चम्पावत चैंपियन: धामी की पहाड़ जैसी जीत और सरेंडर कांग्रेस की शर्मनाक शिकस्त 

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  • 55025 मतों से जीते CM पुष्कर धामी
  • 58258 भाजपा को मिले मत
  • 3233 कांग्रेस को मिले मत
  • कुल मतदान 62898 (पोस्टल मत 1303)
  • कुल मतों का 93 फीसदी शेयर ले उड़े धाकड़ धामी

अड्डा In-Depth: Champawat By Election Result Chief Minister Pushkar Singh Dhami wins by a huge margin of 55,025 votes against Congress Candidate Nirmala Gahtori जैसा कि प्रदेश कांग्रेस के घाघ और मठाधीश नेता भी तमाम राजनीतिक पंडितों की तरह मानकर चल रहे थे चम्पावत उपचुनाव में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी आराम से जीत जाएंगे, हुआ भी ठीक वैसा ही। लेकिन प्रदेश कांग्रेस के नीति नियंता बने फिर रहे इन दिग्गज नेताओं ने पार्टी की अधिकृत प्रत्याशी निर्मला गहतोड़ी की इतनी बड़ी हार की पटकथा पढ़ रखी है, यह शायद ही किसी ने सोच रखा हो! 

सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की चम्पावत में पहाड़ जैसी जीत के अंतर ने कई पुराने समीकरण ध्वस्त कर दिए हैं तो कई नई सियासी पटकथाओं की नींव भी रखी है। कल्पना करिए फरवरी में जिस सीट पर मोदी सुनामी के बावजूद भाजपा प्रत्याशी कैलाश गहतोड़ी को पांच-छह हजार वोटों की जीत हासिल हो पाई थी, बमुश्किल तीन महीने बाद उसी सीट पर धामी ने जीत का ऐसा परचम लहरा दिया है कि कांग्रेस अरसे तक अपनी शर्मनाक हार पर कराहती रहेगी। धामी का चम्पावत में ऐसा जादू चला कि भाजपा को जहां 58,258 वोट हासिल हुए वहीं कांग्रेस महज 3233 वोटों पर सिमट गई और निर्मला गहतोड़ी की जमानत जब्त हो गई। मुख्यमंत्री धामी ने 55025 वोटों के अंतर से निर्मला गहतोड़ी को हराकर पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा की सितारगंज उपचुनाव में 32-34 हज़ार वोटों की जीत के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। 

 इस प्रचंड जीत के बाद चम्पावत के चैंपियन बने मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पहाड़ पॉलिटिक्स में सियासत का नया मंत्र फूंक दिया है। धामी ने ‘विद इन द पार्टी’ इस राजनीतिक तथ्य को स्थापित कर दिया है कि अब भाजपा की सुबाई सियासत में उनके मुकाबले कोई भी क्षत्रप दूर दूर तक कोई टिकता नज़र नहीं आता है। न पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत और न राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी या मंत्री सतपाल महाराज! सियासत की जिस बिसात पर मोदी-शाह ने धामी की धमक को आजमाया उस पर वह न केवल खरे उतरे बल्कि और चमकदार होकर उभरे हैं। 

हालांकि धामी से पहले भी जितने भी सिटिंग CM उपचुनाव लड़े सबने जीत का स्वाद चखा लेकिन धामी की जीत कई मायनों में न केवल बड़ी है बल्कि अभूतपूर्व भी। धामी अभी फरवरी में खटीमा का चुनाव हार गए थे लेकिन हिम्मत न हार उन्होंने चम्पावत उपचुनाव में ऐसी बिसात बिछाई कि खटीमा में हार की खटास भी खल्लास हो गई और जीत का ऐसा स्वाद चख लिया जिसकी मिठास अगले पांच साल बनी रहेगी। 

धामी ने चम्पावत जीतकर कांग्रेस को गहरे सदमे में पहुंचा दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के करीबी पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल ने उपचुनाव नतीजे का पूर्व अनुमान लगा चुनाव लड़ने से हाथ खड़े कर दिए थे। लेकिन जिस तरह से दिग्गजों ने निर्मला गहतोड़ी को चुनाव में फंसाकर प्रचार के नाम पर महज खानापूर्ति कर छुट्टी पाई, असल मे उन नेताओं ने कांग्रेस की जड़ों में करीने से मट्ठा डालने का काम कर दिखाया। 

चम्पावत उपचुनाव में हुई करारी हार को पचा पाना कांग्रेस के लिए बहुत आसान नहीं रहने वाला है। इस हार की जिम्मेदारी हरदा, यशपाल आर्य से लेकर प्रीतम सिंह और करन माहरा की तो है ही प्रभारी देवेन्द्र यादव और केंद्रीय नेतृत्व की भी है। केंद्रीय नेतृत्व को अपनी गहरी नींद से जागना होगा ताकि गुटबाजी से कांग्रेस को खोखला कर चुके नेताओं के चेहरे वह पहचान सके। 

मुख्यमंत्री धामी ने जिस तरह की ताबड़तोड़ बैटिंग की है उसके बाद आगे आने वाले लोकल बॉडी इलेक्शन और 2024 के चैलेंज के लिहाज से कांग्रेस कहाँ खड़ी है, उसे आसानी से देखा समझा जा सकता है।


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