- 24 फरवरी 2009 को भाषा संस्थान की स्थापना की गई थी
- 6 अक्तूबर 2020 को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में उत्तराखंड भाषा संस्थान के मुख्यालय की स्थापना के निर्देश दिए थे
- अब धामी राज में भाषा मंत्री संस्थान मुख्यालय गैरसैंण से देहरादून या हरिद्वार पलायन कराने की कोशिश में
देहरादून: ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में इंफ़्रास्ट्रक्चर ढाँचा खड़ा करने और इस राजधानी क्षेत्र को विकास के नए मॉडल के तौर पर पेश करने की बातें बहुत हुई अब जरा हकीकत से भी रूबरू हो लिया जाए। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान करते हुए यहाँ कई विभागों के मुख्यालय स्थापित करने की बात कही थी।
इसी तर्ज पर 6 अक्तूबर 2020 को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में उत्तराखंड भाषा संस्थान के मुख्यालय की स्थापना के निर्देश दिए थे। लेकिन त्रिवेंद्र राज का ‘दि एंड’ 9 मार्च 2021 को हो गया था और उसी के साथ गैरसैंण को लेकर कई दावों की हवा भी निकलने लग गई है। सबसे पहली गाज उत्तराखंड भाषा संस्थान के मुख्यालय को गैरसैंण से मैदान में स्थापित करने के रूप में सामने आ सकती है। भाषा मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने कहा है कि जल्द संस्थान की प्रबंध कार्यकारिणी और आम सभा की बैठक बुलाई जाएगी जिसमें तय किया जाएगा कि संस्थान के मुख्यालय की स्थापना कहां हों।
दरअसल, प्रदेश में उत्तराखंड भाषा संस्थान का अपना मुख्यालय नहीं है और त्रिवेंद्र राज में गैरसैंण में उत्तराखंड भाषा संस्थान का मुख्यालय स्थापित करने का दम भरा गया था। त्रिवेंद्र रावत ने कहा था कि गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया है और यहां विभिन्न संस्थानों की स्थापना की जाएगी। टीएसआर राज में गैरसैंण में उत्तराखंड भाषा संस्थान की स्थापना की घोषणा इसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम था।
टीएसआर सरकार में भाषा संस्थान मुख्यालय के लिए भूमि खरीदने को 50 लाख की व्यवस्था की गई थी लेकिन विभागीय मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद को इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। उन्होंने कहा कि उनकी ओर से उत्तराखंड भाषा संस्थान बनाए जाने के बाद इसकी साधारण सभा और प्रबंध कार्यकारिणी का गठन किया गया है। 28 मई 2021 को गठित की गई साधारण सभा में मुख्यमंत्री इसके पदेन अध्यक्ष एवं भाषा मंत्री को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है। बैठक में तय होगा कि इसकी स्थापना कहां होगी।
भाषा मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद तर्क दे रहे हैं कि गैरसैंण में सिर्फ भाषा संस्थान के कार्यालय में काम करने में व्यावहारिक दिक्कतें आ सकती हैं। जल्द भाषा संस्थान की आम सभा की बैठक बुलाई जाएगी। इसमें तय किया जाएगा कि भाषा संस्थान का मुख्यालय हरिद्वार,देहरादून या फिर किसी अन्य स्थान पर बने।
बड़ा सवाल यही है कि आखिर जब टीएसआर राज में ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विभिन्न विभागों के दफ्तर-मुख्यालय खोलने को लेकर बड़ी-बड़ी घोषणाएँ की जा रही थी तब क्या सिर्फ यह दिखावा हो रहा था?
आखिर क्या मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी गैरसैंण में झंडारोहण कर देने भर को ही ग्रीष्मकालीन राजधानी क्षेत्र के विकास की गारंटी मान ले रहे हैं?
सवाल है कि आखिर आज अकेले भाषा संस्थान के मुख्यालय के गैरसैंण(भराड़ीसैंण) से संचालन में दिक़्क़तें आ रहीं हैं तो फिर शुरुआत किस विभाग के दफ्तर से होगी?