- सिटिंग सीएम सोनोवाल की बजाय मोदी-शाह का दांव हिमंत बिस्वा पर
- उत्तराखंड भाजपा की 2022 चुनाव बाद राजनीति पर पड़ेगा असर!
- मैसेज साफ गारंटी नहीं पार्टी सत्ता में लौटी तो सिटिंग सीएम की ही ताजपोशी
देहरादून( पवन लालचंद): गुज़रे चंद सालों में नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी के सबसे चमकते चेहरे हिमंत बिस्वा सरमा ने असम के नए सीएम के रूप में शपथ ले ली है। अपनी परम्परागत जालुकबारी विधानसभा सीट से एक लाख वोटों के अंतर से चुनाव जीते हिमंत बिस्वा सरमा की ताजपोशी कई संदेश देती है। हालॉकि मोदी-शाह को इस नतीजे तक पहुँचने में एक हफ़्ता लग गया लेकिन ये निर्णय बीजेपी की राजनीति में किसी बड़े शिफ्ट से कम नहीं समझा जाएगा। इसे ऐसे भी कहा जाए कि बीजेपी में मोदी-शाह दौर में रीत-नीत में ये ‘टेक्टॉनिक शिफ्ट’ है तो गलत न होगा।
याद कीजिए वो दौर और दलील जब हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के बहाने उत्तराखंड और कई बीजेपी शासित राज्यों में मुख्यमंत्री न बदले जाने की शर्तें लगाई जाती रही। आखिर खट्टर के खूब विरोध के बावजूद मोदी-शाह हरियाणा में चेहरा बदलने को टस से मस न हुए। यहाँ तक कि विधानसभा चुनाव में अपने बूते का बहुमत खोकर लौटे खट्टर को ही मोदी-शाह ने गठबंधन सरकार का सिरमौर बना दिया। इसके बाद से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहते त्रिवेंद्र सिंह रावत और ज्यादा बेपरवाह और निश्चिंत रहने लगे थे। त्रिवेंद्र और उनके तथाकथित ‘रसोई रणनीतिकारों’ को यकीन हो चला था कि अब 2022 की बैटल टीएसआर के कंधे पर बंदूक़ रखकर ही जीती जाएगी। खैर, वो मिथक पहले ही टूट गया लेकिन असम में सिटिंग सीएम होने के बावजूद सोनोवाल की जगह हिमंता बिस्वा की ताजपोशी से कई और भ्रम भी चकनाचूर हो गए हैं।
असम चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 75 सीटों पर जीत मिली है और बीजेपी ने इस जीत के ज़रिए इतिहास भी रचा क्योंकि सात दशक में पहले कभी भी कोई गैर-कांग्रेसी दल दोबारा सत्ता में नहीं लौटा था. एक तरह से इससे सोनोवाल की ताजपोशी का रास्ता आसान होना समझा जा रहा था। लेकिन मोदी-शाह ने सिटिंग गेटिंग के दावे को दरकिनार करते हुए कांग्रेस से बीजेपी में आकर चमके सरमा को तवज्जो दी है, जो मौजूदा दौर की बीजेपी में आते बदलाव का द्योतक है।
खासकर उत्तराखंड के लिए इस फैसले के बड़े मायने हैं क्योंकि राज्य में सालभर के भीतर चुनाव होने हैं और अगर बीजेपी 2022 में सत्ता में फिर लौट आती है तो ताजा असम फैसला साफ संकेत देता है कि सिटिंग गेटिंग कुर्सी का फ़ॉरमूला बेमानी समझा जाएगा। मोदी-शाह ने हिमंत बिस्वा को चुनकर दीवार पर लिखी इबारत की तरह साफ मैसेज दे दिया है कि 2022 में जीते तो मुख्यमंत्री चुनते हुए 2027 भले न सही पर 2024 की कसौटी के अनुरूप जरूर परखा जाएगा।
इस लिहाज से मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के सामने दोहरी चुनौती है। एक, तीरथ दा को कामकाज करके टीएसआर के मुक़ाबले ऐसी जमीनी इमेज गढ़नी होगी कि आठ-नौ माह में आ रहे विधानसभा चुनाव में बीजेपी को कामयाबी मिले और उस कामयाबी में उनकी छाप अलग से दिखे। दूसरी, मुख्यमंत्री की दौड़ के वो दावेदार जो टीएसआर-एक को निपटाने के बावजूद हाथ मलते रह गए वे बाइस की बैटल से पहले और बाद में फिर अपनी महत्वाकांक्षा के घोड़े दौड़ाने लगेंगे। तीरथ को उनसे न सिर्फ सावधान रहना होगा बल्कि पार्टी की अंदरुनी राजनीतिक दांव-पेंच में पार भी पाना होगा। क्योंकि सोनोवाल की जगह हेमंत बिस्वा को मौका मिलना बलूनी, निशंक से लेकर महाराज जैसे क्षत्रपों के लिए राजनीतिक संभावनाओं के नए द्वार खोल गया है। साथ ही असम निर्णय के बाद तीरथ दा को भी ये मैसेज भली-भाँति समझा आ गया होगा कि न सिर्फ कठिन हालात में उनको सत्ता मिली है बल्कि बीजेपी सत्ता बरक़रार रख पाती है तब भी उनके लिए कुर्सी बरक़रार रखने की कठिन चुनौती रहेगी।