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सोनिया राहुल-प्रियंका पर भारी: सिब्बल की विदाई बागी लगाए ठिकाने, G-23 का The End

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अड्डा IN-DEPTH: विदेशी मूल के मुद्दे पर 1999 की शरद पंवार, पी ए संगमा और तारिक अनवर की बगावत रही हो या 2004 में अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर डॉ मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाने का दांव रहा हो, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हर बार पार्टी के भीतर और बाहर के अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को धूल चटाकर दिखाया। उदयपुर चिंतन शिविर के बाद कांग्रेस में उभरती नई तस्वीर फिर इशारा कर रही कि सोनिया ने बाहर और भीतर से मिल रही चुनौतियों का तोड़ निकाल लिया है। खासतौर पर अब G 23 गुजरे वक्त की बात होता नज़र आ रहा है। 

G 23 के सबसे बड़े चेहरे और वोकल वॉइस बन चुके कपिल सिब्बल चुपके से कांग्रेस से विदा होकर सपा के समर्थन से राज्यसभा जा रहे हैं। सिब्बल ही वो नेता थे जो G 23 के मंच से मुखर होकर चुनाव दर चुनाव पार्टी की हार की जिम्मेदारी तय करने और गांधी परिवार से परे किसी को पार्टी नेतृत्व देने की वकालत की थी। लेकिन सिब्बल उदयपुर चिंतन शिविर के अगले दिन 16 मई को ही कांग्रेस से चुपचाप विदाई लेकर सोनिया के रास्ते के आखिरी कांटे के तौर पर खुद ही मैदान छोड़ दिया। बाकी बागियों जिनमे गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा और G 23 के इकलौते जनाधार वाले नेता भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को सोनिया गांधी साध चुकी थी। 

G23 के विरोध के गुब्बारे की हवा निकालते हुए सोनिया गांधी ने दो बड़े नेताओं आज़ाद और आनंद शर्मा को राज्यसभा सीट का ऑफर देकर शांत करा दिया तो हुड्डा को हरियाणा चुनाव में पार्टी का चेहरा बनाने का ऑफर देकर अपने साथ मिला लिया। 2024 को लेकर बन रहे टास्क फोर्स में बागी नेताओं को प्रतिनिधित्व देकर भी कांग्रेस अध्यक्ष ने फिलहाल कलह कुरुक्षेत्र का युद्धविराम कराने में कामयाबी हासिल कर ली। 

साथ ही सिब्बल पर सरेंडर न कर सोनिया ने यह संदेश देने की कोशिश भी की कि नेतृत्व को लेकर सीधी चुनौती देने वाले चेहरे की मनुहार किसी कीमत पर नहीं होगी। शायद यह संदेश पाकर और G23 के अपने सहयोगियों के पाला बदल के मंसूबे भांपकर सिब्बल ने आज़ाद आवाज़ बनकर संसद पहुंचने की अपनी पटकथा यानी प्लान बी को अमलीजामा पहनाया! 

ऐसा नहीं है कि G 23 खत्म होता दिख रहा है तो इससे यह भी समझ लिया जाए कि कांग्रेस के ‘अच्छे दिन’ आ गए! कांग्रेस के सामने तात्कालिक चुनौती गुजरात और हिमाचल चुनावों की है और हार्दिक पटेल की टूट ने उसे खासा नुकसान पहुंचा दिया है। लेकिन सोनिया ने सधे राजनेता की तरह पार्टी के भीतर उफनते असंतोष को थाम कर राहुल गांधी को घरेलू मोर्चे पर राहत देकर पीएम मोदी से 2024 के महामुकाबले के लिए तैयार होने का नया मौका ज़रूर दे दिया है। 

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