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अड्डा Analysis: लखीमपुर में किसानों को कुचलने की घटना बनेगी गेमचेंजर? यूपी ही नहीं उत्तराखंड, पंजाब से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी की घेराबंदी में जुटी कांग्रेस

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दिल्ली: मौजूदा दौर में उत्तरप्रदेश की सियासत में भले कांग्रेस का न मजबूत काडर बचा हो न ही जनाधार! लेकिन रविवार को जिस तरह से लखीमपुर में किसानों को कुचलने की घटना सामने आई और हत्या के आरोप केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर लगे उसके बाद से बीजेपी बैकफुट पर है। विपक्ष आक्रामक होकर मोदी सरकार से लेकर योगी सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है। अब तक किसान आंदोलन से सीधे कूदने में नाकाम विपक्ष को लखीमपुर खीरी की हिंसक घटना ने मौका दे दिया है।

लखीमपुर लहुलुहान हुआ तो इस मुद्दे पर सहसे ज्यादा आक्रामक होकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी मैदान में उतरी। रविवार दिन की घटना थी और प्रियंका ने उसी रात लखनऊ पहुंचकर योगी सरकार पर ज़बरदस्त दबाव बनाया जिसका नतीजा यह हुआ कि तड़के सीतापुर में ही प्रियंका गांधी को हिरासत में ले लिया गया। लेकिन प्रियंका ने जिस तरह से आक्रामक अंदाज में हमला जारी रखा और राहुल गांधी भी बुधवार को पंजाब और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री लेकर लखनऊ पहुंच गए उसने योगी सरकार को मजबूर कर दिया कि प्रियंका गांधी और राहुल गांधी को लखीमपुर में मारे गए किसानों के परिजनों से मिलने की इजाज़त देने को मजबूर होना पड़ा।


बुधवार रात्रि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने मृतक किसानों के परिजनों से मुलाकात की और बाइस बैटल में योगी से दो-दो हाथ करने का मैसेज तो दिया ही, साथ ही इस घटनाक्रम के ज़रिए घरेलू और बाहरी राजनीतिक मोर्चाबंदी को लेकर अपनी पेशबंदी भी मजबूत कर ली है। दरअसल पंजाब में मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह की छुट्टी के बावजूद नवजोत सिंह सिद्धू के पार्टी प्रधान पद से अचानक इस्तीफा देने से उबरे आंतरिक कलह कुरुक्षेत्र के बीच लखीमपुर में किसानों को कुचलने वाले जघन्य कांड ने कांग्रेस को घरेलू झगड़े छोड़कर केन्द्र से लेकर यूपी की योगी सरकार पर हमलावर होने का बड़ा मौका दे दिया।

लखीमपुर खीरी में मृतक किसान सिख थे और मौके की नज़ाकत को भांपकर राहुल गांधी अपने साथ पंजाब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी को लेकर गए जिन्होंने लखनऊ एयरपोर्ट पर ही मृतक किसानों के परिवारों के लिए 50-50 लाख रुपए की आर्थिक मदद का ऐलान कर दिया। जाहिर है जहां मृतक किसानों के साथ मजबूती से खड़ी दिखकर कांग्रेस पंजाब से लेकर उत्तराखंड तक सिखों की सहानुभूति हासिल कर लेना चाहती है। उत्तराखंड में किसान आंदोलन के चलते नाराज सिख वोटर को मनाने की कवायद के तहत ही लेफ़्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) गुरमीत सिंह को राज्यपाल बनाया गया है। आखिर उत्तराखंड के ऊधमसिंहनगर जिले की नौ सीटों में अधिकतर पर किसान खासकर सिखों का असर है और 2017 में नौ में से आठ सीटें बीजेपी ने जीती थी।


इस मुद्दे पर योगी सरकार से लेकर मोदी सरकार को किसान विरोधी साबित करने को कांग्रेस ने महाराष्ट्र में शिवसेना और एनसीपी के साथ मिलकर 11 अक्तूबर के बंद का ऐलान किया है। इतना ही नहीं पंजाब कांग्रेस ने नवजोत सिंह सिद्धू के नेतृत्व में मोहाली से लेकर लखीमपुर तक मार्च निकालने का ऐलान भी कर दिया है।


जाहिर है कांग्रेस इस मुद्दे पर एक्टिव होकर फ़्रंटफुट पर मोर्चा संभालती दिखना चाहती है। ऐसा कर वह जहां अगले साल के शुरू में होने वाले पांच राज्यों के चुनावों को लेकर काडर में नया हौसला भरना चाहती है, वहीं 2024 की विपक्षी नेतृत्व की पटकथा में खुद को अगुआ के तौर पर भी पेश कर रही है। इसके साथ ही प्रियंका-राहुल ने लखीमपुर खीरी में किसानों के साथ हुई हिंसा में खुद को झोंककर पार्टी के भीतर सीनियर नेताओं के असंतुष्ट समूह जिसे G-23 के नाम से जाना जाता है, उसे भी राजनीतिक फ्रंट पर अंग्रिम मोर्चे पर खुद के होने का अहसास राहुल-प्रियंका ने करा दिया है। ग़ौरतलब है कि G-23 की डिमांड पर इसी माह के अंत तक कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक हो सकती है।


यानी प्रियंका गांधी और राहुल गांधी ने लखीमपुर खीरी की घटना को गेमचेंजर मुद्दा बनाने का दाँव चल दिया है अब देखना होगा इसी दिशा में पार्टी की पेशबंदी कितनी मज़बूत आगे भी नज़र आती है।

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