देहरादून (पवन लालचंद) : वैसे सूबे की 70 विधानसभा सीटों में से 41 गढ़वाल क्षेत्र से आती हैं लेकिन ऐसा लगता है कि 22 बैटल का सारा दारोमदार कुमाऊं की 29 सीटों पर ही टिका है। भाजपा आलाकमान ने कुमाऊं-तराई और युवा समीकरण साधने को पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर इसी बिसात पर अपनी बाजी चली तो अब हरदा भी कुमाऊं-तराई के कुरुक्षेत्र में सत्ताधारी दल के दांत खट्टे करने की रणनीति पर हैं।
कांग्रेस के कैंपेन कमांडर हरदा की नैनीताल जिले की रामनगर सीट पर सक्रियता कई तरह के मैसेज दे रही है। वैसे कुमाऊं में आपदा के बाद से लगातार हरदा इस पूरे क्षेत्र में भाग-दौड़ कर रहे लेकिन तीन कृषि क़ानूनों के खिलाफ छिड़े किसान आंदोलन के असर को देखते हुए हरदा ऊधमसिंहनगर और उससे लगते नैनीताल जिले की विधानसभा सीटों पर भारी उलटफेर कराने की पटकथा लिख रहे हैं। भाजपा से यशपाल आर्य की कांग्रेस में घर वापसी के बाद हरदा के कुमाऊं में हाथ पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गए हैं और इसका फायदा नैनीताल-ऊधमसिंहनगर की सीटोँ पर भी कांग्रेस को मिल सकता है।
कुमाऊं का सियासी टेम्परेचर इस एंगल से भी बढ़ रहा है क्योंकि हरीश रावत को घर में ही घेरने की रणनीति पर भाजपा भी खूब जोर-आजमाइश कर रही है। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व लगातार कुमाऊं की मजबूत क़िलेबंदी को लेकर पसीना बहा रहा है और अब पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 15 नवंबर को हरदा के गृह जिले अल्मोड़ा का दौरा करेंगे। नड्डा उत्तराखंड की सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा के बहाने पूरे कुमाऊं के पर्वतीय अंचल में भाजपा के चुनाव प्रचार को धार देकर जाएंगे। इसके बाद भाजपा रणनीतिकारों की तैयारी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह को भी कुमाऊं कुरुक्षेत्र में उतारने की है।
भाजपा की कुमाऊं में क़िलेबंदी की काट में हरदा भी सियासी व्यूह रचना ऐसी बना रहे हैं कि न केवल अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चंपावत जैसे पर्वतीय जिलों में भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का मजा चखाया जाए बल्कि नैनीताल व ऊधमसिंहनगर जैसे तराई-भाबर क्षेत्र के जिलों में भी किसान आंदोलन के चलते बने समीकरण का अधिकतम सियासी फायदा उठाया जाए। हालांकि 2017 के सियासी संग्राम में हरदा किच्छा में हाथ जला चुके लेकिन अब कुमाऊं की गोला नदी मे बहुत पानी उतर चुका है और रामनगर को कांग्रेसी कैंप में सुरक्षित सीट के तौर पर काउंट किया जा रहा है।
कांग्रेस राजनीति की अच्छी समझ रखने वाले जानकार इसी नज़रिए से हरदा की रामनगर में सक्रियता के कई सियासी मायने निकाल रहे हैं। पहला तो यही कि हरदा रामनगर के रण में कूदकर तराई क्षेत्र में अपने असर का फायदा पार्टी के लिए उठाना चाह रहे, दूसरा रामनगर से लगे अपने गृह जिले अल्मोड़ा से लेकर कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों तक पहुंच व संदेश देना चाहते हैं। हालांकि अभी रामनगर से ही हरदा विधानसभा चुनाव लड़ेंगे इसे लेकर पुख़्ता तौर पर हामी नहीं भरी जा सकती है क्योंकि इसी सीट पर प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रणजीत रावत लंबे समय से तैयारी कर रहे हैं। लेकिन कांग्रेसी गलियारे में हरदा के रामनगर के रण में उतरने की चर्चा तेज हो रही है और अगर ऐसे हालात बने तो रणजीत रावत को उनकी पुरानी सीट सल्ट, जहां उनका अच्छा असर भी माना जाता है, भेजे जा सकते हैं।
दरअसल, सत्रह के संग्राम में भाजपा ने सूबे के दूसरे हिस्सों की तरह कुमाऊं में भी कांग्रेस को बुरी तरह से कुचल दिया था। नैनीताल की हल्द्वानी सीट से दिवंगत डॉ इंदिरा ह्रदयेश और ऊधमसिंहनगर की जसपुर सीट से आदेश चौहान ही जीत पाए थे तो पर्वतीय क्षेत्र से जागेश्वर से गोविंद सिंह कुंजवाल, धारचूला से हरीश धामी और रानीखेत से करन माहरा चुनावी फतह हासिल कर पाए थे। लेकिन पांच साल बाद कांग्रेसी थिंकटैंक कुमाऊं में खुद को कहीं ज्यादा ताकतवर महसूस कर रहा है और पार्टी हरदा को आगे कर अपनी क़िलेबंदी मजबूत कर रही।
जाहिर है भाजपा भी बखूबी इस समीकरण और हालात को समझ रही लिहाजा हरदा को घर में घेरने की आक्रामक रणनीति पर वह चल रही है लेकिन उसके सामने सबसे ज्यादा संकट विधायकों के खिलाफ स्थानीय स्तर पर बनी प्रचंड सत्ता विरोधी लहर बन रही है। हरदा सत्ताधारी दल भाजपा की इसी कमजोर नब्ज को दबाकर बाइस बैटल में कांग्रेस को इक्कीस साबित करने निकल पड़े हैं।