ADDA IN-DEPTH by Pawan Lalchand
Assmebly Bypolls and picture of opposition before BJP: देश के 6 राज्यों की 7 सीटों पर तेलंगाना से लेकर हरियाणा की आदमपुर विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एक बाद साफ नजर आई। एक मोर्चे पर बीजेपी का डटी रही तो दूसरे मोर्चे पर दिखा बिखरता बदलता विपक्षी धड़ा! बीजेपी ही यूपी की गोला गोकर्णनाथ उपचुनाव में सपा से मुकाबले में थी तो बिहार की मोकामा और गोपालगंज सीट पर भी वही आरजेडी से लोहा ले रही थी। हरियाणा के आदमपुर में भी कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और इनेलो (INLD) के रूप में बिखरा विपक्ष बीजेपी को ही हराने उतरा था। मुंबई में शिवसेना उद्धव के मुकाबले में बीजेपी कैंडिडेट आखिर में वापस ले चुकी थी लेकिन तेलंगाना में केसीआर की TRS से बीजेपी ही दो दो हाथ कर रही थी।
खबर लिखे जाने तक के नतीजों के अनुसार बीजेपी ने यूपी की गोला सीट जीत कर कब्जा बरकरार रखा है, तो बिहार में भी वह आरजेडी, जेडीयू और कांग्रेस महागठबंधन बन जाने के बावजूद अपनी गोपालगंज सीट उपचुनाव में जीतने में कामयाब हो गई है। मोकामा सीट आरजेडी ने भी अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी के जरिए रिटेन कर ली है। हरियाणा की आदमपुर सीट यूं तो कांग्रेस की थी लेकिन 2019 में जीते कुलदीप बिश्नोई बीजेपी चले गए तो इस सीट पर उपचुनाव बीजेपी और कांग्रेस के लिए नाक का सवाल बन गया था लेकिन बीजेपी ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली है।
महाराष्ट्र की अंधेरी ईस्ट मुंबई सीट शिवसेना उद्धव गुट ने जीत ली है। ओडिशा की धामनगर सीट पर बीजेपी बढ़त बनाए है जबकि लंगाना की मुनुगोड़े सीट पर बीजेपी TRS से लड़ाई में पिछड़ रही है। यानी तस्वीर साफ है कि हार में भी जीत में भी इन सभी सीटों पर एक तरफ से मुकाबले में बीजेपी रही तो दूसरी तरफ विरोधी दल का नाम बदलता रहा।
हालांकि उपचुनाव नतीजों का किसी भी राज्य की सरकार या राजनीति पर बहुत निर्णायक असर नहीं दिखता है लेकिन लोकसभा और इन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले पॉलिटिकल परसेप्शन की लड़ाई में बीजेपी ने जीत के जरिए बढ़त जरूर बना ली है।
शुरुआत यूपी से की जाए तो गोला गोकर्णनाथ सीट पर उपचुनाव सपा संरक्षक पूर्व रक्षामंत्री मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद पहली चुनावी लड़ाई थी। लेकिन पूर्व सीएम अखिलेश यादव घर से निकले नहीं और बीजेपी प्रत्याशी के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ सबसे बड़े स्टार प्रचारक बनकर प्रचार के मोर्चे पर उतरे। नतीजा बीजेपी ने सपा को 34 हजार से अधिक वोटों से हरा दिया। अब 2024 से पहले यही पॉलिटिकल परसेप्शन की लड़ाई नेताजी की मैनपुरी लोकसभा और आजम खान की आजमगढ़ विधानसभा सीट पर अगले महीने नजर आएगी।
बात बिहार की करें तो डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव की आरजेडी मोकामा उपचुनाव जीत कर सीट बचाने में कामयाब रही लेकिन गोपालगंज में विपक्षी बिखराव मददगार बना और आरजेडी जेडीयू के साथ आने के बावजूद बीजेपी अपनी सीट बचाने में सफल हो गई। असल में गोपालगंज उपचुनाव ही विपक्षी खेमे की कमजोरी का स्पष्ट एक्सरे दिखाता है।
यहां आरजेडी सिर्फ 1789 वोटों से इसलिए हार गई क्योंकि ओवैसी की AIMIM कैंडिडेट अब्दुल सलाम 12 हजार वोट ले उड़े रही सही कसर तेजस्वी यादव के सगे मामा साधु यादव ने अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाकर पूरी कर दी। तेजस्वी की मामी इंदिरा देवी 8854 वोट पा गई और आरजेडी की गोपालगंज सीट पर नैया डूब गई।
अब बात हरियाणा के आदमपुर उपचुनाव की कर लेते हैं। आदमपुर उपचुनाव में सबसे पहले AAP की सियासी हैसियत आंक ली जाए क्योंकि आम आदमी पार्टी ने यह उपचुनाव इस नारे के साथ लड़ा कि वह 2024 के विधानसभा चुनाव को लेकर अपना दम दिखाने उतरेगी। लेकिन बीच चुनाव हिमाचल छोड़ अब गुजरात में 90 सीट जीतकर सरकार बनाने का दावा ठोक रहे दिल्ली सीएम अरविंद केजरीवाल के अपने गृह राज्य हरियाणा के आदमपुर उपचुनाव में AAP कैंडिडेट की जमानत जब्त हो गई है। AAP कैंडिडेट सतिंदर सिंह को मात्र 3413 वोट मिले और वह अपनी जमानत बचाने में भी नाकाम रहे।
