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नदी, झील, फूल, बुग्याल से मिलकर बनी आबोहवा ही तो उत्तराखंड को बनाती हैं दुनिया का प्रकृति धाम..पर्यावरण दिवस पर करिए फूलों की घाटी के इन नज़ारों के दीदार!

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  • काश कोरोना महामारी खत्म हो और फिर अपनी आँखों से फूलों के इस अदभुत संसार को निहारने को पर्यटकों से गुलजार हो फूलों की घाटी!

इंतजारी!— फूलों के अद्भुत संसार पर भी कोरोना का साया, नहीं खुली रंग बदलने वाली फूलों की घाटी, सैलानी नहीं कर सकेंगे दीदार..


ग्राउंड जीरो से संजय चौहान
चमोली: विश्व प्रसिद्ध फूलों की घाटी हर साल एक जून को पर्यटकों के दीदार के लिए खुल जाती है लेकिन इस साल कोरोना महामारी के कारण पूरे देश में लाॅकडाउन की स्थिति है और लगभग सारी गतिविधियों पर रोक लगी हुई है। कोरोना गाइडलाइन के कारण वन्य जीव विहार पार्क, अभयारण्यों में प्रवेश पर रोक है। इसलिए फूलों की घाटी भी पर्यटकों के लिए अभी नहीं खुलेगी।

आंकड़ों पर नजर डालें तो फूलों की घाटी में 2014 में 484 पर्यटक, 2015 में 181, 2016 में 6503, 2017 में 13752, 2018 में 14742 पर्यटक पहुँचे थे। जबकि 2019 में 17424 पर्यटकों ने फूलों की घाटी के दीदार किए। पिछले साल कोरोना की वजह से भले ही फूलों की घाटी 1 जून 2020 को खोल दी गी थी लेकिन पर्यटकों की आवाजाही के लिए 1 अगस्त से 31 अक्तूबर तक ही खोली गयी थी। इस अवधि में 932 पर्यटक फूलों की घाटी पहुंचे थे जिनमें 11 विदेशी भी शामिल थे।

फूलों का अदभुत संसार!

फूल शायद सुंदरता के सबसे पुराने प्रतीक हैं। सभ्यता के किसी बहुत प्राचीन आंगन में जंगल और झाड़ियों के बीच उगे हुए फूल ही होंगे जो इंसान को उस ख़ासे मुश्किल वक़्त में राहत देते होंगे। इन फूलों से पहली बार उसने रंग पहचाने होंगे। ख़ुशबू को जाना होगा। पहली बार सौंदर्य का अहसास किया होगा। फूलों की अपनी दुनिया है। वो याद दिलाते हैं कि पर्यावरण के असंतुलन से लगातार धुआंती, काली पड़ती, गरम होती इस दुनिया में फूलों को बचाए रखना जरूरी है।


कब खुलती है फूलों की घाटी!

सीमांत जनपद चमोली में मौजूद विश्व धरोहर रंग बदलने वाली फूलों की घाटी को हर साल आवाजाही के लिए 1 जून को आम पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है जबकि अक्तूबर अंतिम सप्ताह में 31 अक्तूबर को ये घाटी आवाजाही के लिए बंद हो जाती है। कोरोना की वजह से इस साल नहीं खुली फूलों की घाटी।

कहां है फूलों की घाटी!

उत्तराखंड के चमोली जिले में पवित्र हेमकुंड साहिब मार्ग स्थित फूलों की घाटी को उसकी प्राकृतिक खूबसूरती और जैविक विविधता के कारण 2005 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित कर दिया था। 87.5 वर्ग किमी में फैली फूलों की ये घाटी न सिर्फ भारत बल्कि दुनिया के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है। फूलों की घाटी में दुनियाभर में पाए जाने वाले फूलों की 500 से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं। हर साल देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। यह घाटी आज भी शोधकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र है। नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी सम्मिलित रूप से विश्व धरोहर स्थल घोषित हैं।

पर्वतारोही फ्रेक स्माइथ की खोज!

गढ़वाल के ब्रिटिशकालीन कमिश्नर एटकिंसन ने अपनी किताब हिमालयन ग्जेटियर में 1931 में इसको नैसर्गिक फूलों की घाटी बताया। वनस्पति शास्त्री फ्रेक सिडनी स्माइथ जब कामेट पर्वत से वापस लौट रहे थे तो फूलों से खिली इस सुरम्य घाटी को देख मंत्रमुग्ध हो गए। 1937 में फ्रेक एडिनेबरा बाटनिकल गार्डन की ओर से फिर इस घाटी में आए और तीन माह तक यहां रहे।

पांच सौ प्रजाति से अधिक फूल!

फूलों की घाटी में तीन सौ प्रजाति के फूल अलग-अलग समय पर खिलते हैं। यहां जैव विविधता का खजाना है। यहां पर उगने वाले फूलों में पोटोटिला, प्राइमिला, एनिमोन, एरिसीमा, एमोनाइटम, ब्लू पॉपी, मार्स मेरी गोल्ड, ब्रह्म कमल, फैन कमल जैसे कई फूल यहाँ खिले रहते हैं। घाटी मे दुर्लभ प्रजाति के जीव जंतु, वनस्पति, जड़ी बूटियों का है संसार बसता है।

हर 15 दिन में रंग बदलती है ये घाटी

फूलों की घाटी में जुलाई से अक्टूबर के मध्य 500 से अधिक प्रजाति के फूल खिलते हैं। खास बात यह है कि हर 15 दिन में अलग-अलग प्रजाति के रंगबिरंगे फूल खिलने से घाटी का रंग भी बदल जाता है। यह ऐसा सम्मोहन है, जिसमें हर कोई कैद होना चाहता।

उम्मीद की जानी चाहिए कि जल्द ही पूरा देश कोरोना को हराने में सफल होगा और देश में कोरोना की वजह से बंद पडी समस्त गतिविधियां भी एक बार फिर से सुचारु होंगी। फिलहाल सरकार द्वारा कोरोना के लिए जारी निर्देशों का कडाई से पालन करें। घर में ही रहें और मास्क जरूर पहनें।
नोट–फूलों की घाटी की सभी फोटो पिछले सालों की हैं।

साभार:संजय चौहान Facebook

( स्वर्गीय उमेश डोभाल पुरस्कार से सम्मानित संजय चौहान, यायावर पत्रकार हैं और पहाड़ की अनकही कहानियों के साथ सोशल मीडिया तक चट्टानी हौसलों की प्रेरक तस्वीरें भी लाते रहते हैं।)

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