न्यूज़ 360

पराक्रम और शौर्य की कहानी करगिल युद्ध की 22वीं वर्षगांठ देश मना रहा विजय दिवस, मातृभूमि पर प्राण न्यौछावर करने वाले वीर सपूतों में सैन्यधाम उत्तराखंड के 75 जांबाज, मिले थे 37 वीरता पदक

Share now

देहरादून: दो दशक से पहले 1999 में लड़ा गया करगिल युद्ध भारतीय सैन्य शौर्य की अद्भुत मिसाल है जिसे सदियों तक याद किया जाता रहेगा। जब दुश्मन सीमाओं की चोटियों पर घात लगाकर चढ़ बैठा था, तब भारतीय सेनाओं ने अपने अदम्य साहस और जांबाज़ी से हिम्मत और हौसलों की नई कहानी गढ़ते हुए पाकिस्तानी सेना और आतंकियों को करारी शिकस्त दी थी। आज दुनियाभर के वॉर फ़ेयर सिलेबस में करगिल में भारतीय सेनाओं की जीत का चेप्टर पढ़ाया जाता है। आज देश अपने उन्हीं जवानों की शहादत और शौर्य को याद कर रहा है।

करगिल युद्ध में सैन्यधाम उत्तराखंड के जांबाजों ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर साबित किया कि देश रक्षा के समय देवभूमि के वीर अग्रिम पंक्ति में खड़े नजर आएंगे। करगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जवानों ने देश रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। इनमें 37 जवान ऐसे थे जिन्हें युद्ध उपरांत उनकी बहादुरी के लिए वीरता पदक से सम्मानित किया गया।आजादी के बाद से अब तक राज्य के डेढ़ हजार से अधिक सैनिक देश रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर चुके हैं।


कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के वीर जवान

महावीरचक्र विजेता – मेजर विवेक गुप्ता, मेजर राजेश अधिकारी।
वीरचक्र विजेता- कश्मीर सिंह, बृजमोहन सिंह, अनुसूया प्रसाद, कुलदीप सिंह, एके सिन्हा, खुशीमन गुरुंग, शशि भूषण घिल्डियाल, रूपेश प्रधान व राजेश शाह।
सेना मेडल विजेता- मोहन सिंह, टीबी क्षेत्री, हरि बहादुर, नरपाल सिंह, देवेंद्र प्रसाद, जगत सिंह, सुरमान सिंह, डबल सिंह, चंदन सिंह, मोहन सिंह, किशन सिंह, शिव सिंह, सुरेंद्र सिंह व संजय।
मेन्स इन डिस्पैच- राम सिंह, हरि सिंह थापा, देवेंद्र सिंह, विक्रम सिंह, मान सिंह, मंगत सिंह, बलवंत सिंह, अमित डबराल, प्रवीण कश्यप, अर्जुन सेन, अनिल कुमार।

किस जिले से कितने जवान हुए शहीद
जिला- शहीद जवान
देहरादून- 28
पौड़ी- 13
टिहरी- 08
नैनीताल- 05
चमोली- 05
अल्मोड- 04
पिथौरागढ़- 04
रुद्रप्रयाग- 03
बागेश्वर- 02
ऊधमसिंहनगर- 02
उत्तरकाशी- 01

Show More

The News Adda

The News अड्डा एक प्रयास है बिना किसी पूर्वाग्रह के बेबाक़ी से ख़बर को ख़बर की तरह कहने का आख़िर खबर जब किसी के लिये अचार और किसी के सामने लाचार बनती दिखे तब कोई तो अड्डा हो जहां से ख़बर का सही रास्ता भी दिखे और विमर्श का मज़बूत मंच भी मिले. आख़िर ख़बर ही जीवन है.

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!