अब बात हरियाणा की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस की हो जाए। हरियाणा कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर होने के कारण पार्टी आलाकमान ने पूर्व सीएम और वर्तमान ने नेता विपक्ष भूपेंद्र हुड्डा के हाथ के सामने एक तरह से सरेंडर कर रखा है। दलित चेहरा कुमारी सैलजा से लेकर रणदीप सुरजेवाला सहित तमाम हुड्डा विरोधियों को किनारे किया हुआ है। उपचुनाव भी भूपेंद्र हुड्डा और उनके राज्यसभा सांसद पुत्र दीपेंद्र हुड्डा की जोड़ी ने अपने करीबी प्रदेश अध्यक्ष उदय भान को साथ लेकर पूर्व सांसद जय प्रकाश को जिताकर दिखाने के नारे के साथ लड़ा लेकिन नतीजा कांग्रेस को सीट गंवाकर पराजय झेलनी पड़ी है।
जाहिर है 2019 में जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ गठबंधन सरकार बनाने के बाद यह पहला मौका है जब बीजेपी ने उपचुनाव में जीत का स्वाद चखा है। भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई की जीत बीजेपी के लिए सियासी बूस्टर डोज का काम करेगी। यानी चौबीस की चुनौती से पहले पॉलिटिकल परसेप्शन की लड़ाई में बीजेपी गठबंधन और सीएम मनोहर लाल खट्टर ने बढ़त बनाकर फिर विरोधियों को सोचने को मजबूर कर दिया कि क्या सबकुच पिता पुत्र के हाथ में देकर कांग्रेस अगले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में हरियाणा का सियासी कुरुक्षेत्र जीत पाएगी?
हालांकि विपक्षी खेमे के लिए मुंबई की अंधेरी ईस्ट सीट पर शिवसेना उद्धव गुट की जीत भी राहत की खबर रही लेकिन इस उपचुनाव पर बीजेपी ने मनसे और कई अन्य की अपील पर अपना कैंडिडेट वापस ले लिया था जिसके बाद उद्धव की कैंडिडेट ऋतुजा लटके का मुकाबला सात निर्दलीयों से ही रह गया था और नोटा का यहां दूसरे नंबर पर रहना मुख्य विपक्षी बीजेपी के उम्मीदवारी वापस लेने का ही परिणाम समझा जा सकता है।
ओडिशा में बीजेपी अपनी धामनगर सीट बचाती नजर आ रही है तो तेलंगाना में वह सत्ताधारी TRS को कड़ी टक्कर दे रही। यानी बीजेपी 7 सीटों पर हुए उपचुनाव के दंगल को 4-3 से जीतती दिख रही है।
सवाल है कि इस चुनाव में बीजेपी से मुकाबले में विपक्षी धड़ा अगर पॉलिटिकल परसेप्शन की लड़ाई में फिर पिछड़ गया तो उसकी वजह क्या नजर आ रही? बिहार के गोपालगंज से हरियाणा के आदमपुर तक एक तथ्य जो साफ दिख रहा वह यह कि विपक्ष में जहां ‘विभीषण’ कम नहीं, वहीं, विपक्षी किले में ‘ओवैसियों, ‘साधुओं’ और ‘केजरीवालों’ की इतनी दरारें हैं कि बीजेपी के लिए जीतना चुटकी बजाने जैसा है।
रही सही कसर कहीं हुड्डा कहीं हरदा पूरी करने को तैयार बैठे दिखते हैं। तभी तो हरियाणा में सबकुछ भूपेंद्र सिंह हुड्डा को देकर कांग्रेस संकट में हैं और उत्तराखंड जैसे राज्य में अभी भी सबकुछ पूर्व सीएम हरीश रावत को नहीं मिल पा रहा इसलिए कांग्रेस संकट में है! हुड्डा सबकुछ पाकर अपनी राह चलते दिखते हैं उत्तराखंड में हरदा, सबकुछ मिले इसलिए पार्टी माणा से यात्रा शुरू करेगी तो वे हरिद्वार में अलग अपनी यात्रा निकलेंगे!
फिर ओवैसी और केजरीवाल की राजनीतिक चाल भी विपक्ष को डैमेज कर आखिरकार बीजेपी के लिए ही सत्ता का मार्ग बनाती दिखती हैं, बाकी विपक्षी नेताओं का यह आरोप पूरी तरह से नकारा भी नहीं जा सकता है। शायद इसलिए कांग्रेस से निकलकर भी गुलाम नबी आजाद आज कह रहे हैं कि गुजरात हो या हिमाचल बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस ही कर सकती है। लेकिन आदमपुर में जमानत जब्त कराकर भी केजरीवाल गुजरात में 90 सीटों के साथ तीसरे राज्य में सरकार बनाने का दम भर रहे। वैसे लोकतंत्र है और दिल्ली के बाद पंजाब जीत AAP ने विरोधियों का मुंह बंद किया ही है।