RJ पंकज जीना नैनीताल जिले के अपने गांव चोपड़ा के बचाने के लिए कुछ इस तरह कर रहे अपील
जब अफसरों के वादे फेल रहे तक क्या दिखेगी धामी की धमक ?
हमको आदत हो गयी है वादों की।मेरा घर, नैनीताल के चोपड़ा गाँव में है।अक्टूबर का महीना था और साल 2021, मेरे गाँव चोपड़ा में, जहाँ मेरा घर है, उसके ठीक ऊपर एक चट्टान का टूटना शुरु हुआ, दरअसल उस चट्टान के ऊपर बहुत बड़े पत्थर थे, जो टूटने लगे।बरसात के साथ उन चट्टानों के गिरने से, गाँव वालों से लेकर,प्रशाशन तक, सब परेशान हो गए थे।
सबकी चर्चाओं में, वह गिरते पत्थर प्रमुख केंद थे।उन दिनों चुनाव होने वाले थे इसीलिए हमारे गाँव को आश्वासन देहरादून तक से मिल गए।ऐसा लग रहा था, कुछ ही दिनों में उन पत्थरों से बचाव के लिए क़दम उठाये जायेंगे।उम्मीद पर जैसे दुनिया क़ायम है, हम भी वैसे ही क़ायम थे।अधिकारी आए, बैठे और कुछ फाइलों में, रिपोर्ट दर्ज़ करके चले गए।वह बेमौसम बरसात गयी तो, अधिकारी भी कहीं ग़ायब हो गए।
देहरादून वालों ने तो, जवाब देना ही बन्द कर दिया।गाँव के कुछ लोग अधिकारियों और नेतागणों से मिलते रहे और राजनीति चलती रही।फ़ाइल बन्द हुई और रिपोर्ट में लिखा गया, घर को कोई ख़तरा नहीं है।कल से बारिशें पहाड़ों में फिर से शुरू हुई, पत्थरों का दुबारा गिरना शुरू हो गया।तबाही के मुहाने पर, अब पूरा गांव आ गया है।
लोगों के, बरसों मेहनत से बसाए आशियाने पर, प्रकृति का प्रकोप गिरने वाला है लेकिन अफ़सोस की बात है, इस बात की किसी को फ़िक्र नहीं है।
अब इलेक्शन नहीं हैं न, नहीं तो,मेरे गाँव की बातें भी hot टॉपिक होती।हम घर के बेटे गाँव से दूर, रोटियों के इंतज़ाम में, जब ख़ुद को गला रहे हैं, वहाँ हमारा गाँव बर्बाद होने की राह पर खड़ा है।घर के मवेशी परेशान हैं और साहेब लोग तो, वैसे भी इन चीज़ों की फ़िक्र नहीं करते।
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