देहरादून: सपने बेचना सियासत का पसंदीदा शग़ल रहा है और अगर सीजन चुनाव का पास हो तो फिर हसीन सपनों को सब्ज़बाग़ दिखाना कोई सरकारों से सीखे। आपने देखा होगा 3 जुलाई को दिल्ली से लौटकर इस्तीफा देने राजभवन जाने से पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सचिवालय पहुँचे और कई योजनाओं का पिटारा खोला। जो सबसे महत्वपूर्ण घोषणा थी वो यही कि 22 हजार से ज्यादा युवाओं को सरकारी नौकरी देने का रास्ता साफ कर दिया है।
4 जुलाई को पुष्कर सिंह धामी ने भी सीएम की शपथ लेते ही अपनी पहली कैबिनेट में इन्हीं 22 हजार सरकारी नौकरियों को जल्द से जल्द देने का वादा किया।
उसके बाद से लगातार आए दिन किसी न किसी विभाग से नौकरियों की विज्ञप्ति या मंत्रियों के बयान अखबारों की सुर्ख़ियां बन रहे कि फ़लां विभाग में इतने पद खाली जल्द भरे जाएंगे आदि-आदि। लेकिन क्या आप सरकारी भर्ती एजेंसियों यानी आयोगों की हकीकत से वाक़िफ़ हैं? अगर नहीं हैं और जल्द सरकारी नौकरी का सपना पाले हैं तो देखिए आयोगों का हाल क्या है।
उत्तराखंड में 5 साल से PCS की परीक्षा के फ़ॉर्म नहीं निकले हैं। समूह ‘ग’ भर्ती कराने की ज़िम्मेदारी जिस उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के पास है उसके सामने अरसे से अटकी पड़ी 5 परीक्षा कराने की पहाड़ जैसी चुनौती है। पांच परीक्षाओं के आवेदन भरे 6 महीने से भी अधिक वक्त गुज़र गया लेकिन परीक्षा का प्रोग्राम तय नहीं हो पाया है। ध्यान रहे इन अटकी 5 परीक्षाओं के लिए राज्य के 4.37 लाख बेरोजगार युवाओं ने आवेदन किया हुआ है। जबकि यही आयोग अभी लेखपाल-पटवारी, बंदीरक्षक, प्रयोगशाला सहायक के पदों के लिए आवेदन मंगा रहा है। यानी आवेदनों का अंबार लगाकर आयोग ये सारी परीक्षा कैसे आयोजित कराएगा इस यक्ष प्रश्न का उत्तर किसी के पास नहीं है। न धामी सरकार न आयोग के कर्ता-धर्ताओं के पास।
2016 में फ़ॉरेस्ट गार्ड भर्ती का रास्ता साफ हुआ 2018 में विज्ञापन निकला और तीन से अधिक समय बीत क्या भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। आयोग अब कोरोना काल को भर्ती परीक्षाओं के राह की बाधा करार दे रहा लेकिन कोई पूछे मार्च 2020 से पहले कितनी भर्तियों के कलेंडर जारी कर समयबद्ध तरीके से परीक्षा कराई गई।
हालात का अंदाज़ा आप इसी से लेगा सकते हैं कि आईएएस/पीसीसी जैसी बड़ी परीक्षा की तैयारी में चार-पांच साल का वक्त लग जाता है लेकिन राज्य में 5 साल से PCS के आवेदन तक नहीं निकले हैं परीक्षा कराना को बहुत दूर की बात। कोई पूछे सरकार और राज्य लोक सेवा आयोग से कि राज्य में पीसीसी बनने का सपना देखते-देखते ओवर एज हो चुके बेरोजगार युवाओं का दोष क्या है।
उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार का कहना है कि राज्य में 2016 में PCS की आखिरी बार परीक्षा आयोजित हुई थी जिसके बाद से हम लोग इंतजार ही कर रहे हैं। पंवार कहते हैं कि जहां आईएएस से लेकर अन्य राज्यों मे हर साल नियमित परीक्षा आयोजित होने से प्रतियोगियों को तीन से चार मौके मिल जाते हैं वहीं हमारे यहां क़िस्मत रही तो एक मौका वरना आप ओवर एज हो जाएंगे। बॉबी पंवार कोरोना के चलते बदली परीक्षा पद्धति पर भी सवाल उठा रहे हैं जिसमें ज्यादा पेपर कराकर नॉरमलाइजेशन फ़ॉर्मूले के तहत कई बार ज्यादा नंबर पाने वाले प्रतियोगियों के नंबर कम कर दिए जा रहे। पंवार कहते हैं कि राज्य में बड़ी से बड़ी परीक्षा में एक से डेढ़ लाख लोग आवेदन करते हैं और उनकी एक साथ परीक्षा जूनियर स्कूल, माध्यमिक से लेकर पीजी कॉलेजों के इंफ़्रास्ट्रक्चर का इस्तेमाल तक कराई जा सकती है लेकिन आयोग सबसे सुगम रास्ता अपनाकर युवाओं को नुकसान होने दे रहा है।
प्रयास आईएएस अकादमी के डायरेक्टर डॉ सुशील कुमार सिंह कहते हैं कि राज्य में 21 सालों में 6 बार पीसीसी की परीक्षा आयोजित हो सकी है। जबकि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश 24 अक्तूबर को 2021 बैच की परीक्षा आयोजित कराएगा। डॉ सिंह कहते हैं कम जब परीक्षा कलेंडर नियमित रूप से निकलेगा ही नहीं तब बच्चे तैयारी कैसे करेंगे और अनियमित परीक्षा माहौल से प्रतियोगियों में उदासीनता पनपती है और इन परीक्षाओं से मोहभंग भी होने लगता है। जबकि अगर नियमित PCS जैसी परीक्षा होने लगे तो विद्यार्थियों के बीच राज्य के कॉलेजों से लेकर विश्वविद्यालयों में प्रतियोगी परीक्षाओं का माहौल अध्ययन के स्तर को भी बढाने का काम करता है। साथ ही नए ऑफ़िसर न मिलने से सरकार का कामकाज भी तो प्रभावित होता है क्योंकि नए अफसर मिलेंगे नहीं और पुराने अफसर रिटायर हर साल होते रहेंगे।