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हाईकोर्ट हंटर का असर: सालों से सबसे कम स्टाइपेंड पा रहे राज्य के M.B.B.S. इंटर्न को अब मिलेगा 7500रु से बढ़ाकर हिमाचल के बराबर 17000रु स्टाईपेंड

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देहरादून: धामी सरकार ने एक बार फिर विपक्ष के उस आरोप को सच साबित कर दिया कि राज्य में सरकार हाईकोर्ट के हंटर से चलती है। ताजा मामला एमबीबीएस इंटर्न्स के स्टाईपेंड में इज़ाफ़ा करने से जुड़ा है। धामी सरकार ने राज्य के मेडिकल कॉलेजों के एमबीबीएस इंटर्न डॉक्टरों का स्टाईपेंड 7500 रु/मासिक से बढ़ाकर 17000 रु करने का फैसला किया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि कोरोना महामारी के प्रभाव को कम करने तथा पीड़ितों को त्वरित उपचार एवं आवश्यक चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने में हमारे चिकित्सकों एवं पेरामेडिकल स्टॉफ का सराहनीय योगदान रहा है।

अब सवाल है कि सालों से सबसे कम स्टाईपेंड पा रहे राज्य के मेडिकल कॉलेजों के करीब 330 एमबीबीएस इंटर्न डॉक्टरों की याद अचानक सरकार को क्यों आ गई? दरअसल इसके लिए न केवल यंग डॉक्टरों को हड़ताल का रास्ता अख़्तियार करना पड़ा बल्कि हाईकोर्ट को एक जनहित याचिका की सुनवाई करते सरकार को फटकारना भी पड़ा।

दरअसल, एक तरफ सरकार लगातार रोना रोती रहती है कि उसकी लाख कोशिशों के बावजूद युवा डॉक्टर्स न यहाँ रुकते हैं न पहाड़ चढ़ते हैं। लेकिन जो युवा डॉक्टर्स यानी एमबीबीएस इंटर्न्स राज्य में कोरोना की दूसरी लहर में दिन-रात अपनी जान पर खेलकर मरीजों की सेवा में लगे रहे उनको सरकार स्टाईपेंड देने में अन्य राज्यों से फीसड्डी रही। राज्य में यंग डॉक्टरों को सरकार एक मजदूर से भी कम 250 रु दैनिक स्टाईपेंड दे रही है। यंग डॉक्टर्स की इसी पीड़ा और सरकार की असंवेदनशीलता के मुद्दे पर हाईकोर्ट ने पिछले दिनों सख्ती दिखाई तो अब जाकर सरकार को एमबीबीएस इंटर्न डॉक्टरों की याद आई।


ज्ञात हो कि राज्य की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था और तीसरी लहर को लेकर सरकार की तैयारियों पर नैनीताल हाईकोर्ट में लगातार सुनवाई चल रही है। कई याचिकाकर्ताओं से एक हाईकोर्ट अधिवक्ता अभिजय नेगी ने यंग डॉक्टर्स के स्टाईपेंड का मुद्दा अपनी याचिका के ज़रिए हाईकोर्ट के समक्ष उठाया। अभिजय नेगी ने अपनी याचिका में कहा कि जहां पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश में एमबीबीएस इंटर्न डॉक्टरों को 17000 रु/मासिक और उत्तराखंड के साथ बने छत्तीसगढ़ में 2016 से ही यंग डॉक्टर्स को 17,900 रु/मासिक स्टाईपेंड दिया जा रहा है, वहीं उत्तराखंड में 7500 रु/मासिक स्टाइपेंड मिल रहा, जो सबसे कम है। याचिका में हाईकोर्ट से दरख्वास्त की गई थी कि राज्य सरकार को निर्देश दिए जाएं कि वह फ्रंटलाइन कोरोना वॉरिअर्स को स्टाइपेंड बढाकर प्रोत्साहित करे।


इसके बाद नैनीताल हाइकोर्ट के चीफ जस्टिस राघवेन्द्र सिंह चौहान और जस्टिस आलोक कुमार वर्मा की बेंच ने 7 जुलाई को स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी के माध्यम से निर्देश दिए। सरकार को हाईकोर्ट को 28 जुलाई को होने वाली अगली सुनवाई में स्टाईपेंड वृद्धि पर जवाब भी देना है। देहरादून के अलावा श्रीनगर और हल्द्वानी मेडिकल कॉलेजों के आंदोलित 330 एमबीबीएस इंटर्न डॉक्टर 23,500 रु स्टाईपेंड की मांग कर रहे थे।


याचिकाकर्ता व हाईकोर्ट अधिवक्ता अभिजय नेगी ने हाईकोर्ट के दखल के बाद आए धामी सरकार के फैसले पर खुशी जाहिर की है। अधिवक्ता नेगी ने कहा,

‘मैं उम्मीद करता हूँ कि इस कदम से हमारे युवा डॉक्टर उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देने के लिए प्रोत्साहित होंगे। हम सब कोविड जंग में फ्रंटफुट पर लड़ाई लड़ रहे हमारे मेडिकल प्रोफेशनल्स के शुक्रगुजार हैं । हाईकोर्ट के निर्देश के बाद सरकार द्वारा उठाया गया कदम सराहनीय है।’

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