देहरादून: एक जमाने में मोदी-शाह, खासतौर अमित शाह के बेहद करीबी रहे पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की सूबे की सत्ता के शिखर से विदाई बड़े बेआबरू होकर हुई। राज्य में टीएसआर राज के चार साल पूरे होने में महज नौ दिन शेष थे और गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान कर त्रिवेंद्र रावत भराड़ीसैंण विधानभवन में बजट सत्र चला रहे थे लेकिन पार्टी नेतृत्व ने चीफ मिनिस्टर पोस्ट से चलता कर दिया।
फिर तो ऐसा सियासी दौर चला कि तीरथ सिंह रावत से लेकर पुष्कर सिंह धामी तक जो भी मुख्यमंत्री बनता गया, एक सूत्रीय एजेंडे के तहत त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा लिए फैसले ही पलटता रहा! गैरसैंण कमिश्नरी से लेकर चारधाम देवस्थानम बोर्ड भंग करने जैसे अनेक फैसले इसकी बानगी है। लेकिन त्रिवेंद्र सिंह रावत तमाम सियासी झटकों के बावजूद खुद को पहाड़ पॉलिटिक्स में रिलैवेंट यानी प्रासंगिक बनाए हुए हैं।
फिर भले ही भाजपा आलाकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को न डोईवाला से चुनाव लड़ने दिया हो और न ही चार साल की अपनी उपलब्धियां गिनाने के लिए प्रदेशभर में दौड़ने का मौका ही दिया। लेकिन चुनाव नतीजे आने से पहले ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के घर भाजपा नेताओं की आमद बढ़ने लगी है।
पहले सीएम पुष्कर सिंह धामी त्रिवेंद्र सिंह रावत के डिफ़ेंस कॉलोनी स्थित निजी आवास पर मिलने पहुँचे तो दो दिन बाद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और कैबिनेट मंत्री डॉ धन सिंह रावत भी त्रिवेंद्र सिंह रावत के आवास पर गुफ़्तगू करने पहुँच गए। इस दौरान देहरादून मेयर सुनील उनियाल गामा भी त्रिवेंद्र आवास पर डटे नजर आए। विपक्षी नेता हरीश रावत तो गाहे-बगाहे टीएसआर को अपना छोटा भाई बताते उनके साथ भाजपा नेतृत्व द्वारा गलत सलूक करने का मुद्दा उठाते रहते हैं।
जाहिर है चुनाव नतीजों से पहले जिस तरह से तमाम भाजपाई पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का घर खोज रहे उससे पता चलता है कि नतीजों के बाद जिस तरह से सूबे में भाजपाई राजनीति की तस्वीर बदलेगी उस लिहाज से त्रिवेंद्र रावत की भूमिका भी बदलती नजर आ सकती है! क्या उसी दूरगामी समीकरण को लेकर अभी से कसरत शुरू हो चुकी है? फिलहाल पक्के तौर पर कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी।
टीएसआर साफ मैसेज दे रहे हैं कि भले भाजपा नेतृत्व से अभी उनको तवज्जो नहीं मिल रही है लेकिन वे इतना जरूर जता देना चाह रहे हैं कि वे अभी न टायर्ड हैं और न ही रिटायर होने के मूड में हैं।