- एसडीसी फाउंडेशन ने जुलाई, अगस्त और सितम्बर महीनों के मानसून सीजन की उत्तराखंड में हुई व्यापक तबाही पर जारी की तीन उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) मासिक रिपोर्ट।
- उदय रिपोर्ट्स में उत्तराखंड के मानसून सीजन की पांच प्रमुख हाइलाइट- बढ़ते भूस्खलन
- केदारनाथ में तबाही, बंद सड़कों, पुराने घाव और नई चुनौतियां – का आकलन
- पिछले दो साल से हर महीने उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) रिपोर्ट जारी कर रही है एसडीसी फाउंडेशन
Dehradun News: देहरादून स्थित एनवायर्नमेंटल एक्शन एंड एडवोकेसी समूह, एसडीसी फाउंडेशन ने 2024 के मानसून सीजन के तीन महीनों; जुलाई, अगस्त और सितम्बर की क्लाइमेट, आपदा एवं दुर्घटना आधारित उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (उदय) रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट्स में उत्तराखंड के मानसून सीजन की पांच प्रमुख हाइलाइट – बढ़ते भूस्खलन, केदारनाथ में तबाही, बंद सड़कों, पुराने घाव और नई चुनौतियां – का आकलन निकल कर सामने आया है।
मानसून सीजन की रिपोर्ट्स के जारी होने के साथ ही एसडीसी फाउंडेशन के मासिक उदय रिपोर्ट के निरंतर बनने के दो साल पूरे हो चुके हैं। पहली रिपोर्ट अक्टूबर 2022 में जारी की गई थी। उदय रिपोर्ट का उद्देश्य पर्वतीय राज्य उत्तराखंड में क्लाइमेट चेंज और अन्य कारणों से होने वाली प्रमुख आपदाओं, आने वाले समय की क्लाइमेट जनित आपदा की चुनौतियों और सड़क दुर्घटनाओं का मासिक डॉक्यूमेंटेशन करना है। इन रिपोर्टों और एक्सपर्ट्स के लेख एवं सुझावों पर आधारित एसडीसी फाउंडेशन की ओर से मेकिंग मोलेहील्स ऑफ़ माउंटेन्स इन देवभूमि उत्तरखंड – 2023 प्रकाशित की गई थी।
फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल के अनुसार 2024 की पुस्तक पर काम चल रहा है। इस वर्ष की पुस्तक को पिछले साल की तुलना में ज्यादा व्यापक रूप दिया जा रहा है।
- मानसून में बढ़ते भूस्खलन
उदय रिपोर्ट के अनुसार हर वर्ष की तरह इस बार भी उत्तराखंड में मानसून में व्यापक तबाही हुई। पूरे सीजन में अलग-अलग जगहों से लोगों की मौत हो जाने, बह जाने या लापता हो जाने की खबरें मिलती रही। सबसे गंभीर बात यह है कि राज्य में हर साल नये भूस्खलन यानी लैंडस्लाइड जोन विकसित हो रहे हैं। इस मानसून सीजन में कुल 500 नये भूस्खलन जोन चिन्हित किये गये। हिमालय दिवस के मौके पर वाडिया हिमालयन इंस्टीट्यूट में यह जानकारी दी गई। बताया गया कि इनमें से ज्यादातर नये भूस्खलन जोन निर्माण कार्यों के कारण विकसित हुए हैं।
- केदारनाथ में फ़िर तबाही
केदारनाथ में इस बार बार-बार भूस्खलन हुआ। यह भूस्खलन सड़क मार्ग से लेकर पैदल मार्ग तक देखा गया। 31 जुलाई को इस मार्ग पर सबसे बड़ी तबाही हुई। इस दिन राज्यभर में भारी बारिश के कारण नौ लोगों की मौत दर्ज की गई। दो महीने में भूस्खलन व अतिवृष्टि से केदारनाथ मार्ग पर 20 यात्रियों व स्थानीय की मौत हुई और 20 लापता हुए। ये मौतें सोनप्रयाग के पास हुए भूस्खलन के अलावा पैदल मार्ग पर भी हुई। भूस्खलन और तीर्थ यात्रियों की मौत का सिलसिला जुलाई से शुरू होकर सितंबर तक चलता रहा। टिहरी जिले के भिलंगना ब्लॉक में भारी तबाही हुई। जिले के तोली और तिनगढ़ गांव में भी 16 घर पूरी तरह मलबे में दब गये। इस घटना में एक मां-बेटी की मौत हुई। इनके अलावा देहरादून, हरिद्वार, खटीमा में हादसे दर्ज हुए ।
- सैकड़ों सड़कें बंद
पूरे सीजन में उत्तराखंड में सैकड़ों बार सड़कें बंद हुई। कुछ सड़कें तो एक बार बंद होने के बाद कई दिनों तक खोली नहीं जा सकी। 9 जुलाई को सुबह से बदरीनाथ मार्ग लगातार 83 घंटे तक बंद रहने के बाद 12 जुलाई शाम को सुचारु हो पाया। 14 सितंबर को राज्यभर में 324 सड़कें बंद होने की रिपोर्ट सामने आई।
- नहीं भरे पुराने घाव
उत्तराखंड में सिर्फ नये भूस्खलन जोन ही नहीं उभर रहे हैं, बल्कि पुराने घाव रह-रह कर ताजा हो रहे हैं। इनमें वरुणावत पर्वत का भूस्खलन भी शामिल है तो जोशीमठ का भूधंसाव भी। इसके अलावा नैनीताल के टिफिन टॉप भूस्खलन ने तो इस बार इस पर्यटन नगरी के एक आकर्षक टूरिस्ट स्पॉट डोरोथी सीट को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया।
- नई चुनौतियां
इस मानसून सीजन में कई नई चुनौतियां भी सामने आई। इसमें एक बड़ी चुनौती जर्जर स्कूल भवनों के कारण पैदा हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 11465 यानी 60 प्रतिशत सरकारी स्कूल भवन असुरक्षित हैं। राज्य की राजधानी भी असुरक्षित क्षेत्रों में शामिल है। एमिटी यूनिवर्सिटी और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के एक अध्ययन से पता चला है कि दून घाटी का 289.8 वर्ग किमी हिस्सा यानी 16.6 प्रतिशत भूस्खलन के उच्च जोखिम क्षेत्र में है। इनमें दून घाटी के कई पर्यटन स्थल भी शामिल हैं।
- उदय रिपोर्ट, उत्तराखंड और आपदा प्रबंधन
अनूप नौटियाल ने कहा की उत्तराखंड को अपने आपदा प्रबंधन तंत्र और क्लाइमेट एक्शन की कमज़ोर कड़ियों को मजबूत करने की सख्त ज़रूरत है। उन्होंने उम्मीद जताई कि उत्तराखंड उदय मासिक रिपोर्ट उत्तराखंड के राजनीतिज्ञों, नीति निर्माताओं और अन्य हितधारकों के लिए सहायक होगी। साथ ही आपदाओं से होने वाले नुकसान के न्यूनीकरण के लिए नीतियां बनाते समय भी संभवत इस डॉक्यूमेंटेशन का इस्तेमाल किया जा सकेगा।