न्यूज़ 360

ADDA ANALYSIS चुनाव 2022 का नजर 2024 पर: आज साढ़े 3 बजे 22बैटल का बजेगा बिगुल, योगी-अखिलेश की राजनीति के लिए खास तो हरदा-धामी के लिए ‘करो या मरो’ बिसात, मोदी-शाह से लेकर राहुल-प्रियंका के राजनीतिक भविष्य पर पड़ेगा असर

Share now

दिल्ली/देहरादून: निर्वाचन आयोग आज साढ़े 3 बजे यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में होने वाले विधानसभा चुनावों की तारीख़ों का ऐलान कर देगा। इसी के साथ राजनीतिक गलियारे का यह असमंजस भी खत्म हो जाएगा कि कोरोना और ओमीक्रॉन के खतरे को देखते हुए क्या चुनाव तय समय पर होंगे या फिर खिसकेंगे!


दरअसल, इलाहाबाद हाईकोर्ट के मशविरे के बाद चर्चा शुरू हो गई थी कि क्या वाकई पांच राज्यों के चुनाव टलेंगे! लेकिन जब चुनाव आयोग ने तमाम राजनीतिक दलों से मशविरा किया तो अधिकतर तय समय पर चुनाव कराने के पक्षधर थे और अब आयोग पूरी तैयारी के साथ साढ़े 3 बजे तारीख़ों का ऐलान करेगा। यह देखना खासा अहम होगा कि आखिर आयोग चुनावी रैलियों, रोड शो, भीड़भाड़ भरे आयोजनों पर लगाम लगाने के कौनसे नियम सामने रखता है जिनका धरातल पर कड़ाई से पालन भी हो सके।

बहरहाल यह आयोग के हवाले से सामने आएगा लेकिन 2022 के शुरू में हो रहे विधानसभा चुनाव न केवल इन पांच राज्यों की सरकारों के गठन का रास्ता साफ करने वाले साबित होंगे बल्कि इसका असर इसी साल के आखिर में होने वाले हिमाचल प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों पर तो पड़ेगा ही। साथ ही 22 बैटल का पॉलिटिकल इम्पैक्ट 24 की चुनावी जंग की पटकथा भी लिख देगा। खासतौर पर यूपी के चुनाव नतीजे देश की राजनीति के मिज़ाज तय करने वाले साबित होंगे। लिहाजा जब 22 बैटल की बात हो रही है तब सबसे पहले उत्तरप्रदेश पर ही चर्चा होनी चाहिए।

योगी बनाम अखिलेश जंग में 24 की चुनावी तस्वीर की दिखेगी झलक

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में सबसे बड़ी और सबसे मारक जंग उत्तरप्रदेश में ही छिड़ी है, जहां योगी का आक्रामक हिन्दुत्व बनाम अखिलेश का महामोर्चा बनाम प्रियंका की लड़की हूँ लड़ सकती हूँ के बीच चुनावी बिसात बिछी हुई है। योगी अयोध्या, काशी से लेकर मथुरा तक आक्रामक हिन्दुत्व की अपनी छवि के सहारे 2022 की चुनावी जंग जीतकर 2024 में देश की लड़ाई में अपना दमखम दिखाने को बेताब हैं। तो अखिलेश यादव विकास की अपनी छवि को थामे रखते हुए छोटी-छोटी पार्टियों के साथ महामोर्चा बनाकर ‘बाइस में बाइसिकल’ के लखनऊ में दौड़ने का दम भर रहे हैं। उधर प्रियंका गांधी एकला चलो अंदाज में ‘लड़की हूँ लड़ सकती हूं’ के जरिए आधी आबादी के वोटबैंक को अपने पाले में लाकर करिश्मा कर दिखाना चाह रही हैं। यूपी वह राज्य भी है जहां किसान आंदोलन के संभावित असर की बात भी खूब हो रही है।


जाहिर है यूपी चुनाव सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा के राजनीतिक भविष्य के लिहाज से बेहद अहम है। अगर योगी 2022 में दोबारा यूपी में कमल खिलाने में कामयाब रहते हैं तो यह जीत उनका कद न केवल बीजेपी में प्रधानमंत्री मोदी के बाद दूसरे स्थान पर पहुँचा देगी बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में बड़ी पारी की पटकथा भी लिखवा सकती है।


अगर अखिलेश यादव सपा को सत्ता का सिरमौर बना पाते हैं तो यह न केवल फिर से मुख्यमंत्री बनने का मौका देगी बल्कि 2024 में दिल्ली की लड़ाई में समाजवादियों के राजनीतिक स्पेस को कई गुना बढ़ा देगी। लेकिन अगर अखिलेश फिर कमजोर पड़ते हैं तो यह उनकी राजनीति के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं होगा। अगर प्रियंका गांधी वाड्रा कांग्रेस की झोली में अच्छा वोट शेयर ले आती हैं और सम्मानजनक सीटें जीत लेती हैं तो न केवल 2024 में 2009 की तरह 20 से ज्यादा सांसद जिताने के उसके ख़्वाबों को पंख लगेंगे बल्कि यूपी में सरकार गठन में उसकी अहम भूमिका हो सकती है।

