- धामी सरकार को हुआ ग़लती का अहसास
कांवड़ यात्रा पर रोक बरक़रार
पर यूपी में कांवड़ियों के लिए रेड कारपेट
बॉर्डर पर पहुँचा कांवड़ियों का रेला तो कौन संभालेगा हालात? - दोनों राज्यों में तालमेल जरूरी,नहीं तो केन्द्र का दखल
- भीड़ उमड़ने पर कोविड प्रोटोकॉल, RT-PCR जांच किस किस की हो पाएगी?
देहरादून: धामी सरकार ने कांवड़ यात्रा पर काफी अगर-मगर के बाद रोक बरक़रार रखी है। लेकिन अब दूसरी चिन्ता पुलिस प्रशासन और लॉ एंड ऑर्डर के लिहाज से दिखाई दे रही है। उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड पड़ोसी राज्य हैं लेकिन कांवड़ यात्रा पर अब रुख अलग-अलग हो चुका है। ऐसे में पुलिस महकमे को चिन्ता सता रही है कि कहीं बॉर्डर पर टकराव के हालात न पैदा हो जाएं। दरअसल यूपी की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा को अनुमति दी है और शिवभक्त कांवड़ियों को किसी तरह की दिक्कत न हो इसके भी इंतजाम किए जा रहे हैं। लेकिन कांवड यात्रा का होस्ट स्टेट उत्तराखंड ने कोरोना के हालात और तीसरी लहर के खतरे को देखकर कांवड़ यात्रा पर पिछली साल की तरह इस बार भी रोक लगा दी है।
अब पुलिस अधिकारियों और प्रशासन के लिए ये हालात चुनौतीपूर्ण बनते दिख रहे हैं। खासतौर पर यूपी-उत्तराखंड बॉर्डर पर भीड़ उमड़ने की आशंका है और अगर ऐसा हुआ तो उसे थामना नामुमकिन हो सकता है। उससे भी ज्यादा चिन्ता इस बात की है कि अगर भीड़ के हालात बनते हैं तब RT-PCR टेस्ट, पूर्व पंजीकरण, मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग जैसे कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराना असंभव होगा। जाहिर है ऐसी किसी भी क़ानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटने को दोनों ही राज्यों में जरूरी तालमेल होना बेहद जरूरी है।
अगर यूपी के साथ तालमेल में किसी तरह की बाधा आती है तो धामी सरकार को केन्द्र से दखल की मांग भी करनी पड़ सकती है।