देहरादून: उत्तरप्रदेश में नए सिरे से कांग्रेस को खड़ा करने की सियासी लड़ाई लड़ रही पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ऐलान किया है कि Battle 2022 में महिलाओं को 40 फ़ीसदी टिकट दिए जाएंगे। जाहिर है ऐसे समय जब आधी आबादी को 33 फ़ीसदी आरक्षण भी नहीं मिल पा रहा, तब प्रियंका गांधी का 40 फीसदी टिकट शेयर महिलाओं को देने का कदम बेहद सकारात्मक है। लेकिन अब कांग्रेस को इस अन्य चुनावी राज्यों में लागू करने का दबाव भी झेलना पड़ सकता है। खास तौर पर जहां कांग्रेस सत्ता हासिल करने के लिए कांटे की लड़ाई में है। यूपी के साथ चुनावी जंग में उतर रहे उत्तराखंड में तो कांग्रेस की महिला नेताओं ने प्रियंका के यूपी मॉडल को यहाँ भी अमल में लाने की मांग कर डाली है।
कांग्रेस की प्रदेश सोशल मीडिया हेड शिल्पी अरोड़ा ने एक वीडियो बयान जारी कर प्रियंका गांधी वाड्रा के यूपी को लेकर लिए फैसले का ज़ोरदार स्वागत किया है और इसे उत्तराखंड में भी अमल में लाने की वरिष्ठ नेताओं से मांग की है।
ये देखिए कांग्रेस नेता शिल्पी अरोड़ा ने क्या कहा है?
इससे पहले प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्ष सरिता आर्य ने भी राज्य में महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा टिकट मांग चुकी हैं। हालांकि यह भी एक रोचक पहलू सामने आ रहा कि धामी सरकार में काबिना मंत्री रहे यशपाल आर्य और नैनीताल से विधायक रहे उनके पुत्र संजीव आर्य की कांग्रेस में घर वापसी के बाद खुद सरिता आर्य की नैनीताल सीट से टिकट पर ही संकट आ चुका है।
जाहिर है यूपी में जहां कांग्रेस जीत और सरकार गठन से कोसों दूर नजर आ रही है, वहां प्रियंका गांधी का महिलाओं को 40 फीसदी टिकट देना सुनकर सुखद ज़रूर लगता है। लेकिन आधी आबादी को प्रतिनिधित्व देने की मंशा का खुलासा तो उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में टिकट वितरण में दिखना चाहिए। इस कड़ी में यूपी के साथ उत्तराखंड और पंजाब में भी चुनाव हैं लिहाजा कांग्रेस को यूपी मॉडल को लेकर उत्तराखंड जैसे चुनावी राज्यों में मांग और सवाल झेलने को तैयार रहना होगा। लेकिन ऐसा करना उसके लिए या फिर बीजेपी, दोनों के लिए खड़े पहाड़ बिना सहारे चढ़ने जैसा दिखता है। कम से कम उत्तराखंड के चार विधानसभा चुनाव इसकी तस्दीक़ कर रहे हैं।
मसलन, वर्तमान में उत्तराखंड विधानसभा में 4 महिला विधायक ही हैं। नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश के निधन के बाद अब कांग्रेस से इकलौती महिला विधायक ममता राकेश हैं जो सुरेन्द्र राकेश की राजनीतिक विरासत के सहारे विधानसभा पहुँची हैं। बीजेपी से चन्द्रा पंत और मुन्नी देवी साह भी पारिवारिक राजनीतिक विरासत के सहारे विधानसभा पहुँची हैं। जनरल बीसी खंडूरी की पुत्री ऋतु खंडूरी भूषण भी चौथी विधानसभा में विधायक हैं। इस तरह 70 विधासनभाओं में महज 6 फीसदी प्रतिनिधित्व आधी आबादी का है।
ऐसा नहीं है कि कांग्रेस या बीजेपी ने महिलाओं को टिकट तो खूब दिए थे लेकिन जीत ही नहीं पाई। हकीकत यह है कि 2017 के चुनाव में कांग्रेस ने 8 महिलाओं को टिकट दिए थे और बीजेपी ने 5 महिलाओं को ही टिकट दिया था। 2012 में बीजेपी ने 7 और कांग्रेस ने 8 टिकट महिलाओं को टिकट दिए थे। यानी समझ सकते हैं कि कैसे अलग पहाड़ प्रदेश के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाली आधी आबादी को 33 फीसदी छोड़िए बमुश्किल 10 फीसदी टिकट या प्रतिनिधित्व देने में पार्टियां हाँफ जाती हैं। जबकि महिला वोटर्स की संख्या 50 फीसदी है यानी आधी वोटर्स की हिस्सेदारी महिलाओं की होने के बावजूद पंचायतों से ऊपर न विधानसभा और न लोकसभा में महिलाओं को चुनावी जंग लड़ने लायक तक नहीं समझा जाता है।