
- लोहाघाट के अधिशासी अभियंता का वायरल पत्र जिसकी चर्चा हो रही चौतरफा। देवता के समक्ष जिंज्याल डालने संबंधी पत्र के पक्ष-विपक्ष में दिए जा रहे तर्क
Your Column (दुर्गा प्रसाद नौटियाल) : उत्तराखंड एक ऐसी भूमि है जहाँ लोक आस्थाएँ, परंपराएँ और देवताओं का प्रभाव न केवल सांस्कृतिक जीवन में बल्कि प्रशासनिक दृष्टिकोण में भी गहराई से समाहित हैं। हाल ही में एक समाचार ने इस बात को पुनः रेखांकित किया कि किस प्रकार लोक परंपराएँ आधुनिक सरकारी कार्यप्रणाली को भी प्रभावित कर सकती हैं। एक अधिशासी अभियंता (Executive Engineer) द्वारा कर्मचारियों को यह चेतावनी देना कि यदि गायब हुई सेवा पुस्तिका (Service Book) नहीं मिली, तो ‘देवता के समक्ष जिंज्याल डाले जाएंगे’ — एक ऐसी चेतावनी है जो सांस्कृतिक विश्वास और नैतिकता का अद्भुत समन्वय दर्शाती है।

जिंज्याल डालने की परंपरा: उत्तराखंड की ग्रामीण संस्कृति में ‘जिंज्याल डालना’ एक पवित्र प्रक्रिया मानी जाती है, जिसमें देवता को साक्षी मानकर सत्य की परीक्षा ली जाती है। ‘जिंज्याल’ शब्द का अर्थ होता है — चावल, जिसे देवता के मंदिर में आहुति स्वरूप अर्पित किया जाता है। यह एक तरह की ईश्वरीय शपथ होती है, जिसमें कोई भी व्यक्ति यदि झूठ बोलता है या छल करता है, तो उस पर देवता का प्रकोप आ सकता है — ऐसा लोक विश्वास है।
प्रशासनिक पत्र की पृष्ठभूमि: अधिशासी अभियंता का यह पत्र एक लापरवाही या संभवतः भ्रष्टाचार की स्थिति में नैतिक दबाव बनाने का प्रयास था। पत्र में स्पष्ट लिखा गया था कि यदि कर्मचारी सेवा पुस्तिका उपलब्ध नहीं करा पाए, तो वे देवता के दरबार में जाकर सत्य का निर्णय करेंगे।
यह चेतावनी केवल धमकी नहीं थी, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक भी थी — यह दिखाता है कि लोक आस्था आज भी सरकारी तंत्र में कहीं-न-कहीं जीवित है।
लोक आस्था और प्रशासनिक नैतिकता: यह घटना एक उदाहरण है कि कैसे परंपरागत मान्यताएँ आज भी समाज में गहरी पैठ बनाए हुए हैं। जब विधिक या प्रशासनिक दंड प्रणाली सीमित हो जाती है।
( नोट: लेखक समाजसेवी हैं और सांस्कृतिक विषयों पर निरंतर लेखन कर रहे हैं। विचार निजी हैं।)
‘यह था कह पत्र जिस पर छिड़ा विवाद और अधिशासी अभियंता को अपने विभाग से मिला नोटिस :
“खंड में कार्यरत अधिकारियों/ कर्मचारियों को सूचित किया जाता है कि खंड में कार्यरत इंजीनियर जय प्रकाश, अपर सहायक अभियंता की सेवा पुस्तिका अधिष्ठान सहायक प्रथम की अलमारी से खो गई है। कार्यालय में काफी खोजबीन करने के उपरांत भी सेवा पुस्तिका नहीं मिल पा रही है, जो काफी खेद का विषय है।जिस कारण अधिष्ठान सहायक एवं इंजीनियर जय प्रकाश मानसिक रूप से काफी चिंतित हैं. सेवा पुस्तिका ना मिलने की दशा में यह विचार आया कि क्यों ना कार्यालय के समस्त अधिकारियों / कर्मचारियों से दैवीय आस्था के आधार पर अपने-अपने घरों से 2 मुट्ठी चावल मांग कर किसी मंदिर में डाल दिया जाए। चावल मंदिर में डालने पर वही देवता न्याय करेंगे। अत: सभी से अनुरोध है कि कल 17 मई को सभी कार्यालय में उपस्थित होने पर 2 मुट्ठी चावल जमा कर दें ताकि समस्या का समाधान हो सके।”
- नोटिस में क्या लिखा
सरकारी दफ्तर में इस पत्र को अंधविश्वास मानते हुए प्रमुख अभियंता ने अधीक्षण अभियंता से तीन दिनों के भीतर इस आदेश के संबंध में स्पष्टीकरण मांगा है। साथ ही चेतावनी दी है कि अगर समय पर जवाब नहीं दिया गया तो उत्तराखंड सरकारी सेवक आचरण नियमावली 2002 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।