उत्तराखंड में हरदा वर्सेस धामी जंग भी करो या मरो वाली राजनीति


देवभूमि दंगल में इस बार भी भाजपा और कांग्रेस में आमने-सामने की टक्कर है। दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी ने मुकाबला त्रिकोणीय बनाने की कोशिश जरूर की लेकिन हालात यह हैं कि AAP को मायावती की BSP के साथ वोट शेयर और सीटों को लेकर तीसरे नंबर के लिए उलझना है। खबर यह है कि हरिद्वार में कम से कम दो से तीन ऐसी सीटें हैं जिनपर BSP सीधे कांग्रेस या भाजपा को टक्कर दे रही है। लेकिन सूबे में अब तक एक भी ऐसी सीट नहीं जहां AAP भाजपा या कांग्रेस किसी को भी पटखनी देती दिख रही हो।


बहरहाल, देवभूमि दंगल में पार्टियों की परफ़ॉर्मेंस का आकलन तो सरकार के बनने-बिगड़ने से हो ही जाएगा लेकिन असल पॉलिटिकल परीक्षा हरदा वर्सेस धामी वर्सेस कोठियाल की होनी है। अगर सरकार बनाने या मुख्यमंत्री बनने की दौड़ से फिलहाल AAP की मौजूदा स्थिति के मद्देनज़र कर्नल अजय कोठियाल को अलग करके देखें तो राजनीतिक जमीन बचाने और बिगड़ने का जोखिम पूर्व सीएम हरीश रावत और सिटिंग सीएम पुष्कर सिंह धामी के मध्य ही है।

हरदा वर्सेस धामी जंग करो या मरो जंग से कम नहीं। दूसरी बार चुनाव जीतकर बिना मंत्री बने बाइस बैटल से चंद माह पहले मुख्यमंत्री बना दिए गए युवा विधायक पुष्कर सिंह धामी अगर भाजपा की जीत का साझीदार बने तो उनका इंतजार राजनीतिक करिअर का सुनहरा भविष्य कर रहा होगा। जहां फिर से मुख्यमंत्री बनने से लेकर पहाड़ पॉलिटिक्स में बड़ी छाप छोड़ने का अवसर होगा। लेकिन अगर बारी-बारी भागीदारी का फॉर्मूला चार विधानसभा चुनावों के बाद पाँचवी बार भी दोहराया गया तो यह न केवल भाजपा के लिए तगड़ा झटका होगा बल्कि युवा धामी की राजनीति के लिए भी बड़ा अवरोधक बन जाएगा। ऐसा हुआ तो उनके लिए नए राजनीतिक विकल्प सिमटते नजर आएंगे।


हरदा वर्सेस धामी जंग में अगर पूर्व मुख्यमंत्री का पलड़ा भारी रहा, तो तमाम घरेलू विरोधी स्वरों के बावजूद उनकी ताजपोशी तय होगी और अपने राजनीतिक जीवन की इस अंतिम पारी में हरीश रावत के लिए कई नए मार्ग और मोर्चे अपने आप खुलते चले जाएंगे। कांग्रेस की जीत हरीश रावत का कद न केवल अखिल भारतीय स्तर पर पार्टी में फ़ौलादी बना देगी बल्कि पहाड़ पॉलिटिक्स में वे अपने घरेलू और बाहरी राजनीतिक विरोधियों से कई और कदम आगे खड़े नजर आएँगे।

पांच राज्यों में से पंजाब में आम आदमी पार्टी कांग्रेस के तमाम झगड़ों-झंझावातों से कितना पॉलिटिकल बेनेफिट उठा पाती है इसका भी चल जाएगा। इतना ही नहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुक्त होकर कांग्रेस नवजोत सिंह सिद्धू और सीएम चरणजीत सिंह चन्नी के जरिए क्या AAP के दिल्ली के बाहर सरकार बनाने के सपने को साकार होने से रोक पाती है कि नहीं इसका पटाक्षेप भी नए राजनीतिक संकेत देगा। गोवा में भी भाजपा, कांग्रेस के अलावा AAP के शक्ति परीक्षण से नए सियासी संकेत मिलेंगे।

Show More

The News Adda

The News अड्डा एक प्रयास है बिना किसी पूर्वाग्रह के बेबाक़ी से ख़बर को ख़बर की तरह कहने का आख़िर खबर जब किसी के लिये अचार और किसी के सामने लाचार बनती दिखे तब कोई तो अड्डा हो जहां से ख़बर का सही रास्ता भी दिखे और विमर्श का मज़बूत मंच भी मिले. आख़िर ख़बर ही जीवन है.

Related Articles

Back to top button
error: Content is protected !!