BJP MLA Mahant Daleep Rawat letter to CM Dhami on Forest Fire in Uttarakhand: उत्तराखंड में जंगलों में लगी आग पर काबू पाने में असहाय नजर आ रही राज्य की पुष्कर सिंह धामी सरकार को कल सुप्रीम कोर्ट से फटकार लगी थी और आज यानी नौ मई को लैंसडाउन से BJP विधायक महंत दिलीप रावत ने कटघरे में खड़ा कर दिया है। महंत दिलीप रावत ने मुख्यमंत्री धामी द्वारा वनाग्नि के मोर्चे पर लापरवाह समझे गए चार वन दरोगा सहित 10 लोगों को सस्पेंड कर दिया था और दो वन रेंजरों को कारण बताओ नोटिस तथा पांच को अटैच कर सख्त एक्शन का दावा किया लेकिन बीजेपी विधायक महंत दिलीप रावत ने निचले स्तर के कार्मिकों पर चाबुक और आला अफसरों पर मेहरबान बने रहने को लेकर मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर सवाल उठाया है।
अपनी बेबाक शैली के लिए जाने जाते तीन बार के विधायक महंत दिलीप रावत ने मुख्यमंत्री पुष्कर धामी को लिखी चिट्ठी में कहा है कि वन विभाग में निचले स्तर पर छोटे कर्मचारियों की अरसे से कमी बनी हुई है और आज उन्हीं को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बीजेपी विधायक ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि एक तो फायर वाचर्स ही पर्याप्त संख्या में नहीं हैं और जी हैं उनके पास सुरक्षा के पुख्ता और पर्याप्त इंतजाम तक नहीं हैं।
यहां पढ़िए सीएम धामी को लिखे पत्र में महंत दिलीप रावत ने कौन कौन से प्रश्न खड़े करते हुए अपनी ही पार्टी सरकार को आईना दिखा दिया है।
विषयः- उत्तराखण्ड में वनाग्नि के संबंध में।
मा० महोदय,
मुझे समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि उत्तराखण्ड में फैली भीषण आग को नियंत्रित ना करने क संबंध में कुछ निचले कर्मचारियों को लापरवाही बरतने में निलंबित किया गया है, मेरी व्यक्तिगत राय है कि निचले कर्मचारियों का निलंबन करने से पहले यह ध्यान देना जरूरी है कि क्या अग्नि सुरक्षा हेतु निचले स्तर पर पूरे कर्मचारी नियुक्त है? क्या निचले स्तर पर अग्नि बुझाने हेतु पूरे संसाधन उपल्बध हैं? घरातल पर मुझे यह भी अनुभव हुआ है कि फायर सीजन में रखे जाने वाले फायर वाचरों की संख्या पर्याप्त नहीं है। यदि होती भी है तो वह कागजों तक ही सीमित रहती है। निचले स्तरों पर फायर वाचरों हेतु उनकी सुरक्षा हेतु उचित संसाधन नहीं रहते है, और ना ही जंगलों में आग बुझाने के दौरान घटना स्थान पर उनके लिए भोजन आदि की उचित व्यवस्था रहती है।
महोदय, यह भी संज्ञान में लिया जाना चाहिए कि ब्रिटिश काल में वनों के बीच में अग्नि नियंत्रण हेतु फायर लाईन बनाई गयी थी जो कि आज समय में कहीं दिखायी नहीं देती है, जबकि वनों में आग लगने की स्थिति में यह फायर लाईन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। अतः उक्त फायर लाईन पर भी कार्य किया जाना चाहिए।
महोदय, वर्तमान में कड़े वन अधिनियमों के कारण स्थानिय जनता वनों से दूर होती जा रही है, और अनके मन में यह भाव पैदा हो गया है कि यह वन हमारे नहीं है, और इन वनों के कारण हमें जन सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है। जबकि ब्रिटिश काल में जंगलों की सुरक्षा जन सहभागिता के आधार पर की जाती थी। परन्तु उक्त व्यवस्थाओं से जनता का वनों के प्रति मोह भंग हो गया है। अतः इन बातों पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
महोदय, मैने इन्हीं सारी समस्याओं के संबंध में आपसे एवं विधानसभा अध्यक्ष से एक विशेष सत्र आहूत की जाने की मांग की थी। ताकी उक्त सारी समस्याओं पर चिंतन एवं मनन किया जा सके।
महोदय, यह भी संज्ञान में आया है कि संबंधी वनाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी, क्षेत्रीय वनाधिकारी केवल चौकियों तक ही निरीक्षण कर अपनी इतिश्री समझ लेते है।
महोदय, संज्ञान में यह भी आया है कि जंगलों में नियुक्त दैनिक वेतन कर्मी एवं फायर वाचरों को नियमित वेतन नहीं मिलता है। जिस कारण व्यवस्था भी चस्मरा जाती है।
महोदय, वन विभाग में ऊपरी स्तर पर कई बड़े अधिकारी नियुक्त हैं। परन्तु वे अपने कक्षों में बैठ कर ही वन विभाग की सेवा करते है। यह अच्छा होता कि उक्त अग्नि कांड हेतु उच्च स्तर पर अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होती तो अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का बोध होता।
अतः आपसे निवेदन है कि निचले स्तर के कर्मचारियों के निलंबन से पूर्व उनकी परेशानियों को भलीभाँति समझा जाए एवं वनाग्नि हेतु गंभीरता से विचार किया जाए। भवदीय
महंत दिलीप रावत