Chardham Yatra 2022: पर्यटकों की भीड़ को संभावना में बदलने की बजाए इसे आपदा बनाने पर क्यों तुली है सरकार?

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दृष्टिकोण (पंकज कुशवाल): चारधाम यात्रा को लेकर उमड़ रही भीड़ की तस्वीरों को डरावना बताकर इन दिनों सोशल मीडिया पर चारधाम पहुंच रहे तीर्थयात्रियों को लानत भेजी जा रही है। राज्य सरकार भी भीड़ नियंत्रण के नाम पर यात्रियों को जगह-जगह रोक कर दो साल बाद पटरी पर लौटे पर्यटन व्यवसाय की कमर फिर से तोड़ने की तैयारियों में जुटी है। केदारनाथ, बदरीनाथ धाम में दर्शनों के लिए लग रही लंबी-लंबी कतारों के वीडियो शेयर कर लोग देश-विदेश से चारधाम आने वाले यात्रियों को अपनी यात्रा सितंबर-अक्टूबर तक रोकने की गुहार लगा रहे हैं, जैसे दर्शन को लग रही लंबी लाइनें अब सितंबर-अक्टूबर में ही खत्म हो सकेंगी।

उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में हजारों लोगों की रोजी रोटी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से चारधाम यात्रा से ही जुड़ी हुई है। चारधाम यात्रा पड़ावों पर हजारों होटल, ढाबे, रेस्टोरेंट, दुकानें राज्य में सर्वाधिक लोगों को रोजगार देने का काम कर रही हैं। पिछले दो साल में कोरोना संकट से चारधाम यात्रा ठप हुई तो पर्यटन व्यवसायी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए। होटल निर्माण की खातिर लिया गया लाखों रुपए का ऋण सिर पर बोझ की तरह बढ़ रहा है और इसकी किश्तें चुकाने के लिए पर्यटन व्यवसायियों को अपने घरों में रखे जेवर तक बेचने पड़ रहे हैं। अब जब दो साल बाद चारधाम यात्रा की रौनक लौटी है, तो कोरोना संकट के कारण घरों में कैद लोग आस्था और गर्मी से राहत पाने के लिए चारधाम का रूख कर रहे हैं। जनवरी से लोगों ने एडवांस में होटल, वाहन बुक किए हैं। सैकड़ों खबरें अखबारों में छपती रही हैं कि जून तक चारधाम यात्रा पड़ावों के ज्यादातर होटल फुल हो चुके हैं। यानी पहले से ही अंदाजा था कि इस साल यात्रा में रिकॉर्ड यात्री पहुंचेंगे।

कुंभकर्णी नींद में सोई रही सरकार ने अब जब अथाह भीड़ देखी तो हाथ-पांव फूल गये। चारधामों में यात्रियों की संख्या निर्धारित करने का आदेश निकाला गया। मुख्यमंत्री गंगोत्री पहुंचे तो उन्होंने अपना ही आदेश पलटते हुए कहा कि किसी को नहीं रोका जाएगा, सबको आने दिया जाएगा। भारी भीड़ उमड़ती देखकर फिर से आदेश जारी किया गया कि सिर्फ पंजीकरण वाले यात्रियों को ही आने दिया जाएगा। चारधाम यात्रा कर पुण्य कमाने के लिए तीर्थयात्री बड़ी उम्मीद के साथ उत्तराखंड पहुंच रहे हैं लेकिन धामी सरकार ने कह दिया है कि बिना पंजीकरण के नहीं जाने देंगे। लिहाजा हजारों तीर्थयात्री ऋषिकेश में ही अटक गये। उत्तरकाशी, रूद्रप्रयाग, जोशीमठ, गोपेश्वर समेत यात्रा पड़ावों में होटल व्यवसायियों ने विरोध-प्रदर्शन किया तो सरकार ने कहा कि आने तो देंगे लेकिन होटल बुकिंग का प्रमाण देना होगा।

