देहरादून: एक तरफ़ युवा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अधिकारियों के पेंच कसने का दम भरते दावा कर रहे कि अब जिलों के काम जिलों में, तहसील के काम तहसील में होगे।अधिकारियों को रोजाना दो घंटे आम जन की समस्याएँ दफ़्तरों में बैठकर सुननी होंगी ताकि लोगों को त्वरित रिलीफ़ मिल सके। जरूरी भी है सामने चुनाव को देखते हुए ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए ताकि सत्ताधारी दल एंटी इन्कमबेंसी से बच सके। लेकिन जो कहा जाता है वो होता कहां हैं धरातल पर!
ताजा मामला विश्वप्रसिद्ध पर्यावरणविद् पद्मविभूषण स्वर्गीय सुंदरलाल बहुगुणा से जुड़ा हुआ है। स्वाधीनता सेनानी रहे बहुगुणा के निधन के बाद उनकी स्वाधीनता सेनानी पेंशन उनकी पत्नी के नाम ट्रांसफर होनी थी। काम बेहद आसान था केन्द्र की मोदी सरकार ने बहुत पहले कर भी दिया लेकिन राज्य सरकार के स्तर पर मामला अटका पड़ा है। देहरादून डीएम राजेश कुमार बिजी ठहरे और उनके पास एक स्वाधीनता सेनानी के प्रकरण पर बात करने के लिए आधा मिनट की भी फुरसत नहीं है।
स्वर्गीय बहुगुणा के पुत्र और वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा ने फेसबुक पर पोस्ट लिखकर मामला उजागर किया है। राजीव नयन बहगुणा ने क्या कहा है उसे हुबहू यहाँ पढ़िए
बेशर्मी की हद
कुछ शर्म बाक़ी है ? मेरे स्वर्गीय पिता सुंदर लाल बहुगुणा की स्वाधीनता सेनानी पेंशन उनकी मृत्यु के ढाई महीने बाद भी मेरी मां के नाम स्थानांतरित न हो सकी । यह उत्तराखण्ड प्रदेश का मामला है । केंद्रीय पेंशन में कोई समस्या नहीं आयी ।
स्वर्गीय बहुगुणा के पुत्र और वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा
एक बार ज़िला ट्रेज़री ऑफिस ने हमारे दिए कागज़ात खो दिए । दुबारा दिए तो कोई उत्तर नहीं ।
कल से 18 बार कलेक्टर ऑफिस फ़ोन कर चुका । कभी साहब इंस्पेक्शन में हैं , कभी मीटिंग में हैं ।
भाई कलेक्टर , मीटिंग में हो , या ईटिंग और चीटिंग में हो , जो एक स्वाधीनता सेनानी के प्रकरण पर बात करने के लिए आधा मिनट नही निकाल सकते ।
क्या यह किसी के इशारे पर जान बूझ कर किया जा रहा ? अब हमे पेंशन नहीं चाहिए । कितना बेइज़्ज़त करोगे ?
शेयर करना भाइयों । ताकि चेहरा सामने आए ।