Champawat By Election Counting Day चंपावत उपचुनाव के नतीजे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के राजनीतिक भविष्य के लिहाज से बेहद अहम है। हालाँकि कांग्रेस प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी ने काउंटिंग से एक दिन पहले अपनों पर ही धोखा देने का आरोप लगाकर उपचुनाव नतीजे की खुद मुनादी कर दी, लेकिन सीएम धामी इस उपचुनाव नतीजे से जीत की बड़ी लकीर खींचना चाहते हैं। धामी का पहला सियासी मकसद तो यही है कि चंपावत में उनकी जीत हो। लेकिन दूसरा और दूरगामी मकसद यही है कि उनकी जीत का अंतर साबित कर दे कि जनता में उनकी लोकप्रियता चरम पर है और भाजपा से लेकर कांग्रेस में अब उनके समकक्ष खड़ा होने की स्थिति में कोई नहीं रहा। जाहिर है इसके लिए उपचुनाव के अंतिम राउंड के नतीजे आने का इंतजार करना होगा।
अभी तक मुख्यमंत्री रहते उपचुनाव में सितारगंज में विजय बहुगुणा के नाम सबसे बड़ी जीत का रिकॉर्ड है। विजय बहुगुणा की सितारगंज में 30 हजार से भी अधिक वोटों के अंतर से जीत हुई थी। हालाँकि सितारगंज में वोटर्स की संख्या अधिक थी चंपावत के मुकाबले लेकिन सीएम धामी की रणनीति जीत के अंतर को बड़ा करने की रही है। तभी तो खुद के अलावा मुख्यमंत्री ने यूपी सीएम और भाजपा के प्रधानमंत्री मोदी के बाद दूसरे सबसे बड़े पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ को प्रचार में उतारा।दो पूर्व मुख्यमंत्रियों, प्रदेश प्रभारी दुष्यंत कुमार गौतम, सह प्रभारी रेखा वर्मा, प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक, राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े से लेकर केन्द्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट, सांसद अजय टम्टा सहित कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास, गणेश जोशी, डॉ धन सिंह रावत, सुबोध उनियाल, सौरभ बहुगुणा सहित कई दिग्गजों ने पसीना बहाया।
सीएम धामी ने अपनी जीत को ऐतिहासिक बनाने के लिए राजनीतिक शख़्सियतों के अलावा सिंगर पवनदीप राजन, कवि कुमार विश्वास, कलाकार हेमंत पांडेय को भी प्रचार में उतारा। जाहिर है मकसद यही कि चुनावी जीत इतनी बड़ी हो कि खटीमा की हार की ख़राश तो मिट ही जाए सूबे की सियासत में धामी की लोकप्रियता का नया अध्याय भी लिखा जाए। लेकिन चंपावत उपचुनाव का वोटिंग प्रतिशत बताता है कि भाजपा की तरफ से चुनाव प्रचार में यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर तमाम मंत्रियों-नेताओं को झोंकने के बावजूद वोटिंग प्रतिशत में रिकॉर्ड नहीं टूट पाया बल्कि उपचुनाव में वोटिंग का प्रतिशत 2002 के पहले विधानसभा चुनाव को छोड़कर पिछले पन्द्रह सालों में सबसे कम रहा।
चंपावत उपचुनाव में 61,595 यानी 64.02 फीसदी वोट पड़े। यह वोटिंग फरवरी के विधानसभा चुनाव के मुकाबले 1775 वोट यानी 1.97 फीसदी कम रहा। यानी भाजपा का वोटिंग में रिकॉर्ड बनाने का दावा सही साबित नहीं हो पाया। 14 फरवरी को 96016 वोटों में से 63370 वोट (65.99 फीसदी) पड़े। जबकि 31 मई को 96213 वोटों में से 61,595 (64.02 फीसदी) वोट पड़े। चंपावत सीट पर 2017 में 66.43 फीसदी, 2012 में 76.17 फीसदी और 2007 में 64.88 फीसदी वोट पड़े थे। सिर्फ 2002 में चंपावत उपचुनाव से कम यानी 54.76 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी।
हालाँकि कम वोटिंग का अकेला मतलब यह नहीं कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के रिकॉर्ड जीत के दावा इससे धरा रह सकता है। कम वोटिंग का मतलब यह भी हो सकता है कि मुख्यमंत्री को उपचुनाव के मैदान में देखकर वोटर्स के एक बड़े तबके में जीत को लेकर आश्वस्ति होने पर वोटिंग घट गई हो। इसका इशारा कांग्रेस प्रत्याशी गहतोड़ी खुद अपनों पर धोखेबाज़ी का आरोप लगाकर कर चुकी हैं। कम वोटिंग तब भी हो जाती है जब ताकतवर चेहरे के मुकाबले प्रतिद्वन्द्वी की जीत की क्षीण संभावना मानकर विरोधी दल से सहानुभूति रखने वाला वोटर उतने उत्साह में घर से नहीं निकल पाता है।
बहरहाल वजह जो भी रही हो लेकिन वोटिंग प्रतिशत के जरिए नया रिकॉर्ड बनाने से भाजपा चूक गई है, अब चंद घंटों में चंपावत उपचुनाव के अंतिम परिणाम हमारे सामने होगा, जो पहाड़ पॉलिटिक्स में नई करवट का आगाज लेकर आने वाला है।