करोड़ों रुपये का बाजार मुहैया करवाने वाली, करोड़ों हिंदुओं की आस्था का प्रतीक चारधाम यात्रा को लेकर सरकार का यह रवैया हैरान करने वाला है। इससे ज्यादा हैरान यह तथ्य करता है कि जब पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज नोडल विभागीय प्रमुख के नाते सारी व्यवस्थाओं की मॉनिटरिंग करनी थी तब वे दुबई टहल रहे थे। अब लौटे हैं तो प्रेस वार्ताओं में बता रहे हैं कि निवेशक आने को तैयार है, बस हरिद्वार में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनना चाहिए, इस गीत को वह पिछले कई सालों से गा रहे हैं।

चारधाम यात्रा को लेकर यह रवैया उत्तराखंड के भविष्य को लेकर भी चिंता पैदा करता है। चारधाम यात्रा में भीड़ उमड़ रही है तो यात्रियों को भी पता है कि मुश्किलें होंगी, दर्शन पूजा को इंतजार करना पड़ेगा। धूप में खड़ा रहना पड़ेगा, भीड़ में चलना पड़ेगा, जान पर भी बन सकती है लेकिन भगवान के दर पर आने के लिए वह इन मुश्किलों को झेलने के लिए तैयार होकर आते हैं।

तीन से चार महीने चलने वाली चारधाम यात्रा को लेकर धामी सरकार के हाथ पांव फूले हुए हैं, लेकिन राज्य सरकार मसूरी से सबक नहीं लेती। पहाड़ों की रानी के नाम से मशहूर मसूरी हर सप्ताहांत में ऐसी भीड़ व अव्यवस्थाओं से जूझती है। देहरादून शहर शनिवार और रविवार को जाम हो जाता है। फिर भी उत्तराखंड पुलिस व्यवस्थाएं करती है कि हर शनिवार को उमड़ने वाली भीड़ मसूरी पहुंचे, घूमे फिरे और वापस लौट जाए। पूरे साल भर हर वीकेंड में मसूरी इन हालातों से गुजरती है। तो क्या अब तक मसूरी के लिए यात्रियों की संख्या निर्धारित की गई है? व्यवस्थाएं बनाई गई है? रूट प्लान बनाया गया है? हां पर्यटकों के साथ स्थानीय लोगों को भी समस्याएं होती है लेकिन ध्यान रखने वाली बात यह भी है कि बाहर से आने वाला पर्यटक राज्य की आर्थिकी को मजबूत बना रहा है। बाहर से आने वाला हर पर्यटक-तीर्थयात्री स्थानीय लोगों को रोजगार दे रहा है। उसकी जेब से खर्च होने वाला हर पैसा यहां स्थानीय लोगों को संबल बना रहा है।

इस भीड़ से डरिए मत, न ही डराइये। इस भीड़ को संभावना के रूप में देखिए। प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस अफसरों, पर्यटन विशेषज्ञों को साथ लेकर योजना बनाइये, रूट प्लान तय कीजिए। दर्शन सबके लिए सुलभ हों, सरल हो इस पर काम कीजिए। देहरादून में बैठकर सिर्फ हवा में तीर फेंकने का काम अगर छोड़ दिया जाए और अगले कुछ सप्ताह तक उमड़ने वाली इस भीड़ को बेहतर तरीके से सुविधाएं देंगे तो देवभूमि से ये यात्री अच्छा संदेश लेकर जाएंगे। न कि उन्हें यह कहने का मौका दीजिए कि वे बिना धामों के दर्शन किए वापस लौंट गए और बाकी लोगों को भी कहें कि उत्तराखंड में चारधाम यात्रा पर तो मत ही जाना…

( लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और टूरिज्म, होमस्टे और चारधाम सेक्टर पर काम भी कर रहे हैं। विचार निजी हैं।)


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