Supreme Court upholds EWS 10percent Quota: देश में आर्थिक रूप से गरीब अगड़े तबके को 10 फीसदी आरक्षण जारी रहेगा। आज देश की सबसे बड़ी अदालत ने मोदी सरकार द्वारा सवर्ण गरीब तबके को उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में मिलने दिए 10 फीसदी EWS आरक्षण को बरकरार रखा है। आज सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 3-2 से सवर्ण गरीब को मिले आरक्षण को सही ठहराया है। हालांकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस. रविंद्र भट्ट ने EWS आरक्षण को गलत ठहराते हुए इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने बहुमत के साथ ईडब्ल्यूएस आरक्षण के पक्ष में फैसला सुनाया है। जबकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने ईडब्ल्यूएस को आरक्षण को विरोध में मत दिया लेकिन दोनों अल्पमत में रह गए।
ईडब्ल्यूएस का विरोध करते हुए जस्टिस भट्ट ने कहा कि कोटा लिमिट 50 प्रतिशत का उल्लंघन करना गलत है और यह संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि ओबीसी और एससी-एसटी वर्ग में गरीबों की सबसे ज्यादा संख्या है। ऐसे में आर्थिक आधार पर दिए जाने वाले आरक्षण से उन्हें बाहर रखना भेदभावपूर्ण है।
जस्टिस रविंद्र भट्ट ने यह भी कहा कि संविधान में सामाजिक और राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है। लेकिन आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात नहीं कही गई है। उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़ों की सबसे ज्यादा संख्या ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय के लोगों में ही हैं। ऐसे में इसके लिए अलग से आरक्षण दिए जाने की क्या जरूरत है। जस्टिस रविंद्र ने EWS कोटे को संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताते हुए कहा कि यह आरक्षण कुछ वर्गों को बाहर करता है, जो भेदभावूर्ण है।
जबकि EWS आरक्षण का समर्थन करते हुए जस्टिस जेपी पारदीवाला ने EWS आरक्षण को सही ठहराते हुए कहा कि आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता है। उन्होंने कहा कि आरक्षण किसी भी मसले का आखिरी समाधान नहीं हो सकता। यह किसी भी समस्या की समाप्ति की एक शुरुआत भर है।
गौर हो कि 2019 में मोदी सरकार ने संविधान में 103वाँ संशोधन करते हुए सवर्ण वर्ग के गरीबों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण दिया था जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।