अन्तिम ज्येष्ठता सूची प्रख्यापित की गयी है, जो वर्तमान समय में प्रभावी है। इस ज्येष्ठता सूची में सभी आपत्तियों का विधिवत रूप से निस्तारण करते हुए सूची प्रख्यापित की गयी है, जिसे अब काल्पनिक रूप से सही और गलत कहना सचिवालय प्रशासन विभाग की कार्य प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। सचिवालय संघ ने अपने पत्र में प्रदेश की नौकरशाही को निशाना बनाते हुए प्रश्न किया गया है कि क्या ये राज्य का दुर्भाग्य नहीं है कि कार्मिकों की पदोन्नति जैसे रूटीन कार्य
के लिए भी समस्त तथ्य व आधार प्रस्तुत करने के बावजूद गुहार लगानी पड़ रही है? संघ ने कहा कि क्या रूटीन प्रकरणों को भी समय पर निस्तारित न करना आला अधिकारियों की कार्य प्रणाली को प्रदर्शित नहीं कर रहा है? क्या ऐसे आला अधिकारियों द्वारा स्वयं की पदोन्नति आदि के मामलों मे भी यही रूख रखा जाता होगा? या अपनी पदोन्नति समय से पूर्व अथवा शिथिलता के साथ कराये जाने की व्यवस्था अमल में लायी जाती होगी ? इन्हीं सब कारणों से ऐसे आला अधिकारी कार्मिकों के प्रति अपनी नकारात्मक तथा ढुलमुल रवैये की नीति से सरकार की छवि को धूमिल करने का प्रयास करते हैं तथा प्रदेश को हड़ताली प्रदेश बनाये जाने के मुख्य कारक साबित होते हैं। सचिवालय संघ द्वारा किये गए कटाक्ष अपनी जगह सही भी हैं, क्योंकि अभी हाल ही में राज्य के 2 आला अधिकारियों को उनकी पदोन्नति की नियत अवधि से पूर्व ही शिथिलता प्रदान करते हुए प्रमुख सचिव और अपर मुख्य सचिव के पदों पर पदोन्नतियों से नवाजा गया है।
इन सब तथ्यों के आधार पर सचिवालय संघ द्वारा पूर्व से समय-समय पर सभी सक्षम स्तरों पर किये जा रहे अनुरोध के क्रम में निजी सचिव संवर्ग की वर्तमान में विद्यमान अन्तिम ज्येष्ठता सूची 2019, जो सचिवालय प्रशासन विभाग द्वारा हाईकोर्ट की रिट याचिका संख्या 191/2019 में पारित निर्णय के अनुपालन में ही निर्गत की गयी है. और इसके सन्दर्भ में न्याय विभाग द्वारा भी अपना विधिक परामर्श व सहमति दी गयी है, जिसके आधार पर शीघ्रताशीघ्र सशर्त पदोन्नति की कार्यवाही पूर्ण करनी चाहिए. संघ ने कहा कि विगत 2 वर्षो से अधिक समय से अकारण पदोन्नति से वंचित रखे गये संवर्ग के पात्र कार्मिकों के पक्ष में पदोन्नति आदेश को लेकर कार्यवाही की गुहार अब मुख्यमंत्री से ही की जा रही है। सचिवालय संघ की माँग है कि मुख्यमंत्री के स्तर से त्वरित संज्ञान लेते हुए तत्काल आख्या सहित पत्रावली प्रस्तुत करने के निर्देश अपर मुख्य सचिव, सचिवालय प्रशासन विभाग को दिए गए हैं ताकि पात्र कार्मिकों के साथ न्याय हो सके।

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