अंग्रेज़ तो आ कर चला गया, पर जाति का जहर कैसे जाएगा ? धार्मिक श्रेष्ठता के नकली बोध के इर्द-गिर्द जब लोगों को गोलबंद किया जाएगा तो जातीय श्रेष्ठता के फर्जी बोध का बढ़ना स्वाभाविक

सांकेतिक तस्वीर
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दृष्टिकोण( इंद्रेश मैखुरी): “अल्मोड़ा अंग्रेज़ आयो टैक्सी में” कुछ अरसे से यह कुमाऊँनी गीत खासा लोकप्रिय हुआ। अल्मोड़ा में कौन अंग्रेज़ आया और कहाँ गया, पता नहीं, पर अल्मोड़ा जिले से जो खबर बीते दिनों आई, वह आधुनिक होने का दावा करने वाले, किसी भी समाज के लिए शर्मिंदगी का सबब है।

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अल्मोड़ा जिले के तहसील सल्ट के ग्राम थला तड़ियाल (मौडाली) के दर्शन लाल ने सल्ट के उपजिलाधिकारी को शिकायत भेजी कि 02 मई को उनके पुत्र विक्रम कुमार की शादी के दौरान गाँव के सवर्ण लोगों ने उनके पुत्र को जबरन घोड़ी से उतारने की कोशिश की। घोड़ी पर बारात निकालने पर जान से मारने और कफ़ल्टा कांड दोहराने की धमकी दी। गौरतलब है कि 09 मई 1980 को कुमाऊँ के कफ़ल्टा में दलितों की बारात में दूल्हे के डोली पर बैठ कर जाने के विवाद में 14 दलितों की हत्या कर दी गयी थी।

यह कौन सा धर्म है, जो एक मनुष्य को यह समझा देती है कि यदि दूसरा मनुष्य उससे छू गया, उसके घर के अंदर आ गया या बारात में घोड़ी या डोली पर चढ़ गया तो धर्म की क्षय हो जाएगी, धर्म अपवित्र हो जाएगा ? जाति का यह नकली श्रेष्ठताबोध कौन भरता है, जो घोड़ी पर बैठने मात्र के लिए एक मनुष्य दूसरे की जान लेने पर उतारू हो जाये ? मनुष्य, दूसरे मनुष्य को इंसान के रूप में नहीं बल्कि उसके जाति और धर्म के खांचे में देखे और उसके साथ अपना व्यवहार, उसके अच्छे-बुरे होने से नहीं बल्कि उसकी जाति-धर्म देख कर तय करे, इस मूढ़ता के पैरोकार और पोषक कौन हैं ?

अल्मोड़ा जिले के तहसील सल्ट के ग्राम थला तड़ियाल (मौडाली) के जिस प्रकरण की चर्चा की जा रही है, उसमें महिलाओं के अच्छी-ख़ासी भागीदारी थी। शिकायतकर्ता ने तो यहां तक लिखा कि महिलाओं ने उन्हें धमकी दी कि गांव के ज़्यादातर पुरुष बाहर हैं, अन्यथा सारे बारातियों को जिंदा जला देते !

गांव के प्रधान का अखबारों में छपा बयान भी विचित्र है कि वहां लोग घोड़ी पर नहीं चढ़ते !

