देहरादून: ये तस्वीर उस दौर की है जब रोज़गार की गंगा बहाने और बेरोज़गारी को माइनस में समझाने के ऐलान हो रहे थे। ये सच उस सरकार का है जिसमें डबल इंजन का हल्ला साढ़े चार साल से मचा हुआ है। ये आईना उस सत्ताधारी पॉलिटिकल पार्टी का भी है जो सत्ता पाने से पहले अपने दृष्टिपत्र में वादा करती है कि सरकार बनने के बाद सबसे पहले तमाम सरकारी रिक्त पद भर दिए जाएंगे। लेकिन हकीकत क्या है उसकी बानगी हिन्दुस्तान की एक रिपोर्ट में दिए गए सेवायोजन विभाग के आंकड़ों में दिखाई देती है।
पिछले साढ़े चार में लगातार रोजगार वर्ष मनाए जाते रहे, देहरादून परेड मैदान से लेकर राज्यभर में जगह-जगह रोज़गार मेले आयोजित किए गए। लेकिन सच ये है कि पिछले पांच साल में रजिस्टर्ड बेरोज़गारों में से महज दो फीसदी से भी कम युवाओं को रोजगार मिल पाया। सेवायोजन विभाग के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में प्रदेश में लगभग 8 लाख रजिस्टर्ड बेरोजगार हैं, जबकि बेरोज़गारों की वास्तविक संख्या इससे कहीं ज़्यादा होगी। इन रजिस्टर्ड बेरोजगार युवाओं को नौकरियाँ मिले इसके लिए सेवायोजन महकमा हर साल रोजगार मेलों का आयोजन भी करता है और सरकार भी समय समय पर रोजगार वर्ष मनाती है ताकि निजी क्षेत्र की कंपनियाँ ऑन द स्पॉट इंटरव्यू लेकर जॉब ऑफ़र करें।
एक आंकड़े के अनुसार पिछले पांच सालों में उत्तराखंड में 513 रोजगार मेले आयोजित किए गए और इनमें 20 हजार 47 बेरोजगार युवाओं को नौकरी मिल पाई। 2017-18 में 172 रोजगार मेले आयोजित किए गए जिनमें 7489 रोजगार दिए गए। उसके बाद हर रोजगार मेले में नौकरियों के नाम पर खानापूर्ति होती रही।
अब पिछले साल से कोरोना महामारी के चलते हालात और खराब हो गए हैं। पिछले वित्तीय वर्ष में 8 लाख 77 हज़ार रजिस्टर्ड बेरोज़गारों के लिए मात्र 46 रोजगार मेले लगाए जा सके जिनमें 1398 युवाओं को रोजगार मिला। उससे पहले वित्त वर्ष 2019-20 में 84 रोजगार मेलों के ज़रिए 2709 युवाओं को ही नौकरी मिल पाई थी। 2018-19 में 105 रोजगार मेले लगे जिनमें युवाओं को 5678 नौकरियाँ मिली। जबकि 2016-17 में 106 रोजगार मेले लगे और युवा बेरोज़गारों को 2773 नौकरियाँ मिल पाई। किसी भी वित्त वर्ष में सेवायोजन कार्यालयों में रजिस्टर्ड बेरोज़गारों के मुकाबले एक फीसदी युवाओं को भी रोजगार नहीं मिल सका है।
एक चिन्ताजनक पहलू की तरफ इशारा उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार करते हैं। बॉबी पंवार का कहना है कि सेवायोजन कार्यालयों में दर्ज आंकड़े राज्य में बेरोज़गारी का असली सच नहीं। उनका कहना है कि जब सालों तक भरतियाँ नहीं निकलती तब युवा बेरोजगार नियमित रूप से इन सेवायोजन कार्यालयों में रजिस्ट्रेशन भी नहीं करा पाते हैं और रिन्यू न होने से आंकड़ा नौ लाख के आसपास है वरना राज्य में बेरोज़गार युवाओं की तादाद आज 12 लाख से ज्यादा हो चुकी है।
इस साल भी कोरोना संकट बरक़रार है लिहाजा युवाओं को सरकार से रोजगार की उम्मीद रखना बेमानी होगा। ऊपर से तमाम भर्तियाँ पेंडिंग हैं और कुछ भर्तियाँ तो विज्ञप्ति निकलने के पांच साल बाद भी पूरी नहीं हो पा रही। अंदाज़ा सहज लगाया जा सकता है कि सूबे के बेरोजगार युवाओं के साथ सेवायोजन कार्यालयों में पंजीकरण के नाम पर भद्दा मज़ाक़ हो रहा है जहां रजिस्टर में एक नाम से ज्यादा एक बेरोजगार युवा की हैसियत कुछ नहीं। बेहतर हो ऐसे कार्यालयों पर ताले पड़ जाएँ ताकि राज्य के बेरोजगार युवाओं के साथ हो रहे इस भद्दे मज़ाक़ का तो अंत हो!