देहरादून: उत्तराखंड में बेरोज़गारी किस कदर युवाओं के रास्ते मुसीबतों के पहाड़ खड़े कर रही है, इसका अंदाज़ा लगाना हो तो गुजरे चार-पांच सालों में तमाम चयन आयोगों की भर्तियां प्रक्रिया की पड़ताल की जा सकती है। हर भर्ती में धाँधली के आरोपों से लेकर अदालतों के दरवाजे खटखटाने की नौबत और विज्ञप्ति से रिजल्ट तक सालों के इंतजार ने युवाओं के हौसलों को तोड़ डाला है। लेकिन चिन्ता की बात यह है कि इन भर्ती आयोगों में बैठे सरकारी कारिंदों की सेहत पर रत्ती भर फर्क नहीं पड़ा है।
सूबे में बेरोज़गारी का आलम इससे भी समझा जा सकता है कि वन दरोगा के महज 316 पदों के लिए डेढ़ लाख बेरोजगार युवाओं ने आवेदन किया था।
हाल में उत्तराखंड लोक सेवा आयोग की लोअर पीसीएस भर्ती प्री परीक्षा में 12 गलत सवालों के बोनस देकर मामला रफ़ा-दफ़ा करने के प्रयास हुए जिनके विरोध में उम्मीदवार विरोध-प्रदर्शन को मजबूर हैं। लेकिन अब ऐसा ही कारनामा अधीनस्थ सेवा चयन आयोग ने कर दिखाया है। NSEIT जैसी दागी एजेंसी को हायर कर आरोपों के घेरे में आए अधीनस्थ सेवा चयन आयोग की वन दरोगा भर्ती परीक्षा में 332 सवाल आउट ऑफ सिलेबस दिए गए जिन्हें अब हटाकर बोनस अंक दे दिए हैं जिसका विरोध शुरू हो गया है।
दरअसल, दिसंबर 2019 में वन दरोगा के 316 पदों हेतु जारी विज्ञापन के अनुसार 16 जुलाई से 25 जुलाई 2021 तक 18 पालियों में ऑनलाइन माध्यम से लिखित परीक्षा सम्पन्न हुई थी। इस परीक्षा का परिणाम आदर्श आचार संहिता लगने से चंद मिनट पहले घोषित किया गया था।
परीक्षा परिणाम के साथ जारी विज्ञप्ति द्वारा सूचित किया गया कि कुल 1800 प्रश्नों में से 332 प्रश्नों को “पाठ्यक्रम से बाहर के प्रश्न ” के आधार पर हटा दिया। तथा उन प्रश्नों के अंकों को अभ्यर्थियों में बोनस के तौर पर प्रदान किया गया जिससे परीक्षा परिणाम में कई अनियमितताएं सामने आई। उम्मीदवारों का आरोप है कि हटाए गए प्रश्नों में भी काफी अनियमितताएं सामने आई जैसे कि एक पाली से 27 प्रश्न हटाए गए वहीं दूसरी पाली से मात्र 6 प्रश्न हटाए गए।
इन्हीं अनियमितताओं को आधार बनाते हुए अभ्यर्थियों ने नैनीताल उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की जिसमें उच्च न्यायालय ने आदेश दिया कि सभी 10 याचिकाकर्ता एक हफ्ते के भीतर आयोग में अपना संयुक्त प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करें और आयोग के सचिव को सभी अनियमितताओं से अवगत करवाएं। इसके बाद आयोग आठ हफ्ते के भीतर इस प्रकरण में नियमानुसार उचित फैसला ले जिससे सारी अनियमितताएं दूर हों और तब तक किसी भी अभ्यर्थी को नियुक्ति न प्रदान की जाए।
याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि अगर आयोग 8 हफ्तों की भीतर इन सभी अनियमितताओं को दूर नहीं करता है तो सभी अभ्यर्थी उग्र आंदोलन करेंगे और दोबारा उच्च न्यायालय का रुख अख्तियार करेंगे।
वहीं, तमाम भर्ती आयोगों की अनियमितताओं को उजागर कर युवा बेरोज़गारों के हक की लड़ाई लड़ रहे उत्तराखंड बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार ने आरोप लगाया, ’वन दरोगा परीक्षा दागी एजेंसी NSEIT द्वारा सम्पन्न करवाई गई जिसको लेकर उत्तराखंड बेरोजगार संघ ने परीक्षा से पहले भी चिंता जाहिर की थी परन्तु राज्य सरकार और अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। इसी का नतीजा है कि मात्र 80,000 अभ्यर्थियों की परीक्षा 18 पालियों में सम्पन्न करवाई गई और 1800 प्रश्नों में से 332 प्रश्नों को हटाया गया जो मेहनती छात्रों के साथ छलावा है। वहीं आदर्श आचार संहिता लागू होने के साथ साथ इसका परिणाम घोषित कर दिया जिससे प्रदेश के छात्र विरोध ना कर सके जो कि एक सोची समझी रणनीति है। वहीं परीक्षा में एक ही परिवार के कई सगे भाई-बहनों का चयन और वन विभाग में कार्यरत अधिकतर अधिकारियों के बच्चों का चयन होना अपने आप में संदेह पैदा करता है। इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए एवं दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए।’
बहरहाल, उत्तराखंड में सरकारी नौकरी के लिए सालों तैयारी करने वाले युवाओं के सपनों को लेकर संजीदगी का यह आलम है। आप कल्पना कर सकते हैं किस हालात में भर्ती परीक्षा हो रही होंगी और कितना निष्पक्ष होकर आयोग काम कर रहे होंगे? आलम यह है कि हाईकोर्ट को दखल देकर अधीनस्थ सेवा चयन आयोग को कहना पड़ रहा है कि उम्मीदवारों की शिकायतें दूर की जाएँ और तब तक किसी को नियुक्ति प्रदान न की जाए। जाहिर है इस तरह की लापरवाही के चलते जहां परिणाम मे पास हो गए ईमानदार और मेहनती युवाओं के साथ छल हो रहा, दूसरा आयोग की लापरवाही से कई मेहनती युवा अवसर से वंचित रह जाते हैं।
जबकि उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के सचिव संतोष बडोनी ने माना है कि यह सही है कि 1800 सवालों में से 332 सवाल आउट ऑफ सिलेबस थे जिसके एवज में बोनस अंक दिए गए हैं।