उत्तराखंड में बीते कुछ वर्षों से इस तरह की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। दिसंबर 2021 में पहले चंपावत में दलित भोजनमाता की नियुक्ति के मामले में विवाद हुआ, सवर्ण बच्चों ने जातीय आधार पर दलित भोजनमाता के हाथ से बना खाना खाने से इंकार कर दिया। दिसंबर 2021 में ही चंपावत जिले के देवीधुरा में टेलरिंग की दुकान चलाने वाले रमेश राम की शादी के दौरान पीट कर हत्या किए जाने का मामला सामने आया था। इस मामले में मृतक रमेश राम की पत्नी की ओर इस मामले में पाटी थाने में रिपोर्ट दर्ज करवाई गयी थी। मृतक की पत्नी का कहना था कि उनके पति को सवर्ण लोगों ने इसलिए बेरहमी से मारा क्यूंकि वे शादी में एक दलित के अपने सामने खाना खाने से नाराज थे। इसी तरह 13 फरवरी 2021 को डीडीहाट में रामी राम नाम के युवक की हत्या हो गयी। इस प्रकरण में बाकी कार्यवाही जो हुई हो लेकिन यह कहने पर कि रामी राम दलित थे और उनकी हत्या करने वाले सवर्ण, पुलिस ने पिथौरागढ़ के युवा पत्रकार किशोर ह्यूमन को दो समुदायों के बीच द्वेष फैलाने का आरोप लगाते हुए जेल भेज दिया।

लगभग तीन वर्ष पहले 2019 में टिहरी जिले के नैनबाग क्षेत्र में एक दलित युवक के शादी में कुर्सी पर बैठने के मामले में पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी थी। मई 2019 में ही नैनबाग क्षेत्र में ही एक नौ वर्षीय दलित बच्ची के साथ एक सवर्ण अधेड़ द्वारा बलात्कार किए जाने का मामला सामने आया था। 2016 में बागेश्वर में एक दलित द्वारा चक्की छूने भर के लिए एक शिक्षक द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी थी।

बीते कुछ वर्षों में जिस तरह से धार्मिक राजनीति परवान चढ़ी है, धर्म पर गर्व करने का नारा गुंजायमान है। जाहिर सी बात है कि जिस धर्म पर गर्व करने की बात कही जा रही है, जाति उसका अभिन्न अंग है। इसलिए धार्मिक श्रेष्ठता के नकली बोध के इर्दगिर्द जब लोगों को गोलबंद किया जाएगा तो जातीय श्रेष्ठता के फर्जी बोध का बढ़ना स्वाभाविक है। धार्मिक राजनीति जितनी परवान चढ़ेगी, जातीय भेदभाव भी उसी अनुपात में बढ़ेगा।

प्रकरणों की गंभीरता के बावजूद उत्तराखंड की सरकार और मुख्यमंत्री जब तक मुमकिन हो, ऐसे प्रकरणों पर चुप्पी बरतते हैं।

इन मामलों में यह भी देखने में आया है कि प्रकरणों की गंभीरता के बावजूद उत्तराखंड की सरकार और मुख्यमंत्री जब तक मुमकिन हो, ऐसे प्रकरणों पर चुप्पी बरतते हैं। जब अत्याधिक दबाव हो तभी वे मुंह खोलते हैं। जिस राजनीति के वे प्रतिनिधि हैं, उस राजनीति में तो सब कुछ धर्म, जाति, क्षेत्र के आधार पर ही तय होता है तो बहुत मुमकिन है कि इस तरह का भेदभाव, उन्हें परेशान ही न करता हो बल्कि इसमें वे अपने ब्रांड की राजनीति को परवान चढ़ता देखते हों !

जिस दिन सल्ट क्षेत्र की उक्त घटना है, उससे एक दिन पहले राज्य के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने जातीय आधार पर बनी एक संस्था के कार्यक्रम में अपनी भागीदारी का उल्लेख करते हुए जो ट्वीट किया, उसकी शुरुआत, उन्होंने अपनी जाति पर गर्व के ऐलान की साथ की। जाहिर सी बात है कि जाति पर गर्व का यह बोध सत्ता के उच्च शिखरों पर रहेगा तो जातीय भेदभाव भी फलता-फूलता रहेगा।

साभार एफबी
(लेखक सोशल-पॉलिटिकल एक्टिविस्ट, राज्य आंदोलनकारी एवं सीपीआई(एमएल) के गढ़वाल सचिव हैं। विचार निजी हैं।)


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