देहरादून/चंपावत: याद कीजिए 2012 का सितारगंज विधानसभा का उपचुनाव, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बगुगुणा ने भाजपा के सिटिंग विधायक किरन मंडल से सीट खाली कराकर चुनावी ताल ठोकी थी। तब न केन्द्र में यूपीए और सूबे में कमजोर बहुमत वाली ही सही लेकिन कांग्रेस की डबल इंजन सरकार क़ाबिज़ थी। लेकिन विपक्ष में बैठी भाजपा ने सितारगंज की चुनावी लड़ाई को अपनी पार्टी के सम्मान की लड़ाई बनाकर वरिष्ठ नेता प्रकाश पंत को चुनाव मैदान में उतारकर राजनीतिक पारा गरमा दिया था। पंत मैदान में उतरे तो उनके सियासी गुरु और पूर्व सीएम भगत सिंह कोश्यारी ने भी चुनाव प्रचार में पसीना बहाया। यह अलग बात है कि नतीजे प्रकाश पंत के खिलाफ गए और सीएम विजय बहुगुणा को बड़ी जीत मिली लेकिन विपक्ष में बैठी भाजपा ने सूबे की सत्ता के सामने हथियार डालने की बजाय प्रकाश पंत जैसे हैवीवेट चेहरे को उतारकर मुकाबला दिलचस्प बनाने की कोशिश ज़रूर की। आज चंपावत में कांग्रेस के सामने सितारगंज जैसी ही चुनौती खड़ी है।
चंपावत में 2022 के दंगल में भाजपा के प्रत्याशी के तौर पर निवर्तमान विधायक कैलाश गहतोड़ी को करीब 5300 वोटों के अंतर से जीत मिली थी। स्वाभाविक है अब उनके सीट खाली करने के बाद उपचुनाव लड़ने उतर रहे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 22 सीटों के ऑफर में से अगर चम्पावत को ही चुना है तो सीएम का ये फैसला कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती लेकर आया है। कहने को कांग्रेस के नए नवेले प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा और नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य चम्पावत उपचुनाव जीतने के लक्ष्य से लड़ने का दम भर रहे। पूर्व सीएम हरीश रावत भी चम्पावत उपचुनाव में गोल्ज्यू देवता से कांग्रेस के लिए न्याय मांग रहे। लेकिन कांग्रेसी कॉरिडोर्स से छनकर आ रही खबरें दूसरी ही कहानी बयां कर रही हैं।
आलम यह है कि पिछले पांच विधानसभा चुनाव लड़ने वाले और राज्य बनने के बाद दो दशक से चंपावत सीट पर सक्रिय दो बार चुनाव जीते पूर्व विधायक हेमेश खर्कवाल की हिम्मत नहीं हो पा रही कि वे मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को मुकाबले के लिए ललकार पाएँ। कहने को खर्कवाल के अलावा चंपावत ज़िलाध्यक्ष पूरन सिंह कठायत से लेकर पूर्व राज्यसभा सांसद महेन्द्र सिंह माहरा और एक-दो महिला चेहरों को लड़ाने की बात हो रही लेकिन काग्रेस को असल में चुनाव लड़ने भर के लिए लड़ना है या हार-जीत में भी सम्मानजनक स्थिति के लिए पसीना बहाते दिखना है!
चंपावत उपचुनाव में कांग्रेस का पलड़ा इसलिए भी हल्का नजर आ रहा कि एक तो 20 साल से इस सीट को संभाल रहे हेमेश खर्कवाल दमखम से ताल नहीं ठोक रहे, दूसरा सामने से सिटिंग सीएम से चुनौती मिलनी है। विधासनभा का राज्य बनने के बाद यह पाँचवा उपचुनाव है और इससे पहले मुख्यमंत्री रहते उपचुनाव लड़े चारों मुख्यमंत्रियों ने जीत दर्ज की थी। लिहाजा आंकड़े कहते हैं कि जीत को लेकर मौजूदा मुख्यमंत्री धामी का पलड़ा स्वाभाविक तौर रर भारी है। लेकिन लड़ाई हार-जीत से इतर कांग्रेस के लिए विधासनभा चुनाव की हार से उबरने और सम्मान बचाने की अधिक होगी।
आखिर खटीमा में हार के बाद ‘दूध का जला छाछ भी फूँक फूँक कर पीता है’ अंदाज में सशंकित होकर आगे बढ़ते मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी हर हाल में चाहेंगे कि चम्पावत जीत का शोर इतना अधिक हो कि खटीमा से मिली हार की खटास खत्म हो जाए। धामी हर हाल में चाहेंगे कि वे ऐसा करिश्मा कर दिखाएँ कि तिवारी, खंडूरी, बहुगुणा से लेकर हरदा तक उपचुनाव जीते चारों मुख्यमंत्रियों से बड़ी जीत वे दर्ज करें। 2002 में अचानक मुख्यमंत्री बना दिए गए एनडी तिवारी ने रामनगर से कांग्रेस विधायक योगम्बर रावत से सीट खाली कराकर उपचुनाव लड़ा था। रावत तब भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट से 4915 वोटों से जीते थे लेकिन मुख्यमंत्री रहते तिवारी रामनगर सिर्फ पर्चा भरने आए और चुनाव प्रचार से दूर रहे लेकिन उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को 23 हजार से ज्यादा वोटों से हराया।
2007 में मुख्यमंत्री बनने के बाद जनरल बीसी खंडूरी को उपचुनाव लड़ना पड़ा और वे धूमाकोट से कांग्रेस विधायक टीपीएस रावत से सीट खाली कराकर चुनाव लड़ते हैं और 14 हजार से अधिक वोटों से जीत दर्ज करते हैं। 2012 में मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने सितारगंज से भाजपा विधायक किरन मंडल की सीट खाली कराकर उपचुनाव लड़ा और प्रकाश पंत को 40 हजार से अधिक वोटों से हराया। 2014 में मुख्यमंत्री हरीश रावत ने धारचूला से उपचुनाव लड़ा और भाजपा को 19 हजार से अधिक वोटों से हराया। जाहिर है अब मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पूरी ताकत झोंक रहे हैं ताकि उनकी जीत का अंतर सब पर भारी पड़े।
सवाल है कि क्या कांग्रेस मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और सत्ताधारी भाजपा से मिलने वाली चम्पावत की चुनावी चुनौती का मुकाबला कांग्रेस डट कर कर पाएगी? तमाम सियासी समीकरण भाजपा के पक्ष में होने के बावजूद मुख्यमंत्री धामी पार्टी कोर ग्रुप के साथ दिल्ली तक बैठकें कर रहे हैं। लेकिन प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को लेकर उलझे दिग्गज हरदा और प्रीतम खामोश नजर आ रहे हैं। ऐसे कैसे कांग्रेस लड़ेगी चम्पावत की चुनावी जंग? जाहिर है परसों जब कांग्रेसी बैठेंगे और चुनाव के जिस चेहरे पर मुहर लगेगी उसी से कांग्रेस का दमखम दिख जाएगा!