देहरादून/ दिल्ली: धामी सरकार में मंत्रीपद छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य और उनके विधायक पुत्र ने पार्टी छोड़ते-छोड़ते भाजपा को गहरा जख्म दे दिया है। जख्म इतना भर नहीं कि एक कैबिनेट मंत्री और प्रदेश के सबसे बड़े दलित चेहरे यशपाल आर्य ने अपने विधायक बेटे के साथ कांग्रेस में घर वापसी कर भाजपा का संख्याबल घटा दिया है। दरअसल चुनावी जंग में कूद रही सत्ताधारी पार्टी को आर्य पिता -पुत्र के जाने का झटका सियासी तौर पर तो सूबे में सहना ही होगा, आर्य उससे बड़ा आरोप यह भी लगाकर गए कि भाजपा में दमघोंटू माहौल है और दलित नेताओं को शो पीस बनाकर रखा जाता है जबकि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र कायम है और सहमति-असहमति जाहिर करने को लेकर खिड़कियाँ-रोशनदान आज भी खुले हैं।
जाहिर है आर्य की तरफ से यह भाजपा को दिया गहरा जख्म है जिसकी चुभन उसे लंबे समय तक सालती रहेगी। अभी एक दिन पहले ही एक पत्रकार को दिए इंटरव्यू में गृहमंत्री अमित शाह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर लगते तानाशाही सरकार चलाने के आरोपों पर जवाब दिया था कि पीएम सबको सुनते हैं और खूब विचार-विमर्श के बाद फैसले लेते हैं। लेकिन अब अमित शाह 16-17 को उत्तराखंड दौरे पर आ रहे हैं और उससे पहले यशपाल आर्य ने भाजपा छोड़ते आंतरिक लोकतंत्र न होने और दमघोंटू माहौल की तोहमत लगाकर झटका दे दिया है।
हुआ यूँ कि आधिकारिक तौर पर कांग्रेस ज्वाइन करने से पहले आर्य पिता-पुत्र राहुल गांधी से मुलाकात करते हैं। इसी दौरान राहुल गांधी एक पेचीदा सवाल पूछ लेते है कि दोनों पार्टियों में अंतर क्या देखते हैं अब? इस पर यशपाल आर्य ने कहा कि कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र है। यहाँ लोकतांत्रिक मूल्यों की क़ीमत है और हम अपनी बात पूरी ताकत के साथ खुलकर कह सकते हैं, सहमति और असहमति जता सकते हैं लेकिन भाजपा में इसकी इजाज़त नहीं है। इस तरह आर्य ने भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व पर ज़ोरदार हमला कर दिया। हरीश रावत ने आर्य की ज्वाइनिंग के समय इन बातों को दोहराया भी।
यशपाल आर्य ने आगे भी कहा कि कांग्रेस पार्टी दिल से दलितों से, पिछड़ों से, कमजोर तबक़ों से और अल्पसंख्यकों व गरीबों से प्यार करती है। जहकि भाजपा केवल दलितों का शो पीस के तौर पर राजनीतिक इस्तेमाल करती है। वहाँ दलितों का दिल से सम्मान नहीं होता है। पार्टी छोड़ते आर्य ने कहा कि केन्द्र की मोदी सरकार ने उत्तराखंड के विकास के जो सपने दिखाए थे उन पर कोई काम नहीं हुआ। राज्य में गरीब, दबे-कुचले और शोषित वर्ग के साथ भेदभाव बढ़ा है और तीन-तीन मुख्यमंत्री बदल गए लेकिन हालात नहीं सँभल सके हैं।
जाहिर है अब जाते-जाते आर्य के लगाए आरोपों का असल जवाब भाजपा नेतृत्व और कांग्रेस गोत्र वाले भाजपाई नेता ही दे सकते हैं। लेकिन पिछले दिनों जिस तरह से रायपुर विधायक उमेश शर्मा काऊ ने अपने क्षेत्र में कुछ बड़े नेताओं के संरक्षण में भाजपा कार्यकर्ताओं द्वारा अभद्रता का मुद्दा बनाकर दिल्ली दरबार तक दौड़ लगा दी थी, उस दौरान भी काऊ ने पौने पांच साल से हो रहे भेदभाव की सुनवाई का मुद्दा उठाया था। काऊ ने पार्टी से अलहदा अपने ग्रुप की चेतावनी भी दी थी जहां नेतृत्व फैसला लेने से चूका तो फैसले की बात कही थी। हरक सिंह रावत कई बार शमशेर सिंह सत्याल से लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत जैसे नेताओं के बहाने अपना दर्द बयां करते रहे हैं। मंत्री महाराज का मु्ख्यमंत्री न बन पाने का दर्द कहां किसी से छिपा है जिसे लोक निर्माण विभाग लेकर भुलाने की कोशिश खुद सतपाल महाराज जरूर कर रहे हैं।