देहरादून: क्या 22 बैटल में भाजपा को अब तक मिलते रहे फौजी पोस्टल बैलेट वोटों के मजबूत सहारे से भी महरूम रहना पड़ सकता है? क्या इस बार देवभूमि दंगल में भाजपा को फ़ौजी वोटर्स के मुकाबले कार्मिक वोटर्स जिनमें पुलिस सुरक्षा कर्मी भी शामिल हैं, के चलते झटका लगेगा? 10 मार्च को आने वाले नतीजों से पहले भाजपा रणनीतिकारों की धड़कने ऐसे कई चुभते सवाल बढ़ा रहे हैं।
दरअसल, उत्तराखंड की अब तक की तमाम चुनावी लड़ाईयों में भाजपा को फ़ौजियों के पोस्टल बैलेट से पहुँचने वाले वोट कई सीटों पर जीत की संजीवनी दिलाते रहे हैं। फिर चाहे 2008 में सतपाल महाराज बनाम टीपीएस रावत का पौड़ी गढ़वाल लोकसभा उपचुनाव रहा हो जहां फौजी वोटों के चलते महाराज को शिकस्त खानी पड़ी थी या फिर किसी भी चुनाव में हजार-पांच सौ वोटों की करीबी लड़ाई के वक्त भाजपा को फौजी वोटों से फायदा मिला हो।
इस बार भी जब पूरे चुनाव में वोटर खामोश रहा और 2017 जैसी मोदी लहर से वंचित भाजपा को एंटी इनकमबेंसी झेलनी पड़ी है तब उसे पोस्टल बैलेट के जरिए पहुँचने वाले फौजी वोटों से बड़ी उम्मीदें हैं। कांग्रेस भी इसकी गंभीरता को बखूबी समझती है और पूर्व सीएम हरीश रावत द्वारा पोस्टल बैलेट से छेड़छाड़ का वीडियो जारी करना इसका सबूत है। लेकिन 26 फरवरी तक पोस्टल बैलेट को लेकर जो आंकड़े हासिल हुए हैं उसने भाजपा नेताओं की पेशानी पर नए सिरे से बल डाल दिए हैं।
पोस्टल बैलेट वोट: सर्विस वोटर बनाम कार्मिक( सुरक्षा कर्मी) वोटर
इस बार विधानसभा चुनाव में 94471 फौजी वोटर्स को पोस्टल बैलेट भेजे गए हैं। जबकि चुनाव ड्यूटी में लगे कार्मिकों जिनमें पुलिस सुरक्षा कर्मी भी शामिल हैं, को 54982 पोस्टल बैलेट भेजे गए हैं। यहाँ से भाजपा की असल चिन्ता शुरू होती है। 26 फरवरी तक 94 हजार से अधिक सर्विस वोटर्स यानी फौजी पोस्टल बैलेट में से महज 26,630 प्राप्त हुए हैं। जबकि 54 से अधिक कार्मिक वोटर्स में से 39685 पोस्टल बैलेट प्राप्त हो गए हैं।
भाजपा रणनीतिकारों की चिन्ता है कि 4600 ग्रेड पे और अन्य माँगों के चलते कार्मिक और पुलिस सुरक्षा कर्मी राज्य सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगा रहे हैं लिहाजा उनके वोटों में यह नाराजगी झलक सकती है। लेकिन फौजी पोस्टल बैलेट में 70 से 80 फीसदी तक वोट भाजपा को मिलने की उम्मीद रहती है लेकिन अब तक पोस्टल बैलेट के लौटने की जो रफ्तार है वह अगर अगले एक हफ्ते में नहीं बढ़ी तो भारी नुकसान की आशंका है।
भाजपा रणनीतिकारों का डर यह भी है कि एक तो फौजी पोस्टल 50-60 फीसदी ही लौटता है और अभी तक उससे भी आधे मत पहुंचना कई सीटों पर पार्टी की जीत की संभावनाओं के लिए झटका है। जबकि कार्मिक-सुरक्षा कर्मियों के पोस्टल वोटों के शत-प्रतिशत लौटने की संभावना है, जो भाजपा को मिलने वाले फौजी वोटों के मुकाबले कांग्रेसी नुकसान की भरपाई कर सकती है।
दरअसल, उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव दर चुनाव देखा गया है कि दर्जनभर सीटों पर बेहद करीबी मुकाबला होता है। भाजपा-कांग्रेस में ये करीबी मुकाबला अधिकतर पौड़ी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र की सीटों पर देखने को मिलता है। इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों की विधानसभा सीटों पर ही पोस्टल बैलेट से पहुँचने वाला सबसे अधिक फौजी वोटर मौजूद हैं।
विधानसभा चुनाव 2022 को लेकर कुल 94,471 सैन्य पोस्टल बैलेट चुनाव आयोग ने भेजे हैं। सबसे ज्यादा पोस्टल बैलेट 16130 वोटर पौड़ी जिले में हैं। यहाँ कि लैंसडौन सीट पर सबसे अधिक 4180 वोट हैं यानी करीबी मुकाबला हुआ तो ये वोट निर्णायक होंगे। पौड़ी सुरक्षित सीट पर 3304 और चौबट्टखाल पर 3761 फौजी पोस्टल बैलेट वोटर हैं। बाकी तीन सीटों पर भी 2 हजार से ऊपर संख्या है। पिथौरागढ़ जिले में फौजी वोटर्स का औसत सीट वार 3500 हजार से भी अधिक है। पिथौरागढ़ और डीडीहाट पर फौजी पोस्टल बैलेट वोट 5 हजार से भी अधिक हैं। चमोली और रूद्रप्रयाग जिलों की सीटों पर भी फौजी पोस्टल बैलेट वोटर्स की संख्या 2 हजार से 4 हजार के बीच है।
ज्ञात है कि इन्हीं दो संसदीय क्षेत्रों की जागेश्वर, सोमेश्वर, गंगोलीहाट, लोहाघाट से लेकर केदारनाथ जैसी कई मामूली अंतर से जीत दर्ज करने वाली विधानसभा सीटें शामिल हैं। इन क्षेत्रों में फ़ौजी पोस्टल बैलेट वोटर निर्णायक हो सकता है। ऐसे में फौजी पोस्टल वोटों के लौटने की रफतार धीमी होना और कार्मिक-सुरक्षा कर्मियों के पोस्टल वोटों का प्रतिशत चिन्ता बढ़ा रहा है।