देहरादून: उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में भाजपाई ‘सेना जीत गई पर सेनापति हार गया’ लिहाजा अब नई सरकार के सूबेदार पर नए सिरे से मंथन का रास्ता खुल गया है। निःसंदेह कार्यवाहक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खटीमा से करारी हार के बावजूद चीफ मिनिस्टर रेस में बने हुए हैं। इसकी वजह है प्रदेश में ‘बारी-बारी सरकार में भागीदारी’ का मिथक टूटना और भाजपा सरकार का रिपीट होना। लेकिन उनके अलावा भी कई विधायक दावेदार हैं तो कई सांसद भी रेस में बने हुए हैं। लेकिन फैसला मोदी-शाह को लेना है और यह कुमाऊं-गढ़वाल से लेकर ठाकुर-ब्राह्मण के तमाम क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण साधने वाला होगा क्योंकि अब लक्ष्य मिशन 2024 फतह करना है।
बीते 22 वर्षों का इतिहास देखें तो तमाम मुख्यमंत्री क्षेत्रीय और जातीय समीकरण साधते हुए बनाए गए हैं। पुष्कर सिंह धामी को भी आठ महीने पहले मुख्यमंत्री बनाते समय भी गढ़वाल की बजाय कुमाऊं में कांग्रेस और हरीश रावत की घेराबंदी वजह रही थी। उससे पहले त्रिवेंद्र-तीरथ गढ़वाल क्षेत्र से मुख्यमंत्री बनाए गए थे। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आलाकमान इस बार सीएम चेहरा कुमाऊं से देते हैं कि गढ़वाल से। कुमाऊं से धामी तो दावेदार हैं कि बिशन सिंह चुफाल से लेकर बंशीधर भगत जैसे दावेदार भी मौजूद हैं। जबकि गढ़वाल की बात करें तो सतपाल महाराज और धन सिंह रावत से लेकर प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और सुबोध उनियाल सहित कई दावेदार हैं।
जानकार मानते हैं कि सीएम के तौर पर नए चेहरे का चुनाव करते समय गढ़वाल और कुमाऊं के अलावा ठाकुर और ब्राह्मण के सामाजिक समीकरण भी भाजपा आलाकमान के ध्यान में रहेंगे। भाजपा के भीतर लगातार इस मुद्दे पर भी चर्चा हो रही कि पिछले पांच साल में तीन ठाकुर चीफ मिनिस्टर बनाए गए लिहाजा इस बार नया चेहरा तय करते समय ब्राह्मण दावेदार को एडवांटेज मिल सकता है।
चीफ मिनिस्टर के दावेदारों में अगर ब्राह्मण विधायकों की बात करें तो पार्टी की जीत और सीएम रहते धामी की हार के बाद प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के दावे को मजबूती मिली है। जबकि कृषि और उद्यान मंत्री के नाते परफॉर्मर साबित हुए सुबोध उनियाल का भी बड़ी ज़िम्मेदारी के लिए जोश हाई है।
महिला और ब्राह्मण विधायक के समीकरण में ऋतु खंडूरी भी फिट बैठती हैं। सवाल है कि क्या मोदी-शाह महिलाओं के बंपर वोट के बदला महिला चीफ मिनिस्टर देकर चुकाएँगे? गदरपुर से जीते अरविंद पांडे और बंशीधर भगत भी मौके के इंतजार में दिख रहे हैं। जबकि विधायकों से बाहर जाकर अगर नया चीफ मिनिस्टर चुना जाता है तो राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी, केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट और पूर्व केन्द्रीय मंत्री निशंक दौड़ में हैं।
चीफ मिनिस्टर के नए चेहरे के तौर पर अगर ठाकुर नेता को ही मौका दिया जाता है तो कार्यवाहक सीएम पुष्कर सिंह धामी रेस में आगे हैं ही। एक के बाद एक विधायक धामी के लिए सीट छोड़ने का मैसेज आलाकमान तक वाया चुनाव प्रभारी प्रह्लाद जोशी भिजवा रहे। जोशी का सॉफ्ट कॉर्नर भी धामी के लिए है ही।
धामी के अलावा ठाकुर चेहरों में सबसे पहले सतपाल महाराज का नाम आता है। महाराज 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले खुद की बजाय हरीश रावत को मौका देने के विरोध में कांग्रेस छोड़कर भाजपा आए थे। महाराज तब पौड़ी गढ़वाल से सांसद थे लेकिन सीएम बनने के एकसूत्रीय एजेंडे पर भाजपा आए सतपाल ने लोकसभा चुनाव लड़ने की बजाय 2017 में चौबट्टाखाल से विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन मौका यूपी सह प्रभारी रहते अमित शाह के करीब जा चुके त्रिवेंद्र सिंह रावत को मिल गया। मंत्रियों में सबसे पहले शपथ लेकर संतुष्ट हो गए सतपाल को त्रिवेंद्र हटाकर तीरथ सिंह रावत की ताजपोशी के समय भी कंसीडर नहीं किया गया। यहाँ तक कि तीसरी बार सरकार का चेहरा बदला गया तो मौका बिना मंत्री बने सीधे चीफ मिनिस्टर बनने का मौका पुष्कर सिंह धामी को दे दिया गया। और महाराज मन-मसोसकर रह गए।
यह अलग बात है कि शपथ से पहले कोपभवन में जाकर एक मलाईदार महकमा एडिशनल जरूर पा गए थे। लेकिन 73 साल के होने को आये सतपाल महाराज अगर इस बार भी चूक गए तो चीफ मिनिस्टर बनने की हसरत दिल में ही दबी रह सकती है। संघ, मोहन भागवत से लेकर पीएमओ तक महाराज की तगड़ी पैठ की परीक्षा का वक्त आ गया है।
संघ से लेकर संगठन तक और धर्मेंद्र प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक अच्छी पकड़ रखने वाले डॉ धन सिंह रावत 2017 से लेकर तीरथ और धामी तक हर बार मीडिया में चीफ मिनिस्टर रेस में आगे रहे लेकिन हर बार चूक गए। इस बार सरकार का तजुर्बा भी है लिहाजा घोड़े खोले हैं धनदा भी। अनुभवी बिशन सिंह चुफाल भी लॉटरी लगने की बांट जोह रहे हैं ।