
Pure Politics: उत्तराखंड की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले जानकार बखूबी जानते हैं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और बीजेपी के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख सांसद अनिल बलूनी के बीच राज्य के विकास के एजेंडे को लेकर गहरी समझबूझ बनी हुई है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री धामी जब दिल्ली दौरे पर होते हैं तब सांसद बलूनी के साथ उनकी मुलाकात अक्सर होती रहती है। दोनों नेताओं की मुलाकात का सबसे अहम पहलू यही होता है कि डबल इंजन सरकार के ज़रिए राज्य को अधिकतम फ़ायदा कैसे पहुंचे। लेकिन दिल्ली में दोनों नेताओं की ताजा मुलाक़ात कई और मायनों से भी अहम समझी जा रही है।
दिल्ली स्थित उत्तराखंड भवन में मुख्यमंत्री धामी और गढ़वाल सांसद बलूनी की बैठक तब हुई है जब कैबिनेट मंत्री पद से प्रेमचंद अग्रवाल के इस्तीफे के बाद मंत्रिमंडल विस्तार व फेरबदल की चर्चा तेज हो चुकी है। राजनीतिक गलियारों में यहाँ तक दावे किए जा रहे कि ना केवल ख़ाली पड़े पाँच मंत्री पदों में अधिकतम को भरा जाएगा बल्कि दो से तीन मंत्रियों की छुट्टी भी हो सकती है।
इस लिहाज से चर्चा यही है कि दोनों दिग्गजों में हुई लंबी बातचीत में किन किन मसलों पर चर्चा हुई होगी! चर्चाएं यहाँ तक चल रही कि बीते समय भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते विवादों में फँसे मंत्री से लेकर नॉन परफ़ॉर्मर कुछ मंत्रियों की कुंडली मुख्यमंत्री के फ़ैसले पर टिक गई है। कहा ये भी जा रहा है कि अगर उमेश शर्मा काऊ इस बार मंत्री पद पाने में कामयाब हो गए तो किसी दूसरे कांग्रेसी गोत्र वाले मंत्री को झटका झेलना पड़ सकता है। एकाध मंत्री का नाम स्पीकर के लिए भी सोशल मीडिया से लेकर पॉवर कॉरिडोर्स में दौड़ाया जा रहा है। केदारनाथ विधायक आशा नौटियाल से लेकर विधायक खजानदास को मंत्री पद की दौड़ में गिना जा रहा है। जबकि हरिद्वार जिले की कैबिनेट में नुमाइंदगी को लेकर वरिष्ठ विधायक मदन कौशिक से लेकर आदेश चौहान और प्रदीप बतरा तक का नाम दौड़ाया जा रहा। कुमाऊँ से दिग्गज बिशन सिंह चुफाल का नाम मंत्री पद को लेकर अरसे से चल ही रहा है। यों मुन्ना सिंह चौहान से लेकर कई नाम चलाए जा रहे लेकिन सीएम धामी और सांसद बलूनी की मुलाक़ात पर ही अभी लौटते हैं।
दरअसल, मुख्यमंत्री धामी जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और केंद्र सरकार के मंत्रियों के साथ विकसित उत्तराखंड के संकल्प को लेकर जिस तरह से जुगलबंदी कर रहे हैं, उसको चौतरफा सराहा जा रहा है और राज्य के तमाम सांसदों में अनिल बलूनी जिस अंदाज में विकास के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे, यही समझबूझ और जुगलबंदी दोनों नेताओं में बन चुकी बेहतर केमिस्ट्री का आधार है। लिहाजा ऐसे समय जब उत्तराखंड कैबिनेट में फेरबदल की चर्चा जोरों पर हो और ना केवल कैबिनेट बल्कि संगठन में भी अध्यक्ष को लेकर दांव पेंच चल रहे हों तब धामी और बलूनी की मुलाक़ात बड़ा इशारा करती है। देखना होगा आने वाले दिनों में संगठन और सरकार के स्वरूप पर पड़ने वाले संभावित असर में इस मुलाकात की कितनी छाप दिखलाई देगी।