Dehradun News: उत्तराखंड शासन और सचिवालय संघ में खींची तलवारें म्यान में लौटने को तैयार नहीं दिख रही हैं। सचिवालय संघ ने सीधा आरोप लगाए हुए कहा है कि गृह विभाग में अपर सचिव के स्थान पर विशेष सचिव पदनाम करते हुये उक्त पद पर आसीन किये गये अधिकारी के हस्ताक्षर अधिप्रमाणीकरण का प्रस्ताव गोपन विभाग को सन्दर्भित कर दिया गया है जिसे किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी ने दो टूक कहा कि केन्द्र सरकार की व्यवस्था के विपरीत राज्य में स्थापित प्रभारी सचिव व विशेष सचिव पद की विधि मान्यता, प्रभारी सचिव व विशेष सचिव पद के हस्ताक्षर अधिप्रमाणीकरण के विरुद्ध प्रदेश व्यापी विरोध व न्यायालय की शरण में जाने से पीछे नहीं रहेंगे।
एक प्रेस बयान जारी कर गृह विभाग में अपर सचिव के स्थान पर विशेष सचिव पदनाम करते हुये उक्त पद पर आसीन किये गये अधिकारी के हस्ताक्षर अधिप्रमाणीकरण का प्रस्ताव गोपन विभाग को सन्दर्भित किये जाने को लेकर सचिवालय संघ ने तीखी आपत्ति दर्ज की है। संघ ने स्पष्ट रूप से कहा कि गृह विभाग द्वारा की जा रही कार्यवाही पूर्णतः नियमों तथा स्थापित व्यवस्थाओं के विपरीत है।
संघ ने कहा कि गृह विभाग में अपर सचिव का पदनाम कुछ विशेष अधिकारियों के लिये परिवर्तित करते हुये विशेष सचिव किया गया है तथा अब ऐसे अधिकारियों के हस्ताक्षर अधिप्रमाणीकरण का प्रस्ताव गोपन विभाग की सहमति हेतु भेजा गया है।
इस सम्बन्ध में सोमवार को सचिवालय संघ द्वारा सचिव गोपन को भेेजे गये पत्र में अवगत कराया है कि राज्य सचिवालय में राज्य गठन से ही अपर सचिव पदनाम स्थापित है तथा किसी भी संवर्गीय ढॉंचे मेे विशेष सचिव पदनाम स्थापित नहीं है। दीपक जोशी ने कहा कि कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा भी अखिल भारतीय सेवाओं के लिए स्थापित पदों में विशेष सचिव, प्रभारी सचिव, विशेष प्रमुख सचिव आदि पदनाम से कोई पद स्वीकृत/चिन्हित नही किये गये हैं।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार द्वारा स्थापित व्यवस्था के विपरीत राज्य सचिवालय में पहले प्रभारी सचिव के पद बनाये गये हैं तथा अब व्यक्ति विशेष अधिकारी को अनुचित लाभ देने के लिए अपर सचिव गृह के स्थान पर विशेष सचिव गृह का पदनाम परिवर्तित करते हुए ऐसे अधिकारी के हस्ताक्षर अधिप्रमाणीकरण का अविधिक प्रस्ताव गोपन विभाग को सन्दर्भित किया गया है, जिसका सचिवालय संघ प्रबल विरोध करता है। इस तरह की कार्यवाही मात्र व्यक्ति विशेष को अनुचित लाभ दिये जाने मात्र हेतु किया जाना परिलक्षित है, इसका अन्य कोई जनहित परिलक्षित नहीं है।
प्रकरण के सम्बन्ध में सचिवालय संघ के अध्यक्ष दीपक जोशी ने बताया है कि यह भी दिलचस्प पहलू है कि जहां एक ओर केन्द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय, जिसके द्वारा राज्यों में अखिल भारतीय सेवाओं हेतु पद चिन्हित/स्वीकृत किये जाते हैं, के द्वारा राज्य सचिवालय में स्थापित आई0ए0एस0 संवर्ग में अपर सचिव, सचिव, प्रमुख सचिव, अपर मुख्य सचिव के पदों के सृजन के विपरीत प्रभारी सचिव के पद भी मनमाने तरीके से यहॉं के आला उच्चाधिकारियों की मनमानी एवं अनुचित लाभ लिये जाने की मंशा से स्थापित किये गये हैं, जो किसी भी प्रकार से वैधानिक नहीं माने जा सकते हैं। इतना ही नहीं भारत सरकार की अधिकारिता क्षेत्र के विपरीत राज्य सचिवालय में स्थापित किये गये प्रभारी सचिव पद की स्थापना के उपरान्त सम्बन्धित काल्पनिक पद के हस्ताक्षर अधिप्रमाणीकरण भी गोपन अनुभाग की अधिसूचना दिनांक 12.11.2020 द्वारा प्रख्यापित उत्तराखण्ड अधिप्रमाणीकरण (आदेश और अन्य लिखत) (संशोधन) नियमावली, 2020 द्वारा कर दिया गया है, जो सचिवालय कार्य प्रक्रिया मे स्थापित व्यवस्था के विपरीत होने के साथ नियमों को गठित करने वाले उच्चाधिकारियों की मनमानी को दर्शित करता है।
सचिवालय संघ द्वारा आज इस अविधिक व्यवस्था को दुरूस्त व नियमों के दायरे में रखे जाने तथा व्यक्ति विशेष अधिकारियों को अनुचित लाभ पहुंचाने की पराकाष्ठा को रोेके जाने के निमित्त गोपन विभाग से मांग की गयी है कि केन्द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय की अधिकारिता क्षेत्र से बाहर जाकर राज्य सचिवालय में स्थापित प्रभारी सचिव एवं विशेष सचिव, विशेष प्रमुख सचिव आदि पदों की विधि मान्यता के शून्य होने की प्रास्थिति को देखते हुये अधिसूचना दिनांक 12.11.2020 द्वारा प्रख्यापित उत्तराखण्ड अधिप्रमाणीकरण (आदेश और अन्य लिखत) (संशोधन) नियमावली, 2020 मंे से प्रभारी सचिव के हस्ताक्षरण अधिप्रमाणीकरण को तत्काल पृथक/विमुक्त करते हुये गृह विभाग द्वारा सन्दर्भित विशेष सचिव गृह, जो किसी भी सेवा संवर्गीय ढॉंचे में स्थापित नहीं है तथा न ही ऐसा कोई पद ही स्थायी रूप से सृजित है, के हस्ताक्षर अधिप्रमाणीकरण पर किसी भी दशा में सहमति प्रदान न की जाए।
साथ ही सचिवालय संघ के द्वारा उक्तानुसार किये गये अनुरोध/मांग के उपरान्त भी कार्यवाही न किये जाने की स्थिति में प्रदेशव्यापी आन्दोलन का मार्ग अख्तियार कर लिये जाने की सम्पूर्ण जिम्मेदारी शासन/सरकार की होने की चेतावनी देते हुये इन सभी विधिक मामलों को लेकर सक्षम न्यायालय की शरण में जाने हेतु भी बाध्य होने का जिक्र किया है।