ADDA ANALYSIS: राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सत्ताधारी NDA और विपक्ष के बीच व्यूहरचना तेज हो चुकी है। जहां मोदी-शाह के इशारे पर राजनाथ-नड्डा धुर विरोधी दलों से लेकर तमाम विपक्षी दलों के नेताओं से बातचीत कर राष्ट्रपति चुनाव पर आम सहमति बनाने की पहल छेड़े हैं तो वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी 17 विपक्षी दलों को एक प्लेटफॉर्म पर लेकर विपक्ष के साझा उम्मीदवार को लेकर पसीना बहा रही हैं। हालांकि इस बीच कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अस्वस्थ होने के कारण राष्ट्रपति चुनाव की कसरत से दूर सर गंगा राम अस्पताल में एडमिट हैं और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी National Herald Case में पूछताछ को लेकर ED दफ्तर के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
2017 vs 2022: NDA की घट गई ताकत
मुख्य विपक्षी कांग्रेस के नेताओं के उलझे होने के बावजूद 18 जुलाई को होने वाला राष्ट्रपति चुनाव विपक्षी दलों के लिए लोकसभा चुनाव 2024 से पहले शक्तिप्रदर्शन का बेहतरीन मौका है। वह भी तब जब 2017 के राष्ट्रपति चुनाव के मुकाबले 2022 में NDA और भाजपा की शक्ति कई वजहों से घट चुकी है। 2017 में जहां मोदी-शाह के साथ शिवसेना से लेकर अकाली दल का साथ था, जो अब NDA का हिस्सा नहीं रहे हैं। 2017 के मुकाबले आज तमिलनाडु में AIDMK सत्ता से बाहर होकर कमजोर स्थिति में है। अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकारें भी नहीं रहीं हैं। 2017 में देश के 21राज्यों में NDA सरकारें थी आज 17 राज्यों में NDA राज है। भाजपा आज महाराष्ट्र, झारखंड की सत्ता से दूर है।
सवाल है कि अगर राष्ट्रपति चुनाव में NDA बहुमत से कुछ दूर है तो क्या यह विपक्षी धड़े के लिए कोई बड़ा राजनीतिक अवसर साबित हो सकता है। ममता बनर्जी की भागदौड़ इसी तरफ संकेत करती है और सभी विपक्षियों को एक मंच पर लाने की उनकी सियासी कसरत भी इसी मकसद से हो रही। लेकिन ममता की कोशिशों पर सीताराम येचुरी से लेकर कई ने सवाल भी उठाए हैं।
कौन होगा विपक्षी चेहरा?
17 दलों के साथ बैठी ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि विपक्ष का साझा चेहरा कौन होगा। शरद पवार पर सहमति बन सकती थी लेकिन वे खुद इस रेस से हट गए हैं। अब महात्मा गांधी के पोते गोपालकृष्ण गांधी से लेकर फारूक अब्दुल्ला तक कई नाम हैं लेकिन सहमति बनने से पहले कुछ भी नहीं कहा जा सकता है। उम्मीदवार को लेकर पत्ते अभी NDA ने भी नहीं खोले हैं लेकिन प्रधानमंत्री मोदी के दिमाग में कोई सरप्राइज नाम चल रहा हो इसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि 2017 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी कुछ ऐसे ही सरप्राइज के रूप में सामने आई थी।
वोटों का गणित?
राष्ट्रपति चुनाव में कुल वोट वैल्यू 10,98,903 है और विजय के लिए 5,49,452 वोट चाहिए। NDA के पास फ़िलहाल करीब 5 लाख 45 हज़ार वोटों की ताकत है। यानी जीत के लायक बहुमत से अभी NDA करीब 13 हज़ार वोटों से पीछे है। जबकि UPA के पाले में करीब 2 लाख 60 हज़ार वोट की ताकत है और बाकी विपक्षी दलों की वोट वैल्यू 2 लाख 93 हज़ार है। यानी UPA घटक और सभी विपक्षी दल मिल जाएं तो ‘खेला’ कर सकते हैं लेकिन यह किसी सियासी सपने से कम नहीं क्योंकि जहां विपक्षी दलों में बिखराव है, यहां तक कि UPA की मुख्य पार्टी कांग्रेस भी ममता बनर्जी की सियासी कसरतबाजी को बहुत खुले मन से पचा नहीं पाती। उसे ममता की भागदौड़ के पीछे 2024 की बड़ी भूमिका के मंसूबे डराते रहते हैं।
तो फिर क्या बाजी किंगमेकर्स के हाथों में ही?
ऐसे में जब ताकतवर होकर भी प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति चुनाव में NDA को बहुमत के पार नहीं ले जा पा रहे तब सत्ताधारी गठबंधन का कुछ अन्य दलों के मुंह की तरफ झांकना लाजिमी हो जाता है। ये दल YSR Congress, TRS और BJD हैं। जी हां एनडीए-भाजपा, यूपीए-कांग्रेस के पास नहीं बल्कि राष्ट्रपति चुनाव में जीत की चाबी इन्ही दलों के पास है। ये तीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, जगनमोहन रेड्डी और के चन्द्रशेखर राव यानी केसीआर के बिना जीत की गारंटी नहीं हो सकती हिम यहीं वजह है कि ये नेता किंगमेकर बनकर उभरे हैं।
केसीआर आजकल प्रधानमंत्री मोदी पर हमलावर हैं लिहाजा भाजपा का दारोमदार जगनमोहन और पटनायक पर ही है। अगर अकेले जगनमोहन भी NDA उम्मीदवार का समर्थन कर देते हैं तो जीत पक्की हो जायेगी। दोनों नेताओं ने 2017 में रामनाथ कोविंद का समर्थन किया था लेकिन पांच साल बाद अब क्या फिर उसे दोहराएंगे?